दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर Home Science Part – 2 (15 Marks)
11. विकास के विभिन्न क्षेत्रों में गृह विज्ञान का क्या योगदान एवं उपयोगिताएँ हैं? वर्णन करें।
(What are the applications of Home Science in the different field of development ? Describe.)
उत्तर⇒ विकास के विभिन्न क्षेत्रों में गृह विज्ञान का योगदान निम्न हैं :
(i) पारिवारिक स्तर के उत्थान में- गृह विज्ञान की शिक्षा प्राप्त लड़कियाँ जिन घरों में खती है उन्हें अपने सुझावों द्वारा लाभान्वित करती हैं। गह विज्ञान की छात्राएँ रेडियो एवं टी०वी० कार्यक्रमों के माध्यम से पत्र-पत्रिका लिखकर जन-जीवन का पारिवारिक स्तर ऊँचा उठाने में सहायता प्रदान करती है।
(ii) स्वास्थ्य के क्षेत्र में- गृह विज्ञान शिक्षा प्राप्त लड़कियाँ स्वयं के एवं परिवार के स्वास्थ्य के प्रति सचेत रहती है। स्वच्छता बच्चों को समय पर टीका लगवाना आदि कार्य कुशलता से करती है।
(iii) पोषण के क्षेत्र में- गृह विज्ञान के अंतर्गत पोषण ज्ञान प्राप्त कर लड़कियाँ कम खर्च में प्रत्येक आयु वर्ग के लिए पोषक तत्वों से युक्त आहार आयोजन करती है।
(iv) रोजगार के क्षेत्र में- गृह विज्ञान स्नातक लड़कियाँ कृषि अनुसंधान, पशुपालन, डेयरी, प्रसार शिक्षा निदेशालय, शिक्षण संस्थानों, पाक कला, सिलाई, हस्त शिल्प एवं स्वयं प्रशिक्षण केन्द्र आरम्भ करके धन अर्जित कर सकती है एवं दूसरों को रोजगार दे सकती है।
(v) बाल शिक्षा एवं स्त्री शिक्षा के क्षेत्र में- गृह विज्ञान शिक्षा प्राप्त लड़कियाँ बच्चों के पठन-पाठन में सहयोग देती है। ये लड़कियाँ स्त्रियों को शिक्षित कर एवं रोजगार के नये अवसर प्रदान कर उन्हें आत्मनिर्भर बनाता है।
12. भारत में खुले में शौच समस्या का समाधान क्यों मुश्किल है ?
(Why problem of defection in open areas is difficult to solve in India?)
उत्तर⇒ भारत में शौच समस्या का समाधान निम्न कारणों से मुश्किल है-
(1) शौचालय की खुबियों से अनभिज्ञता के कारण भारत के लोग शौच की समस्या से ग्रस्त हैं।
(2) भारत के लोग पुरानी दिनचर्या को छोड़ने से इंकार के कारण भी शौच की समस्या है।
(3) रूढ़िवादी परम्पराओं के कारण भी शौच की समस्या है। लोग अपनी आदतों को बदलना नहीं चाहते।
(4) “खुले में शौच करने के कई फायदे हैं” का समर्थन करना भी इसका कारण है।
(5) भारत गाँवों का देश है। गाँवों में लोग अशिक्षित, गरीब तथा अज्ञानता के कारण सरकार द्वारा दी गयी शौचालय निर्माण सहायता की जानकारी की कमी या उससे अंजान रहते हैं।
13. आहार आयोजन के महत्त्व क्या हैं ?
(What is the importance of meal planning ?)
उत्तर⇒ परिवार के सभी सदस्यों को स्वस्थ रखने के लिए आहार का आयोजन आवश्यक है। आहार आयोजन का महत्त्व निम्न कारणों से है-
(i) श्रम, समय एवं ऊर्जा की बचत- आहार आयोजन में आहार बनाने के लिए ही इसकी योजना बना ली जाती है। आवश्यकतानुसार यह आयोजन दैनिक, साप्ताहिक, अर्द्धमासिक तथा मासिक बनाया जा सकता है। इससे समय, श्रम तथा ऊर्जा की बचत होती है।
(ii) आहार में विविधता एवं आकर्षण- आहार में सभी भोज्य वर्गों का समायोजन करने से आहार में विविधता तथा आकर्षण उत्पन्न होता है। साथ ही आहार पौष्टिक, संतुलित तथा स्वादिष्ट हो जाता है।
(iii) बच्चों में अच्छी आदतों का विकास करना- चूँकि आहार में सभी खादय वर्गों को शामिल किया जाता है। इससे बच्चों को सभी भोज्य पदार्थ खाने की आदत पड़ जाती है। इससे ऐसा नहीं होता कि बच्चा किसी विशेष भोज्य पदार्थ को ही पसंद करे तथा अन्य को ना पसंद करे।
(iv) निर्धारित बजट में संतुलित एवं रुचिकर भोजन- आहार का आयोजन करते समय निर्धारित आय की राशि को परिवार की आहार आवश्यकताओं के लिए इस प्रकार वितरित किया जाता है। जिससे प्रत्येक व्यक्ति की रुचि तथा अरुचि का भी ध्यान रखा जाता है और प्रत्येक व्यक्ति को संतुलित आहार भी प्रदान किया जाता है। आहार आयोजन के बिना कोई भी व्यक्ति कभी भी आहार ले सकता है। परंतु व्यक्ति को पौष्टिक आवश्यकताओं को पूरा करने में समर्थ नहीं हो सकता है। आहार आयोजन के बिना परिवार की आय को आहार पर खर्च करने से बजट भी असंतुलित हो जाता है।
14. आहार आयोजन क्या है? आहार आयोजन को प्रभावित करने वाले कारकों का वर्णन करें।
(What is meal planning? Describe the factors affecting meal plannig.)
उत्तर⇒ आहार आयोजन का अर्थ आहार की ऐसी योजना बनाने से है जिससे सभी पोषक तत्त्व उचित तथा संतुलित मात्रा में प्राप्त हो सके। आहार का आयोजन इस प्रकार से करना चाहिए कि आहार लेने वाले व्यक्ति के लिए यह पौष्टिक, सुरक्षित, संतुलित हो तथा उसके सामार्थ्य में हो।
आहार आयोजन को प्रभावित करने वाले कारक निम्न हैं-
(i) परिवार के सदस्यों की संख्या- परिवार के सदस्यों की संख्या आहार आयोजन को प्रभावित करती हैं। गृहिणी को आहार आयोजन करते समय घर के सदस्यों की संख्या के अनुसार विभिन्न भोज्य पदार्थों की मात्रा का अनुमान लगाया जाये। कम सदस्यों में कम तथा अधिक सदस्यों में अधिक भोज्य पदार्थों की आवश्यकता होती है।
(ii) आयु-भिन्न-भिन्न आयु जैसे-बच्चे, बुढ़े, किशोर तथा प्रौढ़ के लिए पोषण संबंधी माँग भी भिन्न-भिन्न होती है। बाल्यावस्था में अधिक ऊर्जा वाले भोज्य पदार्थ तथा वृद्धावस्था में पाचन शक्ति कमजोर होने से ऊजो की मांग कम हो जाती है।
(iii) लिंग- आहार आयोजन में स्त्री तथा पुरुष की पोषण आवश्यकताओं में अन्तर होता है। एक आयु के पुरुष और महिला के एक ही व्यवसाय में होने पर भी उनकी पोषण आवश्यकताएँ भिन्न होती हैं। पुरुष की पोषण संबंधी माँग स्त्री की अपेक्षा अधिक होती है।
(iv) शारीरिक आकार- शारीरिक आकार के अनुसार पोषण माँग भी भिन्न-भिन्न होती है। लम्बे चौड़े व्यक्तियों को दुबले-पतले व्यक्तियों की अपेक्षा अधिक पौष्टिक तत्त्वों की आवश्यकता पड़ती है।
(v) रुचि- परिवार में सभी सदस्यों की रुचियों में विभिन्नता होती है। आहार आयोजन करते समय सभी सदस्यों की रुचियों को ध्यान में रखना चाहिए। बच्चों को दूध-पसंद नहीं हो तो उसकी जगह हॉर्लिक्स, खीर, कस्टर्ड आदि दिया जा सकता है।
(vi) धर्म- कुछ धर्मों में माँस, मछली, अण्डा, प्याज तथा लहसून आदि खाना वर्जित है। इस बात का आहार आयोजन करते समय ध्यान रखना चाहिए।
(vii) व्यवसाय- प्रत्येक व्यक्ति का व्यवसाय अलग-अलग होता है। कोई व्यक्ति शारीरिक परिश्रम अधिक करता है तो कोई मानसिक परिश्रम अधिक करता है। शारीरिक श्रम करने वाले को कार्बोज तथा वसा देना चाहिए इसके विपरीत मानसिक श्रम करने वाले को प्रोटीन, खनिज तत्त्व तथा विटामिन देना चाहिए।
(viii)जलवायु तथा मौसम-जलवायु तथा मौसम भी आहार आयोजन को प्रभावित करता गर्मी में ठण्डे पेय पदार्थ तथा सर्दियों में गर्म चाय, कॉफी तथा सप आदि पदार्थ दिये जाते दी जलवायु में वसा वाले भोज्य पदार्थ शामिल किये जाते हैं।
(ix)आदत-आहार आयोजन आदतों को प्रभावित करता है। किसी को चाय अधिक पीने आदत है, किसी को दूध पीना अच्छा लगता है, किसी को हरी सब्जी सलाद पसंद है। बच्चा लाई चाकलेट, आइसक्रीम, चाट, पकौड़ा पसंद होती है। आहार आयोजन में इसका भी ध्यान रखा जाता है।
(x) विशेष अवस्था- गर्भावस्था तथा धात्री अवस्था में पोषक तत्त्वों की माँग बढ़ जाती ही रोगावस्था में क्रियाशीलता कम होने के कारण ऊर्जा की माँग कम हो जाती है। मधुमेह में कार्बोज हानिकारक होता है। आहार में इसे शामिल नहीं करना चाहिए।
15. स्तनपान क्या है? यह शिशु के लिए आवश्यक क्यों है?
(What is breast feeding? Why it is necessary for the child ?)
उत्तर⇒ संसार में आने के बाद शिशु के पोषण के लिए आहार के रूप में माँ का दूध सर्वोत्तम माना जाता है। जन्म के बाद दूध ही शिशु का आहार होता है। शिशु के इस आहार का प्रबंध माता के स्तन द्वारा होता है। यह प्राकृतिक आहार है जो शिशु के लिए अमृत समान होता है। माता द्वारा अपने शिशु को स्तनों से दूध पिलाने की क्रिया स्तनपान कहलाती है।
स्तनपान शिशु को कई कारणों से आवश्यक है-
(i) माता के स्तनों से निकला पहला पीला गाढ़ा दूध जिसे कोलेस्ट्रम कहते हैं, शिशुओं को रोगों से लड़ने की क्षमता प्रदान करता है।
(ii) शिशु के लिए सर्वाधिक पौष्टिक और संतुलित आहार है।
(iii) शिशु के लिए सर्वाधिक पाचन तंत्र के अनुकूल है।
(iv) दूषणरहित है।
(v) उचित तापक्रम पर उपलब्ध है।
(vi) मिलावट रहित है।
(vii) सुरक्षित और आसानी से उपलब्ध है।
(viii)आर्थिक दृष्टि से लाभप्रद है।
(ix) माँ एवं बच्चे के सुदृढ़ भावनात्मक सम्बंध को विकसित करने में सहायक है।
(x) दूध को बनाना नहीं पड़ा या गर्म ठंडा नहीं करना पड़ता, यह स्वतः ही माँ के स्तनों से प्राप्त हो जाता है। जिससे समय की बचत होती है।
16. बचत क्या है? इससे होने वाले लाभों का वर्णन करें।
(What is Saving ? Describe the benefits of Saving.)
उत्तर⇒ बचत-किन्स के अनुसार, “वर्तमान आय का. वर्तमान उपभोग व्यय पर आधिक्य. का बचत कहा जाता है।” उसे नियमित रूप से जमा करें। छोटी बचत की रकम ही इकट्ठी हाकर बड़ी रकम बनकर हमारा कार्य पूरा करती है। अतः बचत वह धन है, जो उत्पादक कार्यों म विनियोजित किया जाए और निश्चित समयोपरांत बढ़ी हुई धनराशि के रूप में प्राप्त हो।
बचत के लक्ष्य या महत्त्व- बचत के लक्ष्य या महत्त्व निम्नलिखित हैं-
(i) मितव्ययिता की आदत- एक प्रसिद्ध उक्ति है-“महत्त्वपूर्ण यह नहीं है कि हम कितना कमाते हैं। महत्त्वपूर्ण यह है कि हम कितना बचा लेते हैं।” व्यय करने की कोई सीमा नहीं होती है। बचत से परिवार के सदस्यों में मितव्ययिता की आदत पड़ जाती है। मितव्ययी नहीं होने स मनुष्य सदैव अपनी आमदनी से अधिक खर्च कर डालता है।
(ii) आकस्मिक आवश्यकताओं की पूर्ति- प्रत्येक परिवार में आकस्मिक दुर्घटना तथा शारीरिक असमर्थता, चाहे वह गंभीर रोग से हो या बुढ़ापे से, आदमी को आर्थिक कष्ट में डाल देती है। जो परिवार नियमित रूप से बचत करता है वह अपने भविष्य के प्रति निश्चित रहता है।
(ii) भविष्य में अपरिहार्य कारणों से आय बंद होने की स्थिति में बचत का महत्त्व समझ में आने लगता है।
(iv) आकस्मिक खर्च की पूर्ति- घर में आग लग जाने, चोरी हो जाने, महँगाई बढ़ जाने, परिवार के मुखिया की मृत्यु हो जाने आदि पर संचयित राशि ही परिवार को आर्थिक संकट से उबारती है।
(v) अनावश्यक खर्चों पर प्रतिबंध- बचत करने के लिए व्यय की रूपरेखा बनाकर ही परिवार के सदस्य व्यय करते हैं। बचत की आदत पड़ जाने से अनावश्यक खर्च कम किया जा सकता है।
(vi) बचत की राशि के उचित विनियोग से लाभांश की रकम काफी बढ़ जाती है।
(vii) स्थायी संपत्ति की खरीद- इस राशि का उपयोग कर मकान या जमीन जैसी अचल संपत्ति क्रय की जा सकती है जो आय के साधन के साथ ही सामाजिक प्रतिष्ठा प्रदान करती है।
(viii) बचत किया हुआ धन अपने पास रहने पर व्यक्ति अधिक संतुष्टि का अनुभव करता है। वह किसी भी स्थिति से निपटने का हौसला रखता है जिससे उसकी हीन भावना दूर होकर उसमें मनोवैज्ञानिक निचिंतता आती है।
(ix) राष्ट्रीय योजनाओं के संचालन में मदद- बैंकों में संचयित राशि राष्ट्रीय योजनाओं को पूर्ण करने में या उनके संचालन में विनियोग कर दी जाती है। अतः राष्ट्र के विकास एवं रक्षा के आवश्यक साधनों पर भी बचत का उपयोग होता है।
(x) बचत करने से मुद्रास्फीति पर भी नियंत्रण किया जा सकता है। बचत का सदुपयोग के क्रम में भारत सरकार ने दो प्रकार की प्रणाली का निर्माण किया पहली बैंकिंग प्रणाली तथा दूसरी नॉनबैंकिंग प्रणाली कहलाती है। दोनों संस्थाएँ भारतीय रिजर्व बैंक के मानदंडों के अनुसार ही चलती हैं, किंतु दोनों संस्थाओं के कार्य करने के तरीके अलग-अलग हैं।
इसके अलावा भारतीय डाक एवं तार विभाग के द्वारा संचालित पोस्ट ऑफिस का बचत विभाग है। यह पूर्णरूप से सरकार की ही संस्था है। इस पर भारतीय रिजर्व बैंक का विधान ला नहीं होता है। सरकारी या अर्द्ध-सरकारी निकायों में कार्यरत व्यक्तियों के लिए अनिवार्य भवि निधि योजना एवं कन्ट्रीब्यूटरी प्रोविडेंड फंड एवं सामूहिक बीमा योजना आदि द्वारा बचत एवं उनपर मिलने वाले ब्याज दर पर सीधे राज्य या केंद्र सरकार का नियंत्रण होता है। पोस्ट ऑफिस में भी सामान्य बैंकों की तरह साधारण बचत खाता, आवर्ती जमा योजना, सावधि बचत योजना. किसान विकास-पत्र, राष्ट्रीय बचत पत्र आदि हैं तथा नॉनबैंकिंग प्रणाली की तरह डाक जीवन बीमा (पोस्टल लाइफ इंश्योरेन्स) स्कीम आदि हैं।
17. बच्चों की देखरेख की क्या-क्या वैकल्पिक व्यवस्था की जा सकती है ?
(What are the substitute arrangement for caring of children ?)
उत्तर⇒ बच्चों की वृद्धि एवं विकास के लिए उसकी उचित देख-भाल होना आवश्यक होता है। बच्चे की देख-भाल करने का पूर्ण दायित्व उसके माता-पिता पर होता है परंतु आवश्यकता पड़ने पर वे किसी-न-किसी प्रकार के वैकल्पिक व्यवस्था का चुनाव कर सकते हैं जो निम्नलिखित से प्राप्त की जा सकती है-
(i) परिवार में भाई-बहन- माता-पिता की अनुपस्थिति में बड़े भाई-बहन अपने छोटे भाई-बहन की देख-भाल कर सकते हैं। बड़े भाई-बहन बच्चे के साथ खेल सकते हैं, उसे घुमा सकते हैं, उसे दूध पिला सकते हैं, कहानी सुना सकते हैं आदि।
(ii) परिवार में दादा-दादी या नाना-नानी- संयुक्त परिवार में जहाँ दादा-दादी, चाचा-चाची, आ. ताई आदि एक ही घर में एक साथ रहते हैं, वहाँ माता-पिता की अनुपस्थिति में परिवार के अन्य सदस्य बच्चे की देख-रेख कर लेते हैं। परिवार में दादा-दादी तथा अन्य सदस्यों की अनपस्थिति बच्चे के व्यक्तित्व पर अनुकूल प्रभाव डालती है। दादा-दादी या नाना-नानी बच्चे को प्यार तथा सुरक्षा प्रदान करते हैं और आवश्यकता पड़ने पर बच्चे के माता-पिता को भी मार्ग दर्शन प्रदान करते हैं। बच्चों में इससे नैतिक गुणों का विकास होता है।
(iii) पड़ोसी- पड़ोसियों के साथ चाहे कितने ही परिवर्तन आये हों फिर भी हमारे यहाँ आने जाने वाले लोगों से हम घनिष्ठ हो जाते हैं और एक-दूसरे की सहायता करने के लिए हमेशा तैयार रहते हैं। आवश्यकता पड़ने पर पड़ोसियों के संरक्षण में बच्चे को छोड़ा जा सकता है।
(iv) परिवार में आया- अमीर शहरी घरानों में आया व्यापक रूप से पायी जाती है। आया/नौकरानी की अच्छी तरह छानबीन करके उसकी विश्वसनीयता और योग्यता परख कर ही आया रखनी चाहिए। अपने बच्चे की सुरक्षा के लिए. माता-पिता को इन पर कड़ी निगरानी रखनी चाहिए।
(v) शिशु सदन- वर्तमान समय में शिशु सदन (क्रेच) बच्चों की देखभाल में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। यह शिशु सदन सरकार, स्वयंसेवी संगठनों तथा व्यवसायिक संगठनों द्वारा चलाये जाते हैं। यह एक ऐसा सुरक्षित स्थान है जहाँ बच्चों को सही देख-भाल में तब तक छोड़ा जा सकता है जब तक माता-पिता काम में व्यस्त हों।
18. बच्चों को क्रेच में रखने से क्या लाभ है ?
(What are the benefits of keeping children in creche ?)
उत्तर⇒ बच्चे को उचित देखभाल जिस संस्थान में की जाती है वह क्रेच (शिशु सदन) दलाती है। शिशु सदन द्वारा उपलब्ध सुविधाएँ निम्नलिखित हैं
(i) यह बच्चे को निश्चित समय तथा तापमान पर दूध तथा आहार प्रदान करता है।
(ii) इसमें बच्चों को खिलौने प्रदान किये जाते हैं जो बच्चों को प्रसन्न वातावरण में सामाजिक बनाने में सहायता करते हैं।
(iii) यह बच्चे को साफ और सुरक्षित वातावरण प्रदान करता है।
(iv) यह बच्चों को औषधि तथा प्राथमिक चिकित्सा प्रदान करता है।
(v). छोटे बच्चे को इसके स्टाफ द्वारा खाना खिलाया जाता है।
(vi) यह प्रत्येक छोटे बच्चे को चारपाई प्रदान करता है।
(vii) इसमें छोटे बच्चे खिलौने होने से खेलने का आनंद उठाते हैं।
(viii) यह बच्चों को मेज पर बैठकर खाने का ढंग सिखाता है।
19. बच्चों में असमर्थता के क्या कारण होते हैं ?
(What are the reasons of disability in children ?)
उत्तर⇒ लगभग प्रत्येक व्यक्ति में कुछ न कुछ शारीरिक, मानसिक या सामाजिक असमर्थता पायी जाती है। उसे समूह का हिस्सा बनने से रोकती है। कुछ ऐसे व्यक्ति भी होते हैं जो अधिक गंभीर असमर्थता से ग्रसित होते हैं, ऐसा व्यक्ति हो सकता है. व्हील चेयर का उपयोग करते हों या कान में सुनने वाली मशीन पहनते हों या लम्बे समय से अपनी मानसिक विकलांगता का इलाज करा रहे हों, यह सभी स्थितियाँ किसी व्यक्ति की असमर्थता का प्रतीक मानी जाती हैं।
बच्चों में असमर्थता के निम्नलिखित कारण हैं-
(i) जन्म से पूर्व- गर्भ के समय माँ को किसी पौष्टिक तत्त्व की कमी से शिश को शारीरिक तथा मानसिक असमर्थता हो सकती है। माँ के गर्भ में चोट लगने तथा गर्भ के समय किसी प्रकार की बीमारी या संक्रमण का भी गर्भस्थ शिशु पर बुरा प्रभाव पड़ता है।
(ii) जन्म के समय- जन्म के समय प्रसव में देर होने पर कई बार शिशु के मस्तिष्क को ऑक्सीजन नहीं मिलती है जिससे उसके स्नायुतंत्र तथा मस्तिष्क की कोशिकाओं को चोट पहुँचती है और वह मानसिक न्यूनता से ग्रस्त हो सकता है। कई बार वह शारीरिक रूप से भी अक्षम हो जाता है।
(iii) जन्म के पश्चात्- जन्म के बाद शिशु की उचित देखभाल बहुत आवश्यक है। यदि शिशु की देखभाल सही ढंग से नहीं हो तो वह शारीरिक और मानसिक रूप से असमर्थ हो सकता है।
(iv) कुपोषण- शिशु में संतुलित आहार की कमी के कारण भी असमर्थता हो जाता हैं। जब शिशु विकास की अवस्था में होता है तो उसे संतुलित आहार मिलना चाहिए। उदाहरण के लिए कैल्सियम की कमी से हड्डियों का विकास नहीं होता, प्रोटीन की कमी से शारीरिक विकास
और वृद्धि ठीक नहीं होती, विटामिन ‘A’ की कमी से अंधापन होता हैं आदि।
(v) दुर्घटना- किसी दुर्घटना के कारण बालक शारीरिक रूप से अक्षम हो जाता है।
(vi) आनुवंशिकता- आनुवंशिकता के कारण असमर्थता के जीन्स माता-पिता द्वारा प्राप्त होते हैं और जन्म से ही बच्चा अंधा, बहरा या गुंगा होता है।
(vii) संक्रमण रोग- बच्चे को संक्रमण रोग हो जाता है वैसी स्थिति में बच्चा असमर्थ हो जाता है। जैसे—पोलियो होने पर वह टाँगों से लाचार हो जाता है।
20. जन्म से लेकर एक वर्ष तक के बच्चों के शारीरिक विकास का वर्णन करें।
(Describe the body development of children from birth to one year old.)
उत्तर⇒ जन्म से लेकर एक वर्ष तक के बच्चों के शारीरिक विकास निम्नलिखित हैं-
(i) भार या वजन- शिशु का वजन जन्म के समय लगभग 27 से 3 किलोग्राम का होता है। चार माह में दोगुना और एक वर्ष में 8.5 से 9 किलोग्राम हो जाता है।
(ii) आकार एवं लम्बाई- नवजात शिशु के जन्म के समय 270 अस्थियाँ होती है जो नर्म एवं स्पंजनुमा होती है। जन्म के समय लम्बाई 45-52 सेमी० एक वर्ष में लम्बाई लगभग 68 सेमी० एक वर्ष में लम्बाई लगभग 68 सेमी० हो जाती है।
(ii) चेहरा एवं सिर- जन्म के समय शिशु का अनुपात उसकी कुल लम्बाई का 22% होता है। जैसे-जैसे आयु बढ़ती है सिर का क्षेत्रफल शरीर के अनुपात में कम हो जाती है।
(iv) हाथ पैर और दाँत- जन्म के समय शरीर के अन्य अंगों की तुलना में हाथ पैर छोटे होते हैं। आयु के साथ पैर की लम्बाई बढ़ने लगती है। शिशु के दाँत 6 माह से 1 वर्ष की आयु के बीच मसूढों से बाहर निकलते हैं।
(v) नाडी एवं पाचन संस्थान- शिशु में नाड़ी संस्थान का विकास गर्भावस्था से ही प्रारंभ हो जाता है। जन्म के समय शिशु के पेट की क्षमता 25 ग्राम होती है। एक माह के शिशु की पेट की क्षमता 80 ग्राम हो जाती है।