दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर Home Science Part – 5 (15 Marks)
41. सिले-सिलाये (रेडीमेड) वस्त्र खरीदते समय किन-किन बातों पर ध्यान रखना चाहिए ?
(What should be taken care at the time of purchasing readymade clothes?)
उत्तर⇒ सिले-सिलाये वस्त्र खरीदने से कई लाभ होते हैं। सिले-सिलाये वस्त्र खरीदने से वस्त्र कम समय में उपलब्ध हो जाते हैं। आजकल अधिकांश लोग रेडीमेड वस्त्र ही खरीदना पसंद करते हैं। रेडीमेड वस्त्र खरीदते समय निम्न बातों को ध्यान में रखना चाहिए-
(i) सीवन- रेडीमेड वस्त्र खरीदते समय उलट-पुलट कर देख लें कि कपड़े का जोड़ सफाई से लगा हो, सिलाई मजबूत हो, कपड़े का दबाव ऐसा हो जिसे जरूरत पड़ने पर बढ़ाया जा सके, किनारों पर पिको हो।
(ii) तूरपन- रेडीमेड वस्त्र पर तुरपन इकहरे धागे से एवं पास-पास हो, तुरपन उसी रंग के धागे से हो जिस रंग का वस्त्र है।
(iii) प्लैकेट या बटन की पट्टी- वस्त्रों पर बटन पट्टी के अनुरूप लगायी गयी हो। पट्टी लगाते समय वस्त्रों पर झोल न पड़े। बटन या हुक पास-पास लगे हो।
(iv) बटन, हुक, काज- बटन पट्टी पर लगे बटन, कपड़े के रंग से मेल खाते हुए हो। काज पूर्ण रूप से सही तरह से भरा होना चाहिए।
(v) आकर्षक- रेडीमेड वस्त्रों को आकर्षक बनाने के लिए उन पर मोती, सितारे, कढ़ाई, टाइपिन, फ्रिल, लेस आदि लगाये जाते हैं। यह देखने में आकर्षक हो। यह पहनने वाले व्यक्ति पर अच्छा लगेगा या नहीं।
42. शिशुओं के वस्त्रों के चुनाव आप किस प्रकार करेंगी ?
(How can you select children cloths ?)
उत्तर⇒ शिशुओं के लिए वस्त्रों का चुनाव निम्न प्रकार से करेंगे
(i) शिशु के लिए सूती कपड़ा सबसे अच्छा होता है। सूती वस्त्र में भी कोमल तथा हल्का वस्त्र शिशु की कोमल त्वचा को क्षति नहीं पहुँचाता। सूती वस्त्र में सरंध्रता (porous) होने के कारण शिशु की त्वचा की पसीना सोख लेता है, उसे चिपचिपा नहीं होने देता। शिशुओं के लिए रेशमी या नायलान वस्त्र कष्टदायक होता है।
(ii) शिशु के वस्त्रों को बार-बार गंदे होने के कारण कई बार धोना पड़ता है। इसलिए शिशुओं के वस्त्र ऐसी होनी चाहिए जिन्हें बार-बार धोया तथा सुखाया जा सके। वस्त्र ऐसा नहीं होना चाहिए जिसे घर में धोया जा सके या जिसे सूखने में बहुत अधिक – समय लगता हो।
(iii) शिशुओं के वस्त्र हमेशा साफ तथा कीटाणुरहित होना चाहिए। वस्त्रों को कीटाणुरहित करने के लिए उन्हें गर्म पानी में धोना चाहिए तथा डेटॉल के पानी में भिगोना चाहिए। इसलिए वस्त्र ऐसा होना चाहिए जो गर्म पानी तथा डेटॉल या कीटाणुनाशक पदार्थ को सहन कर सके।
(iv) उसके गर्म कपड़े भी ऐसे होने चाहिए. जो गर्म पानी में सिकुड़े नहीं।
(v) शिशुओं के कपड़ों की संख्या अधिक होनी चाहिए क्योंकि उसके कपड़े गंदे हो जाने पर कई दिन में कई बार बदलने पड़ते हैं।
(vi) शिशुओं के कपड़े मांड रहित होने चाहिए तथा इलास्टिक वाले नहीं होने चाहिए।
(vii) शिशुओं के कपड़े सामने, पीछे या ऊपर की ओर खुलने चाहिए, जिससे शिशु को सिर से कपड़ा न डालना पड़े।
(viii) शिशुओं के वस्त्रों में पीछे की ओर बटनों के स्थान पर कपड़े से बाँधने वाली पेटियाँ (ties) या बंधक होने चाहिए क्योंकि बटन पीछे होने से शिशु के लेटने पर उसे चुभ सकते हैं।
(ix) शिशुओं के कपड़ों के रंग व डिजाइन अपनी रुचि के अनुसार होने चाहिए, परंतु रंग ऐसा होना चाहिए जो धोने पर निकले नहीं क्योंकि शिशु के वस्त्रों को अधिक धोना पड़ता है।
(x) शिशुओं के वस्त्रों में मजबूती का इतना महत्त्व नहीं होता है क्योंकि शिशुओं की वृद्धि बहुत तीव्र गति से होती है। जब तक शिशु के कपड़ों के फटने की स्थिति आती है वे छोटे हो चुके होते हैं।
43. वस्त्रों की देखरेख और उसका संचयन आप किस प्रकार करेंगी?
(How will you care and storage of clothes ?)
उत्तर⇒ वस्त्रों की देखरेख और उसका संचयन निम्नलिखित विधि से करना चाहिए
(i) ब्रश करना और धूप-हवा दिखाना- मोटे सूती या ऊनी वस्त्रों को उतारकर टाँगने के पूर्व मुलायम ब्रश से झाड़कर, पसीना लगे वस्त्र को धूप हवा लगाने के बाद संचयन करना चाहिए।
(ii) स्वच्छ संरक्षण- सभी वस्त्रों को अल्प या अधिक समय के लिए सहेज कर रखना पड़ता है। अलमारी के भीतर फिनाइल की गोली, नीम की सुखी पत्तियाँ, कीटनाशक. पदार्थ अवश्य डाल देना चाहिए। इसके अतिरिक्त अलमारी की सफाई एवं पॉलिश समय-समय पर करना चाहिए।
(iii) तत्क्षण मरम्मत- प्रयोग के दरम्यान प्रायः वस्त्रों की सिलाई उघड़ जाती है या खोंच लगकर फट जाती है। इसे तुरत मरम्मत कर लेना चाहिए।
(iv) दाग छुड़ाना एवं धुलाई की उचित विधि- वस्त्रों पर खाने-पीने या अन्य वस्तुओं – के दाग लग जाते हैं। इन्हें छुड़ाने के लिए कई प्रकार की विधियाँ अपनाई जाती है। जो विधि एवं अपमार्जक जिस वस्त्र के लिए उपयुक्त हो उसका प्रयोग करें।
(v) विधिपूर्वक सुखाना- आजकल बाजार में ऑटोमेटिक ड्रायर उपलब्ध है। किन्तु, सभी वस्त्रों को ड्रायर में सुखाना उचित नहीं है। अतः कपड़े को धूप-छाँव आदि में विधिपूर्वक ही सुखाना चाहिए।
(vi) विधिपूर्वक इस्तिरी करना- वस्त्रों पर उचित विधि से इस्तिरी करना आवश्यक है। रासायनिक रेशों पर अधिक गर्म इस्तिरी के प्रयोग से वे जल जाते हैं। अत: उन पर हल्की गर्म इस्तिरी का प्रयोग करना चाहिए।
44. वस्त्रों के धुलाई के सामान्य नियम क्या है ?
(What are the general methods/principles of cleaning of clothes ?)
उत्तर⇒ वस्त्रों की धुलाई के सामान्य नियम निम्नलिखित हैं-
(i) मैले वस्त्रों को शीघ्र धोना चाहिए। मैले वस्त्रों को दोबारा पहनने से उनमें मैल जम जाती है जिससे उसे साफ करना कठिन हो जाता है।
(ii) मैले वस्त्र को उतार कर किसी टोकरी, टब या थैले में रखना चाहिए। मैले कपड़े इधर-उधर फेंकना नहीं चाहिए अन्यथा धोते समय एकत्र करने में कठिनाई होती है।
(iii) कपड़ों को धोने से पूर्व उनकी प्रकृति के अनुसार अलग-अलग कर लेना चाहिए। . ऊनी, रेशमी, सूती तथा कृत्रिम तंतुओं से बने वस्त्रों को अलग-अलग विधियों द्वारा धोना चाहिए। सूती तथा रंगीन कपड़ों को भी अलग-अलग करके धोना चाहिए।
(iv) वस्त्रों को धोने से पहले उनकी मरम्मत अवश्य कर लेनी चाहिए तथा उन पर लगे दाग धब्बे को भी सुखाना चाहिए।
(v) धुलाई के लिए कपड़े की प्रकृति के अनुसार ही साबुन तथा डिटर्जेन्ट का चुनाव करना चाहिए।
(vi) वस्त्रों की धुलाई से पूर्व धोने के लिए प्रयोग में आने वाले सभी सामानों को एक स्थान पर एकत्र कर लेना चाहिए।
(vii) वस्त्रों को स्वच्छ पानी में ठीक तरह से धोकर उनमें से साबुन या डिटर्जेंट निकाल देना चाहिए अन्यथा वस्त्र के तंतु कमजोर हो जाते हैं।
(viii) सुखाने के लिए सफेद वस्त्रों को उल्टा करके धूप में सुखाना चाहिए तथा रंगीन वस्त्रों .’ को छाया में सुखाना चाहिए अन्यथा. उनके रंग खराब होने की संभावना रहती है। सफेद वस्त्रों को अधिक समय तक धूप में पड़ा रहने दिया जाय तो उन पर पीलापन आ जाता है।
(ix) सुखाते समय वस्त्रों को हैंगर पर लटका कर सुखाना चाहिए, जिससे उन पर अनावश्यक दबाव न पड़े।
(x) सुखाने के बाद वस्त्रों को इस्तरी करके ही रखना चाहिए।
45. एक किशोरी के लिए परिधानों के चुनाव में किन बातों को ध्यान में रखना चाहिए ?
(What are the points you will keep in your mind while selecting garments for
an adolescent girl?)
उत्तर⇒ एक किशोरी के लिए वस्त्र खरीदते समय निम्नलिखित बातों को ध्यान में रखूगी-
(i) प्रयोजन- वस्त्र प्रयोजन के अनुकूल लूंगी। इसके लिए रेशों की विशेषताओं, उसके गुण, सूत बनाने की विधि, सूत से की गयी बुनाई, उसके गुण-अवगुण तथा विशेषताओं को ध्यान में रखूगी।
(ii) टिकाऊपन- वस्त्र की मजबूती/टिकाऊपन, धागों की बँटाई, वस्त्र की बुनाई एवं उसकी देखरेख पर ध्यान दूंगी।
(ii) ऋतु एवं मौसम से अनुकूलता- मौसम के अनुकूल वस्त्रों को पहनने वाली खरीदूंगी, क्योंकि वस्त्र का कार्य शरीर की गर्मी और सर्दी से रक्षा करना होता है और शरीर के सामान्य तापक्रम को प्रतिकूल परिस्थितियों में बनाये रखता है।
(iv) उचित रंग- रंग हमारी मनोभावनाओं को किसी न किसी रूप में प्रभावित करते हैं। व्यक्ति, त्वचा और समय के अनुरूप रंगों का चुनाव कर वस्त्र खरीदूगी।
(v) वस्त्रों की धुलाई- कुछ वस्त्रों को प्रतिदिन तथा कुछ को यदा-कदा समय-समय पर धोना पड़ता है। कौन-से साबुन किस वस्त्र के सौन्दर्य एवं रंग को नष्ट नहीं करेंगे? कौन से रेशे क्षारीय माध्यम में नष्ट नहीं होते हैं और किन पर अम्लों का बरा प्रभाव पड़ता है? उसी के अनुरूप शोधक सामग्रियों का चुनाव करना अति आवश्यक है।
(vi) वस्त्रों की देखरेख, सुरक्षा एवं संचयन- पहनने के बाद वस्त्रों को किस प्रकार टाँगना है? किस प्रकार के रेशों में कीडे लगते हैं? किसे कितने समय तक बक्से में बंद रखा जा सकता है आदि बातों पर ध्यान देना. अति अनिवार्य है।
(vii) फैशन और शैली- इसका महत्त्वपूर्ण स्थान होता है। वैसे तो फैशन और शैली में परिवर्तन होते रहते हैं किन्तु वर्तमान में यह किस स्थान के लिए तथा किसके अनुकूल है, इसकी जानकारी आवश्यक होती है।
(vii) किस्म और श्रेणी- वस्त्रों के मूल उद्गम और रचना संबंधी विभिन्न प्रक्रियाओं की जानकारी से उसके किस्म एवं श्रेणी को समझने का अवसर प्राप्त होता है, इससे वस्त्र का प्रयोजनार्थ, उचित चयन की क्षमता बढ़ती है। की मल्य यह अति आवश्यक है। आर्थिक स्थिति के अनुसार महँगे तथा सस्ते वस्त्रों का चयन करूँगी।
46. धब्बे छुड़ाने की प्रमुख विधियाँ क्या हैं ?
(What are the important methods for removing stain or spot ?)
अथवा, वस्त्रों पर विभिन्न प्रकार के धब्बों को छुड़ाने की तालिका प्रस्तुत करें।
Or, Represent the table for removing different types of stain or spot on clothes.)
उत्तर⇒ धब्बे छुड़ाने की प्रमुख विधियों या वस्त्रों पर विभिन्न प्रकार के धब्बों को छुड़ाने की तालिका
धब्बे | सूती तथा लिनन वस्त्रो | रेशमी ,उनि तथा कृत्रिम वस्त्रो | |
(i) | रसदार सब्जी (घी एवं हल्दी) | स्याही सोख्ता (चूस) ऊपर तथानीचे रखकर इस्तिरी करने से चिकनाई स्याही चूस पर आ जाती है। उसके बाद साबुन तथा गर्म जल से धोकर धूप में सुखानी चाहिए। स्प्रिट, पेट्रोल या मिट्टी तेल का प्रयोग करके इस धब्बे को हटाया जाता है। जैविक घोल में भींगाकर साबुन से धोने से भी धब्बे को हटाया जाता है। | हलकी गर्म इस्तिरी से चिकनाई हटाई जाती है। पोटेशियम परमैंगनेट तथा अमोनिया घोलमें बारी-बारी से डुबोकर धब्बे को हटाया जाता है। पेट्रोल, स्प्रिट या मिट्टी के तेल का प्रयोग कर धब्बे को हटाया जाता है। |
(ii) | चाय या कॉफी | उबलता हुआ जल डालने से धब्बे हट जाते हैं। ग्लिसरोल में भींगाने पर भी. धब्बे हट जाते हैं। सोडा या सुहागा फैलाकर उबलता जल उस पर डालने से धब्बे हट जाते हैं। | गुनगुने जल में भींगाने तथा सुहागा के घोल में डालने से धब्बे हट जाते हैं। हलके हाइड्रोजन पेरोक्साइड के घोल में डालने से भी धब्बे हट जाते हैं। |
(iii) | रक्त. | ठंढे जल से धोने से धब्बे हट जाते हैं। नमक के घोल में डालने से भी धब्बे हट जाते हैं। | ठंढे जल से धोने से तथा स्टार्च या मैदा फैलाकर सुखाने के बाद ब्रश से रगड़ने पर धब्बे हट जाते हैं। |
(iv) | स्याही | साबुन तथा जल से धोकर, नींबू तथा नमक रखकर धूप में सुखाने पर, दूध या खट्टे दही में भींगाकर रखने से, पोटेशियम परमैंगनेट के घोल में रखकर, ऑक्जैलिक अम्ल में रखकर तथा जैविक घोल के प्रयोग कर धब्बे हटाये जाते हैं। | साबुन तथा जल से धोकर नींबू तथा नमक रखकर धूप में सुखाने पर तथा हाइड्रोजन पेरोक्साइड के घोल के प्रयोग से भी धब्बे हटाये जाते हैं। |
47. धुलाई की विभिन्न विधियों के बारे में लिखें।
(Write about different methods of washing.)
उत्तर⇒ घरेलू प्रयोग में तथा सभी पारिवारिक सदस्यों के परिधानों में तरह-तरह के वस्त्र प्रयोग में आते हैं। सूती, ऊनी, रेशमी, लिनन, रेयन और रासायनिक भी रहते हैं। धुलाई की उचित विधि के प्रयोग से वस्त्रों का सौन्दर्य स्थायी और टिकाऊ होता है, साथ ही कार्यक्षमता भी बढ़ती है।
कपड़े धोने की विधियाँ
(i) रगड़कर- रगड़कर केवल उन्हीं वस्त्रों को स्वच्छ किया जा सकता है जो मजबूत और मोटे होते हैं। रगड़ क्रिया को विधिपूर्वक करने के कई तरीके हैं। वस्त्र के अनुरूप तरीके का प्रयोग करना चाहिए।
(a) रगड़ने की क्रिया हाथों से घिसकर- रगड़ने का काम हाथों से भी किया जा सकता है। हाथों से उन्हीं कपड़ों को रगड़ा जा सकता है जो हाथों में आ सके अर्थात् छोटे कपड़े।
(b) रगड़ने की क्रिया मार्जक ब्रश द्वारा- कुछ बड़े वस्त्रों को जो कुछ मोटे और मजबूत भी होते हैं, ब्रश से मार्जन के द्वारा गंदगी से मुक्त किया जाता है।।
(c) रंगड़ने की क्रिया घिसने और मार्जन द्वारा- मजबूत रचना के कपड़ों पर ही इस विधि का प्रयोग किया जा सकता है।
(i) हलका दबाव डालकर- हलका दबाव डालकर धोने की क्रिया उन वस्त्रों के लिए अच्छी रहती हैं। जिनके घिसाई और रगड़ाई से क्षतिग्रस्त हो जाने का शंका रहती है। हल्के, कोमल तथा सूक्ष्म रचना के वस्त्रों को इस विधि से धोया जाता है।
(iii) सक्शन विधि का प्रयोग- सक्शन विधि का प्रयोग भारी कपड़ों को धोने के लिए किया जाता है। बड़े कपड़ों को हाथों से गूंथकर तथा निपीडन करके धोना कठिन होता है। जो वस्त्र रगड़कर धोने से खराब हो सकते हैं जिन्हें गूंथने में हाथ थक जा सकते हैं और वस्त्र भी साफ नहीं होता है उन्हें सक्शन विधि की सहायता से स्वच्छ किया जाता है।
(iv) मशीन से धलाई करना- वस्त्रों को मशीन से भी धोया जाता है। धुलाई मशीन कई प्रकार की मिलती है, कार्य प्रणाली के आधार पर ये तीन टाइप की होती हैं सिलेंडर टाइप, वैक्यूम कप टाइप और टेजीटेटर टाइप। मशीन की धुलाई तभी सार्थक होती है जब अधिक वस्त्रों को धोना पड़ता है और समय कम रहता है।
48. वस्त्रों का सामाजिक और मनोवैज्ञानिक महत्त्व क्या है ?
(What are the social and psychological importance of garments?)
उत्तर⇒ वस्त्रों का सामाजिक और मनोवैज्ञानिक महत्त्व- किसी व्यक्ति को व्यक्तिगत रूप से जानने से पहले सबसे पहला प्रभाव जो पड़ता है वह उसके परिधानों का होता है। वह व्यक्ति किस तरह से अपने आपको सजाता है, उसके चलने का तरीका, उसके बात करने का तरीका, वह किस तरह से अपने आप को ध्यान रखता है। इन सब बातों पर उसका पूरा व्यक्तित्व निर्भर करता है और यही तथ्य व्यक्तित्व को उभार कर सामने लाते हैं। उस व्यक्ति के परिधान किस हद तक उस व्यक्ति को सामने लाते हैं यह बात पहने गए वस्त्रों के डिजाइन, रंग आदि पर निर्भर करती है।
किंतु, एक प्रश्न हर व्यक्ति के दिमाग में आता है कि आखिर मनुष्य ने कपड़ा पहनना शुरू क्यों किया ? विभिन्न प्रकार की ड्रेस कैसे बनी ?
बहुत से एंथ्रोपालोजिस्ट्स ने इन प्रश्नों के जवाब ढूँढने की कोशिश की है और इसके चलते काफी जानकारियाँ सामने आई हैं। समाज में बहुत से मनोवैज्ञानिकों ने भी अपने-अपने विचार इसमें जोडे हैं। प्रत्येक देश में अपनी-अपनी कथाएँ और मनोविज्ञान. परिधानों के बारे में अलग-अलग
हैं। हम एकदम निश्चित रूप से यह नहीं कह सकते कि आखिर मनुष्य ने कपड़ा पहनना क्यों शुरू किया था ? किंतु कुछ सिद्धांत ऐसे सामने आए हैं जिनके ऊपर बहुत से लोग विश्वास कायम करते हैं और बहुत से नहीं भी करते हैं।
49. रोग प्रतिरक्षण सारणी बताइए।
(Explain table of immunization schedule.)
उत्तर⇒रोग प्रतिरक्षण सारणी (Immunization schedule) के अनुसार कौन कौन से टीके कब लगवाये जाते हैं, उनका विवरण निम्न प्रकार हैं-
कब | क्या | क्यों |
16 से 36 सप्ताह | टी ० टी ० के दो टीके | गर्भवती महिला को लगाए जाते हैं। इससे माँ और नवजात शिशु को टेटनस से बचाव होता है। |
3 से 9 महीने के बीच | एक महीने के अंतर पर डी ० पी ० टी ० के तीन टीके और पोलियो की तीन खुराके देनी चाहिए | गलघोंटू (डिप्थीरिया), काली खाँसी (कुकुर खाँसी, टेटनस और पोलियो से बच्चे का बचाव। |
0 से एक महीने के बीच | बी ० सी ० जी ० टीका | तपेदिक (T.B.) से बचाव के लिए |
9 से 12 महीने के बीच | खसरे का एक टीका | खसरे से बच्चे का बचावा |
18 से 24 महीने के बीच | डी ० पी ० टी ० और पोलियो की एक-एक बूस्टर खुराक | गलघोंटू (डिप्थीरिया), काली खाँसी (कुकुर खाँसी) और टेटनस से बच्चे का बचावा |
15 माह | एम ० एम ० आर | खसरा, कनफेड, रूबैला सेबचावा |
5 से 6 वर्ष के बीच | टाइफाइड और डी ० पी ० टी ० के दो बूस्टर टीके | गलघोंटू (डिप्थीरिया), टिटनेस और ययफाइड बुखार से बच्चे काबचावा |
10 वर्ष | टी० टी० और टायफाइड के दो टीके | टिटनेस और टायफाइड से बचाव। |
16 वर्ष | टी ० टी ० और टायफाइड के दो टीके | टिटनेस और टायफाइड से बचाव। |
50. खाद्य-पद्धार्थों के मानक प्रमाण चिह्न के नाम उदाहरण सहित लिखें।
(Write the name with example of Standard Proof Symbol of food materials.)
उत्तर⇒ खाद्य पदार्थों के मानक प्रमाण चिह्नों के नाम उदाहरणसहित निम्नलिखित हैं-
मानक प्रमाण चिह्नों के नाम | उदाहरण | |
1. | एफ ० पी ० ओ ० (Fruit Product Order) | संरक्षित फल, सब्जियाँ, फलों के रस, फलों के पेय, स्कवैश, जैम, जैली, सूखे फल,शरबत, कृत्रिम सिरका, अचार, सीरप आदि। |
2. | आई ० एस ० आई ० (I.S.I.). | (शिशु दुग्ध आहार, पाउडर दूध, कोको पाउडर, आइसक्रीम, सेक्रीन, बिस्कुट, बेकिंग पाउडर, नमक, बेसन, पनीर, बीयर, रम, कस्टर्ड पाउडर, विद्युत-पंखे, इस्तिरी, चूल्हा, केतली, स्विच मिक्सी, प्रेशर कुकर एवं गैस चूल्हा आदि) कृषि एवं खाद्य, रसायन, सिविल इंजीनियरींग, चिकित्सा उपकरण, इलेक्ट्रोनिकी एवं दूर संचार, विद्युत तकनीकी, जहाजरानी भारवहन, पेट्रोलियम, कोयला, यांत्रिक इंजी ० संरचना और धातु एवं वस्त्रादि। |
3. | एगमार्क (AGMARK) | घी, मक्खन, खाद्य तेल, शहद, दालें, मसालें, आटा, बेसन आदि |
51. शरीर में जल का क्या कार्य है ?
(What is the function of water in the botty ?)
उत्तर⇒ शरीर में जल का निम्नलिखित कार्य हैं
(i) शरीर का निर्माण कार्य- शरीर के पूरे भार का 56% भाग जल का होता है। गुर्दे में 83%, रक्त में 85%, मस्तिष्क में 79%, मांसपेशियाँ में 72%, जिगर में 70% तथा अस्थियाँ में 25% जल होता है।
(ii) तापक्रम नियंत्रक के रूप में- जल शरीर के तापक्रम को नियंत्रित रखता है।
(iii) घोलक के रूप में- यही माध्यम है जिससे पोषक तत्वों को कोषों तक ले जाया जाता है तथा चयापचय के निरर्थक पदार्थों को निष्काषित किया जाता है। पाचन क्रिया में जल का प्रयोग होता है। मूत्र में 96% जल होता है। मल-विसर्जन में इसकी आवश्यकता होती है। इसकी कमी से कब्जियत होती है।
(iv) स्नेहक कार्य- यह शरीर के अस्थियों के जोड़ों में होने वाले रगड़ से बचाता है। संधियों के चारों तरफ थैलीनुमा ऊतक में यह उपस्थित होता है, जिसके नष्ट होने से संधियाँ जकड़ जाती हैं।
(v) शरीर के निरूपयोगी पदार्थों को बाहर निकालना- शरीर के विषैले पदार्थों को मूत्र तथा पसीने द्वारा यह बाहर निकालने में सहायक होता है।
(vi) नाजुक अंगों की सुरक्षा तथा पोषक तत्वों का हस्तांतरण करना- यह पोषक तत्त्वों को एक स्थान से दूसरे स्थान पहुंचाता है। साथ ही नाजुक अंगों का सुरक्षा भी करता है।