8. d- एवं f-ब्लॉक के तत्त्व LONG ANSWER TYPE QUESTIONS
8. d- एवं f-ब्लॉक के तत्त्व
प्रश्न 1. संक्रमण धातुओं के अभिलक्षण क्या हैं ? ये संक्रमण धातु क्यों कहलाती हैं ? d-ब्लॉक के तत्वों में कौन-से तत्व संक्रमण श्रेणी के तत्व नहीं कहे जा सकते ?
उत्तर⇒ d-ब्लॉक तत्व संक्रमण तत्व कहलाते हैं क्योंकि इन तत्वों के गुणों में बहुत भिन्नता है। इन तत्वों के गुण s-ब्लॉक तथा p-ब्लॉक तत्वों के मध्य गुणों को दर्शाते हैं। इन तत्वों में अन्तिम इलेक्ट्रॉन (n – 1) d उपकक्षक में जाता है। अतः इनका इलेक्ट्रॉनिक विन्यास में d उपकक्षक आंशिक भरा होता है। Zn, Cd, Hg तत्व d उपकक्षक को पूर्ण रूप से भरते हैं।
Zn = 30 = [Ar] 3d10 4s2 Zu (11) 3d10
Cd = 48 = [Kr] 4d10 5s2 Cd(11) 4d10
Hg = 80 = [Xe] 4ƒ14 5d16 6s2 Hgf(11) 5d10
∴ Zn, Cd, Hg संक्रमण तत्व नहीं कहलाते हैं।
गुणधर्म- (i) ये धातुएँ कठोर होती हैं।
(ii) इनके क्वथनांक व गलनांक उच्च होते हैं।
(iii) वर्ग I व II की तुलना में इन धातुओं का घनत्व अधिक होता है।
(iv) इन तत्वों की प्रथम आयनन ऊर्जा (I.E. I) s-ब्लॉक तत्वों में अधिक होती है लेकिन p-ब्लॉक तत्वों से कम होती है।
(v) इन तत्वों की प्रकृति धनावेशित होती है।
(vi) इन तत्वों का प्रमुख इलेक्ट्रॉन विन्यास (n – 1)1-9 है जो रंगीन गुणधर्म दर्शाते हैं। जबकि जिन तत्वों का इलेक्ट्रॉन विन्यास (n- 1) d° या (n – 1) d10 है वे रंगहीन हैं।
(vii) छोटे आकार व उच्च घनत्व के कारण ये तत्व जटिल यौगिक बनाते हैं।
(viii) इनकी ऑक्सीकरण अवस्था एक से अधिक होती है।
(ix) एक से अधिक अयुग्मित इलेक्ट्रॉन होने के कारण अनुचुंबकीय गुण दर्शाते हैं।
(x) समान आकार होने के कारण ये तत्व मिश्रधातु बनाते हैं।
(xi) d-उपकक्षक होने के कारण ये तत्व जालक यौगिकों का निर्माण करते हैं।
(xii) बहुत-से संक्रमण तत्व जैसे-Mn, Ni, Co, Cr, V, Vt आदि तथा ऑक्साइड V2O5, Cr2O3. NiO, KmnO4. K2Cr2O7 आदि उत्प्रेरक के रूप में कार्य करते हैं। उत्प्रेरक के रूप में अपना d-उपकक्षक का प्रयोग करते हैं।
प्रश्न 2. लैन्थेनॉयड आकुंचन क्या है ? लैन्थेनॉयड आकुंचन के परिणाम क्या हैं ?
उत्तर⇒ लैन्थेनॉयड आकुंचन-लैन्थेनॉयड तत्वों के इलेक्ट्रॉन विन्यास में 6s2 साझे इलेक्ट्रॉन हैं। परन्तु त्रिधनात्मक आयन के लिए 41n (n = 1 से 14) तक इलेक्ट्रॉन है। अतः क्रमशः आयनन त्रिज्या कम होती जाती है। La (106 pm) से Lu+3 (85 pm) तक अतः 4f आंतरिक कक्षकों के उत्तरोत्तर पूर्ति होने के साथ श्रेणी की धातुओं की परमाणु और आयनिक त्रिज्याओं में क्रमिक ह्रास होता है जो लैन्थेनॉयड आकुंचन कहलाता है।
लैन्थेनॉयड आकुंचन के प्रभाव-लैन्थेनॉयड का लैन्थेनॉयड आकुंचन एक मुख्य गुण है। यह गुण तीसरी संक्रमण श्रेणी के तत्त्व दर्शाते हैं । इस कारण दूसरी व तीसरी संक्रमण श्रेणी के तत्वों की त्रिज्या लगभग एक समान है। जैसे-
श्रेणी | तत्त्व | परमाणु त्रिज्या | तत्त्व | परमाणु त्रिज्या |
2 | 40Zr | 160 pm | 41nb | 146 pm |
3 | 72Zn | 159 pm | 73Ta | 146 pm |
(i) समान आकार के कारण Zr और Hf, Nb और Ta, Mo और W के गुणधर्म समान हैं।
(ii) त्रिआयनी की वैद्युतऋणात्मकता में थोड़ी वृद्धि होती है।
(iii) E0 का मान भी बहुत कम बढ़ता है।
M+3 + 3e– → M(g)
(iv) ऑक्साइड व हाइड्रॉक्साइड की क्षारकता कम होती जाती है।
La(OH)3 Lu(OH)
प्रबल क्षार दुर्बल क्षार
(v) आयन विनिमय विधि से लैन्थेनॉयडों को पृथक किया जाता है।
प्रश्न 3. पोटैशियम डाइक्रोमेट की ऑक्सीकरण क्रिया का उल्लेख कीजिए तथा निम्नलिखित के साथ आयनिक लिखिए-
(i) आयरोडाइड आयन, (ii) आयरन, (iii) विलयन, (iv) H2S
उत्तर⇒ K2Cr2O7 + 4H2SO4 → K2SO4 + Cr2(SO4)3 + 4H2O + 3[O]
या आयनन रूप में
Cr2O +14H+ + 6e– → 2Cr3+ + 7H2O (अपचयन)
∴ Cr2O + आयन अम्ल में प्रबल ऑक्सीकारक है।
(i) यह I– को I2 में ऑक्सीकृत करता है।
Cr2O + 14H+ + 6I– → 2Cr3+ + 7H2O
(ii) Fe (II) को ऑक्सीकृत कर Fe (III) में बदलता है।
Cr2O +14H+ + 6Fe2+ → 2Cr3+ + 6Fe3+ + 7H2O
(iii) H2S को ऑक्सीकृत कर S बनाता है।
Cr2O + SH+ + 3H2S → 2Cr+3 + 3S+ 7H2O
प्रश्न 4. पोटैशियम परमैंगनेट को बनाने की विधि का वर्णन कीजिए। अम्लीय पोटैशियम परमैंगनेट किस प्रकार
(i) आयरन II आयन (ii) SO2 (iii) ऑक्सैलिक अम्ल से अभिक्रिया करता है ?
अभिक्रियाओं के लिए आयनिक समीकरण लिखिए।
उत्तर⇒ KMnO4 का बनना-KMnO4 को पाइरोलूसाइट अयस्क से तैयार करते हैं। जैसे-
1. पाइरोल्साइट अयस्क को पोटैशियम परमैंग्नेट में बदलना-अयस्क को KOH से क्रिया करवाते हैं या पोटैशियम कार्बोनेट से क्रियाशील किया जाता है।
.
2MnO2 + 4KOH + O22K2MnO4 + 2H2O
2MnO2 + 2K2CO3 → 2K2MnO4 + 2CO2
2. K2MnO4 का KMnO4 में ऑक्सीकरण-
हर विलयन को Cl2 या O2 या CO2 को ऑक्सीकृत कर KMnO4 प्राप्त करते हैं।
2K2MnO4 + Cl2 → 2KCl + 2KMnO4
2K2MnO4 + O3 + H3O → 2KMnO4 + 2KOH + O2
2K2MnO4 + 2CO2 → 2K2CO3 + MnO2 ↓ + 2KMnO4
विलयन को सान्द्रित कर गहरे रंग के क्रिस्टल KMnO4 प्राप्त करते हैं। K2MnO4 विलयन को विद्युत अपघटन से ऑक्सीकृत करते हैं।
विद्युतीय ऑक्सीकरण-
2K2MnO4 2K+ + MnO
ऐनोड पर MnO → MnO + e–
कैथोड पर 2H+ + 2e– → H2
KMnO4 के ऑक्सीकरण चरण-
(i) आयरन आयन का ऑक्सीकरण Fe+2 → Fe+3
2KMnO4 + 3H2SO4 → K2SO4 + 2MnSO4 + 3H2O + 5[O]
या MnO + 8H+ + 5e– → Mn2+ + 4H2O
2KMnO4 + 3H2SO4 → K2SO4 + 2MnO4 + 3H2O + 5[O]
2FeSO4 + H2SO4 → Fe2(SO4)3 + H2O] × 5
2KMnO4 + 8H2SO4 + 20FeSO4 →
K2SO4 + 3MnSO4 + 5Fe(SO4)3 + 8H2O
या आयनन अभिक्रिया
MnO + 8H+ + 5Fe+2 → 5Fe+3 + Mn+2 + 4H2O
(ii) SO2
2KMnO4 + 3H2SO4 → K2SO4 + 2MnSO4 + 2H2O + 5[O]
SO2 + H2O +O → H2SO4] × 5
2KMnO4 + 5SO2 + 2H2O → K2SO4 + 2MnSO4 + 2H2SO4
या आयनिक अभिक्रिया
2MnO4 + 5SO2 + 2H2O→ 5SO2+ 2Mn2+ + 4H+
(iii) 2KMnO4 +3H2SO4 → K2SO4 2MnSO4 +3H2O + 5[0]
प्रश्न 5. निम्नलिखित के संदर्भ में, लैन्थेनॉयड एवं ऐक्टिनॉयड के रसायन की तुलना कीजिए।
(i) इलेक्ट्रॉनिक विन्यास (ii) परमाण्वीय एवं आयनिक आकार (iii) ऑक्सीकरण अवस्था (iv) रासायनिक अभिक्रियाशीलता।
उत्तर⇒ (i) ऐक्टिनॉयड तथा लैन्थेनॉयड का इलेक्ट्रॉन विन्यास- ऐक्टिनॉयड तथा लैन्थेनॉयड दोनों अन्तर संक्रमण तत्व कहलाते हैं या f-ब्लॉक तत्व कहलाते हैं। इन तत्वों के इलेक्ट्रॉन विन्यास में f उपकक्षक आंशिक रूप से भरा होता है। दोनों में (n – 2) fउपकक्षक में अन्तिम इलेक्ट्रॉन जाता है। लैन्थेनॉयडों का सामान्य इलेक्ट्रॉन विन्यास [Xe]4f05d0-16s2 है जहाँ [Xe] परमाणु Xe का केन्द्र है। ऐक्टिनॉयड का सामान्य विन्यास [Rn]5f0-2 6d0-2 782 है जहाँ [Rn] परमाणु रेडॉन का केन्द्र है।
अन्तिम इलेक्ट्रॉन 4f उपकक्षक में तथा 5f उपकक्षक में जाता है, लैन्थेनॉयड और ऐक्टिनॉयड के लिए
(ii) Ln के लिए परमाणु आकार 187 pm (Yb) के लिए होता है। उनका आयन आकार La+3 (106 pm) से Lu+3 (85 pm) है। जहाँ ऐक्टिनॉयड के लिए यह भिन्नता दर्शाता है जो AC+3 (III pm) से Cr+3(98 pm) (99 pm) Th4+ तक तथा Th+4(86) से Cr+4 तक है।
(iii) ऑक्सीकरण अवस्था-लेन्थेनॉयड की प्रमुख ऑक्सीकरण अवस्था + 3 [+2, +4 कभी-कभी] तथा ऐक्टिनॉयड की प्रमुख अवस्था +2, +3, +4, +5, +6, +7 है।
(iv) रासायनिक अभिक्रियाशीलता-रासायनिक अभिक्रिया निम्न है-
लैन्थेनॉयड और ऐक्टिनॉयड श्रेणी का तुलनात्मक अध्ययन
लैन्थेजॉयड | ऐक्टिनॉयड |
समामाता : 1. प्रमुख ऑक्सीकरण अवस्था + 3 है। | समामाता : 1. इनके लिए भी प्रमुख ऑक्सीकरण अवस्था +3 है। |
2. लैन्थेनॉयड, लैन्थेनॉयड आकुंचन दर्शाते हैं। | 2. ऐक्टिनॉयड, ऐक्टिनॉयड आकुंचन दर्शाते हैं। |
3. ये आयन विनिमय दर्शाते हैं। | 3.ये भी आयन विनिमय दर्शाते हैं। |
विभिन्नता : विभिन्नता :
1. +3 ऑक्सीकरण अवस्था के साथ + 2 और +4 ऑक्सीकरण अवस्था दर्शाते हैं। | 1. +3 ऑक्सीकरण अवस्था के साथ +4, +5, +6, +7 अवस्था भी दर्शाते हैं। |
2. लगभग आयन रंगीन है। | 2. लगभग आयन रंगीन हैं। |
3. ये जटिल यौगिक नहीं बनाते। | 3. ये जटिल यौगिक बनाते हैं। |
4. ये ऑक्सोधनायन नहीं बनाते। | 4. ये ऑक्सोधनायन बनाते हैं। UO2-, PUO2-2 और UO+ |
5. इनके यौगिक दुर्बल क्षारीय हैं। | 5. इनके यौगिक प्रबल क्षारीय हैं। |
6. प्रोमिथियम को छोड़कर शेष सभी अरेडियोधर्मी है। | 6. ये तत्व रेडियोधर्मी हैं। |
7. इनके चुम्बकीय गुण आसानी से वर्णित किए जा सकते हैं। | 7. इनके चुम्बकीय गुणों को आसानी से वर्णित किया जा सकता। |
प्रश्न 6. लैन्थेनॉयड आकुंचन क्या है? यह किस कारण होता है? लैन्थेनॉयड आकुंचन के क्या प्रभाव हैं ? क्या ऐक्टिनॉयड भी ऐक्टिनॉयड आकुंचन दर्शाते हैं।
उत्तर⇒ लैन्थेनम से ल्युटीशियम तक के तत्वों की परमाणु एवं आयनिक त्रिज्याओं में समग्र ह्रास लैन्थेनॉयड आकुंचन कहलाता है। जब हम La (57) से Lu (71) तक जाते हैं तब परमाणु व आयन आकर नियमित घटता है, यह प्रभाव लैन्थेनॉयड, आकुंचन कहलाता है।
लैन्थेनॉयड आकुंचन के कारण-लैन्थेनॉयड आकंचन एक ही उपकोश में एक इलेक्ट्रॉन का दूसरे इलेक्ट्रॉन द्वारा अपूर्ण परिरक्षण प्रभाव होने के कारण होता है। श्रेणी में नाभिकीय आवेश बढ़ने के साथ एक d-इलेक्ट्रॉन के परिरक्षण प्रभाव की तुलना में एक 4fइलेक्ट्रॉन पर परिरक्षण प्रभाव कम होता है तथा श्रेणी में बढ़ते हुए नाभिकीय आवेश के कारण बढ़ते हुए परमाणु क्रमांक के साथ परमाणु के आकार में एक नियमित हास पाया जाता है। लैन्थेनॉयड श्रेणी में आकुंचन का संचयी प्रभाव लैन्थेनॉयड आकुंचन कहलाता है।
लैन्थेनॉयड आकुंचन के प्रभाव- (i) लैन्थेनॉयड श्रेणी में आकुंचन के संचयी प्रभाव के कारण तृतीय संक्रमण श्रेणी की त्रिज्याओं के मान दसरी संक्रमण श्रेणी के संगत तत्वों की त्रिज्याओं के मानों के लगभग समान हो जाते हैं। अतः इन्हें परमाणु त्रिज्या के आधार पर अलग नहीं किया जा सकता।
(ii) तृतीय श्रेणी के तत्वों का समान आकार होता है, द्वितीय श्रेणी के तत्वों के समान। जैसे-
. 3 4 5
1st संक्रमण श्रेणी 21Se(144 pm) 22 Ti(132 pm) 23V (122 pm)
2nd संक्रमण श्रेणी 39V(180 pm) 40Zr(160 pm) 41Nb(146 pm)
3rd संक्रमण श्रेणी 57La (187 pm) 72Hf(159 pm) 73Ta(146 pm)
समान वर्ग की दूसरी ओर तीसरी श्रेणी के तत्वों का आकार लगभग एक-समान है। अर्थात् 4zr rHf; rNb = rra अतः इन्हें पृथक करना आसान नहीं है।
(iii) हाइड्रोजन की क्षारकता पर प्रभाव- क्योंकि La+3 सं Lu+3 आयन तक आकार घटता है। अतः हाइड्रॉक्साइड का सहसंयोजी गुण बढ़ता है इसलिए क्षारकता गुण घटता है। जैसे-La(OH)3 प्रयत्न क्षार है जबकि Lu(OH)3 दुर्बल भार।
एक्टिनॉयड भी लैन्थेनॉयड की भाँति आकुंचन गुण दर्शाते हैं। ऐक्टिनॉयड में यह गुण 5f इलेक्ट्रॉन अपूर्ण परिरक्षण प्रभाव के कारण होता है।
प्रश्न 7. संक्रमण धातुओं के निम्नांकित गुणों की विवेचना करें :
(i) अवकारक गण (Reducing properties) (ii) अम्लीय एवं क्षारीय गुण (Acidic and Basic properties)
उत्तर⇒ (i) अवकारक गुण (Reducing properties)-वे पदार्थ जो रासायनिक प्रतिक्रियाओं में इलेक्ट्रॉन प्रदान करते हैं, अवकारक कहलाते हैं। वे पदार्थ जो इलेक्ट्रॉन को आसानी से त्याग करने में सक्षम हैं प्रबल अवकारक कहलाते हैं। किसी तत्व के द्वारा इलेक्ट्रॉन को प्रदान करने की प्रवृत्ति तत्व के आयनीकरण इन्थैल्पी पर निर्भर करती है। तत्व का आयनीकरण इन्थैल्पी कम होने पर तत्व के द्वारा इलेक्ट्रॉन को प्रदान करने की प्रवृत्ति अधिक होती है। अतः संक्रमण तत्व का आयनीकरण इन्थैल्पी कम होने के कारण ये तत्व प्रबल अवकारक होते हैं।
(ii) अम्लीय एवं क्षारीय गुण (Acidic and basic properties) संक्रमण तत्वों का आवेश घनत्व अधिक होने के कारण इनके लवण जलांशित होते हैं, जिसके फलस्वरूप प्रोटॉन मुक्त होता है। इसी कारण संक्रमण तत्वों के लवण के जलीय घोल अम्लीय होते हैं।
Mn+2 + 2H2O → M(OH)2 + 2H+
या, FeCl3 + 3H2O → Fe(OH3)3 + HCl
प्रथम संक्रमण श्रेणी के तत्वों के द्विसंयोजी धनायन (Divalent cation) की आयनिक त्रिज्या कम होती है, इसलिए संक्रमण धातुओं के ऑक्साइड क्षारीय होते हैं, किन्तु इनकी क्षारीय शक्ति कम होती है।
प्रश्न 8. किसी श्रेणी के संक्रमण तत्वों की त्रिज्या के मान में कमी होती है। क्यों?
उत्तर⇒ किसी श्रेणी में संक्रमण तत्वों की परमाणविक त्रिज्या तत्व की परमाणु संख्या में वृद्धि होने पर घटती है। संक्रमण तत्वों की परमाणविक त्रिज्या में परिवर्तन इतनी कम होती है कि क्रोयिम से लेकर जिंक तक तत्वों की परमाणविक त्रिज्या लगभग बराबर होती है। इसका कारण यह है कि संक्रमण तत्वों की परमाणु संख्या में वृद्धि होने पर केन्द्रक का प्रभावी आवेश बढ़ता है तथा परमाणु संख्या में वृद्धि के साथ आने वाला नया इलेक्ट्रॉन (n – 1) d – orbital में आता है जिसका screening power काफी कम है। अतः d – उपकक्ष (suborbit) में होने वाली इलेक्ट्रॉन की वृद्धि ns ऑर्बिटल के इलेक्ट्रॉन पर केन्द्रक के आकर्षण बल को बढ़ा देती है। न्यूक्लियस का बढ़ा हुआ आवेश परमाणु की त्रिज्या में कमी की प्रवृत्ति रखता है। इसलिए किसी संक्रमण श्रेणी (transition series) के परमाणु संख्या में वृद्धि के साथ परमाणु की त्रिज्या में कमी होती है।
प्रश्न 9. निम्नलिखित के इलेक्ट्रॉनिक विन्यास लिखें।
(i) Cr3+ (ii) Pm3+ (iii) Cu+ (iv) Ce4+ (v) CO2+ (vi) Lu2+ (vii) Mn2+ (viii) Th4+
उत्तर⇒ (i) Cr3+ = [Ar]18 3d3
(ii) Pm3+= [Xe]54 4f6
(iii) Cu+ = [Ar]18 3d10
(iv) Ce4+ = [Xe]54
(v) CO2+ = [Ar]18 3d7
(vi) Lu+2 = [Xe]54 4f14 5=d1
(vii) Mn2+ = [Ar] 18 3d5
(viii) Th4+ = [Rn]86
प्रश्न 10. संक्रमण तत्वों के सामान्य गुणधर्म का वर्णन करें।
उत्तर⇒ संक्रमण तत्वों अथवा d-खण्ड तत्वों के ये नाम इसलिए पड़े हैं कि उनके गुण s- तथा p-खंडों के मध्यवर्ती हैं तथा उनका उपान्त्य कोष d इलेक्टॉनों के प्रवेश के फलस्वरूप प्रसारित हो रहा होता है। उनके यौगिक व रासायनिक गुणों में अनेक समानताएँ होती हैं, जैसा कि अधोलिखित विवरण से स्पष्ट है। 3d-श्रेणी के तत्वों में Se, Ti, V, Cr, Mn, Fe, Co, Ni, Cu और Zn आते हैं।
(i) धात्विक आचरण-सभी संक्रमण तत्व धातुएँ हैं तथा ऊष्मा व विद्युत के सुचालक हैं। वे तन्य हैं तथा एलॉय बनाते हैं।
(ii) गलनांक व क्वथनांक-इनके गलनांक व क्वथनांक सामान्यतः ऊँचे होते हैं, किन्तु Zn, Cd व Hg इसके महत्त्वपूर्ण अपवाद हैं। इसकी व्याख्या इस आधार पर की जा सकती है कि अभ्यान्तर d स्तर पूर्ण है। सामान्यतः इनके गलनांक 1000°C से ऊपर है।
(iii) घनत्व-इनके परमाणु आयतन s-खंड तत्वों की तुलना में कम है। इसका कारण यह है कि इनमें अभ्यन्तर आर्बिटल पूरे भर जाते हैं और नाभिकीय आवेश बढ़ जाता है, जिससे इलेक्ट्रॉन भीतर की ओर खिंच जाते हैं। अतः इनके घनत्व उच्च हैं।
(iv) अल्प अभिक्रियाशीलता-ये धातुएँ निष्क्रिय रहने की उत्तरोत्तर बढ़ती हुई प्रवृत्ति प्रदर्शित करती हैं और यह प्रवृत्ति स्वर्ण व प्लैटिनम में सबसे प्रबल है। इसका कारण यह है कि इनके ऊर्ध्वपातन के ऊष्मा आयनन विभव उच्च होते हैं।
(v) आयनन विभव-इनके आयनन विभव s व p-ब्लॉक के तत्वों के मध्यवर्ती तथा 5 व 10eV के बीच होते हैं। इस प्रकार के s-ब्लॉक तत्वों की तुलना में कम धनविद्युती हैं और दशाओं के अनुसार आयनिक या सहसंयोजक यौगिक बनाते हैं। सामान्य रूप से, जिन यौगिकों में धातुएँ निम्न संयोजकता की अवस्था में होती हैं वे आयनिक होते हैं तथा अन्य यौगिक सहसंयोजक होते हैं। परमाणु का आकार बढ़ने के साथ-साथ आयनिक यौगिक बनाने की प्रवृत्ति क्षीण होती जाती है।
(vi) रंग-संक्रमण तत्वों के यौगिक सामान्यतः रंगीन होते हैं। रंग का उद्भव अपूर्ण इलेक्ट्रॉन कोषों तथा इलेक्ट्रॉनों की एक ऊर्जा स्तर से दूसरे स्तर तक उठाने की क्षमता से सम्बद्ध है। संक्रमण तत्वों में d इलेक्ट्रॉन एक ही उपकोश में अधिक उच्च ऊर्जा स्तर में पहुँच जाते हैं। दोनों ऊर्जा स्तरों में अन्तर इतना कम होता है कि ऊर्जा का अवशोषण दृश्य क्षेत्रा में ही होता है। Cu2+ लवणों में लाल प्रकाश अवशोषित होता है तथा पारगमित प्रकाश में स्पेक्ट्रम के अन्य रंगों का विशेषतः नीले की प्रधानता रहती है। अतः ये लवण नीला दिखाई देते हैं।
s एवं p-ब्लॉक के तत्व में इलेक्ट्रॉन का किसी बाहरी कोश तक उन्नत होना आवश्यक है। दोनों स्तरों में अन्तर बहुत अधिक होता है तथा पराबैंगनी प्रकाश के अनुरूप हो सकता है। फलतः यौगिक आँखों को रंगीन दिखाई नहीं देता।
(vii) परिवर्ती संयोजकता-संक्रमण तत्व परिवर्ती संयोजकता प्रदर्शित करते हैं। इसका कारण यह है कि इनके परमाणुओं में से संयोजी इलेक्ट्रॉन का निष्कासन होने पर अवशिष्ट कोर अस्थायी होती है और उनके एक या अधिक और इलेक्ट्रॉनों को त्यागने की प्रवृत्ति रहती है। उदाहरणार्थ-लोहे की दो संयोजकताओं को इस प्रकार निरूपित किया जा सकता है।
Fe (26) = 2, 8, 14, 2
Fe2+ (24) = 2, 8, 14 (कोर)
अस्थायी होने के कारण एक और इलेक्ट्रॉन खोकर Fe3+ आयन देती है।
Fe3+ (23) = 2, 8, 13
(viii) उत्प्रेरण क्षमता-अनेक संक्रमण तत्वों तथा उनके यौगिक बहुत सक्षम उत्प्रेरक हैं, जैसे-Cu, Fe, Ni, Cr2O3, V2O3 आदि ।
(ix) चुम्बकीय गुण-अनेक संक्रमण तत्व अनुचुम्बकीय है। इसका कारण अयग्मित इलेक्ट्रॉनों की उपस्थिति है। जिन तत्वों में अयग्मित इलेक्ट्रॉन नहीं होते, वे प्रतिचुम्बकीय होते हैं। लोहा व कोबाल्ट लौह-चुम्बकीय हैं।
(x) संकर बनाने की क्षमता-संक्रमण तत्व छोटे, उच्च आवेशित आयन बनाते हैं जो अन्य समूहों द्वारा प्रदत्त एकाकी इलेक्ट्रॉन युग्मों का अधिग्रहण कर सकते हैं। फलतः, संक्रमण तत्वों में संकर बनाने की प्रबल क्षमता होती है।