Political Science

Class 12th Political Science ( दीर्घ उत्तरीय प्रश्न ) PART- 2


Q.11. ‘बांग्लादेश में लोकतंत्र’ विषय पर एक लेख लिखिए।

Ans ⇒  बांग्लादेश में लोकतंत्र (Democracy in.Bangladesh):

1. (a) पृष्ठभूमि (Background) – 1947 से 1971 तक बांग्लादेश पाकिस्तान का अंग था। अंग्रेजी राज के समय के बंगाल और असम के विभाजित हिस्सों से पूर्वी पाकिस्तान का यह क्षेत्र बना था। इस क्षेत्र के लोग पश्चिमी पाकिस्तान के दबदबे और अपने ऊपर उर्दू भाषा को लादने के खिलाफ थे। पाकिस्तान के निर्माण के तुरंत बाद ही यहाँ के लोगों ने बंगाली संस्कृति और भाषा के साथ किए जा रहे दुर्व्यवहार के खिलाफ विरोध जताना शुरू कर दिया। इस क्षेत्र की जनता ने प्रशासन में अपने समुचित प्रतिनिधित्व तथा राजनीतिक सत्ता में समुचित हिस्सेदारी की मांग भी उठायी।

(b) पश्चिमी पाकिस्तान के प्रभुत्व के खिलाफ जन-संघर्ष का नेतृत्व शेख मुजीबुर्रहमान ने किया। उन्होंने पूर्वी क्षेत्र के लिए स्वायत्तता की माँग की। शेख मुजीबुर्रहमान के नेतृत्व वाली आवामी लीग को 1970 के चुनावों पूर्वी पाकिस्तान के लिए प्रस्तावित संविधान सभा में बहुमत हासिल हो गया लेकिन सरकार पर पश्चिमी पाकिस्तान के नेताओं का दबदबा था और सरकार ने इस सभा को आहूत करने से इंकार कर दिया।

(c) शेख मुजीबुर को गिरफ्तार कर लिया गया। जनरल याहिया खान के सैनिक शासन में पाकिस्तानी सेना ने बंगाली जनता के जन-आंदोलन को कुचलने की कोशिश की। हजारों लोग पाकिस्तानी सेना के हाथों मारे गए। इस वजह से पूर्वी पाकिस्तान से बड़ी संख्या में लोग भारत पलायन कर गए। भारत के सामने इन शरणार्थियों को सँभालने की समस्या आ खड़ी हुई।


2. भारत का समर्थन (Support of India) – भारत की सरकार ने पूर्वी पाकिस्तान के लोगों की आजादी की माँग का समर्थन किया और उन्हें वित्तीय और सैन्य सहायता दी। इसके परिणामस्वरूप 1971 में भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध छिड़ गया। युद्ध की समाप्ति पूर्वी पाकिस्तान में पाकिस्तानी सेना के आत्मसमर्पण तथा एक स्वतंत्र राष्ट्र ‘बांग्लादेश’ के निर्माण के साथ हुई। बांग्लादेश ने अपना संविधान बनाकर उसमें अपने को एक धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक तथा समाजवादी देश घोषित किया। बहरहाल, 1975 में शेख मुजीबुर्रहमान ने संविधान में संशोधन प्रणाली को मान्यता मिली। शेख मुजीबुर ने अपनी पार्टी आवामी लीग को छोड़कर अन्य सभी पार्टियों को समाप्त कर दिया। इससे तनाव और संघर्ष की स्थिति पैदा हुई।

3. सैनिक विद्रोह (1975) अन्ततः लोकतंत्र की पुनः स्थापना (Military Revolt (1975) and atless democracy wasre stablished)-

(a) 1975 के अगस्त में सेना ने उनके खिलाफ बगावत कर दिया और इस नाटकीय तथा त्रासद घटनाक्रम में शेख मुजीबुर सेना के हाथों मारे गए। नये सैनिक-शासन जियाऊर्रहमान ने अपनी बांग्लादेश नेशनल पार्टी बनायी और 1979 के चुनाव में विजयी रहे। जियाउर्रहमान की हत्या हुई और लेफ्टिनेंट जनरल एच. एम. इरशाद के नेतृत्व में बांग्लादेश में एक और सैनिक-शासन ने बागडोर सँभाला।

(b) बांग्लादेश की जनता जल्दी ही लोकतंत्र के समर्थन में उठ खड़ी हुई। आंदोलन में छात्र आगे-आगे चल रहे थे। बाध्य होकर जनरल इरशाद ने एक हद तक राजनीतिक गतिविधियों की छूट दी। इसके बाद के समय में जनरल इरशाद पाँच सालों के लिए राष्ट्रपति निर्वाचित हुए। जनता के व्यापक विरोध के आगे झुकते हुए लेफ्टिनेंट जनरल इरशाद को राष्ट्रपति का पद 1990 में छोड़ना पड़ा। 1991 में चुनाव हुए। इसके बाद से बांग्लादेश में बहुदलीय चुनावों पर आधारित प्रतिनिधिमूलक लोकतंत्र कायम है। 2016 में भारत और बंगलादेश में एक समझौता हुआ जिसमें दोनों देशों के बीच आपसी सहयोग में वृद्धि हुई।


Q.12. राज्य क्षेत्र के विस्तार एवं नए आर्थिक हितों के उदय पर लेख लिखिए।

Ans ⇒  प्रस्तावना (Introduction) – अनेक वर्षों की अधीनता के बाद स्वतंत्र भारत के नियोजन को अपनाने का निर्णय लिया गया। क्योंकि उस समय व्यावहारिक रूप में देश की बागडोर जवाहर लाल नेहरू जैसे समाजवादी विचारधारा से प्रभावित नेता के पास थी। रोजगार को उत्पन्न करने के लिए भारत में राज्य क्षेत्र को विकसित किया और देश में नए आर्थिक हितों को जन्म दिया गया। उन सभी गलत आर्थिक नीतियों को छोड़ने का प्रयास किया गया जो साम्राज्यवादियों ने अपने मातृ देश (ब्रिटेन) के हित के लिए लिखी थी।

रोजगार बढ़ाने का प्रयास (Means to increase employment) – 1 अप्रैल 1951 से पहली योजना लागू हुई यद्यपि इस योजना में कृषि पर सबसे ज्यादा जोर दिया गया। लेकिन सरकार ने ऐसे कार्यक्रमों को अधिक प्राथमिकता दी जिससे देश के लोगों को ज्यादा से ज्यादा रोजगार न दिया जा सके क्योंकि रोजगार मिलने पर ही देश की गरीबी दूर हो सकती थी। देश के अर्थशास्त्री और राजनीतिज्ञ यह मानते थे कि योजनाओं द्वारा निश्चित लागत से बनाये गये कार्यक्रमों से लागत हटकर हम रोजगार के अवसरों में वृद्धि करने के बारे में नहीं सोच सकते। द्वितीय पंचवर्षीय योजना स्पष्ट करती है, “निम्नलिखित लागत से रोजगार अंतर्निहित है और अवश्य ही, लागत के स्वरूप को निश्चित करते समय इस सोच-विचार को एक प्रमुख स्थान दिया जाता है। इस तरह की योजना में लागत की पर्याप्त मात्रा में वृद्धि होगी तथा विकासवादी खर्च का अर्थ है कि वह आय में वृद्धि करेगा तथा हर क्षेत्र में श्रम – की मांग में वृद्धि करेगा।

सार्वजनिक उद्योगों का विस्तार (ExpansionofPublic Industry) – देश में भारी उद्योगों को लगाने, तेल की खोज और कोयले के विकास के साथ-साथ परमाणु ऊर्जा के विकास के कार्यक्रमों को शुरू करने के लिए आवश्यक कदम उठाए गए। इन सभी कार्यक्रमों को चलाने का मुख्य दायित्व देश की केन्द्रीय सरकार पर था। पहली योजना की बजाय दूसरी योजना में इस कार्यक्रम पर अधिक ध्यान दिया गया। अनेक देशों की सहायता से सार्वजनिक क्षेत्र में बड़े-बड़े लौह इस्पात उद्योग शुरू किए गए।

नए आर्थिक हित (New Econominc interest) – देश में आर्थिक हितों को संरक्षण और बढ़ावा देने के लिए सार्वजनिक क्षेत्र के साथ-साथ निजी क्षेत्र को भी अपनाया गया। वस्तुतः समाजवाद और पूँजीवाद व्यवस्थाओं के सभी गुणों को अपनाने का प्रयत्न किया गया। देश में एक नई आर्थिक नीति मिश्रित अर्थव्यवस्था की नीति को अपनाया गया। रोजगार के क्षेत्र में सार्वजनिक खासकर सेवाओं (service) द्वारा रोजगार देने वाला एक विशाल उद्यम विकसित हो सका। यद्यपि देश में सरकार को आशा के अनुरूप सफलताएँ नहीं मिली और रोजगार के अवसर धीमी गति से ही उत्पन्न हो सके।


Q.13. भारत की विदेश नीति के प्रमुख लक्ष्यों अथवा उद्देश्यों का विवेचन कीजिए।

Ans ⇒ प्रत्येक राष्ट्र की विदेश नीति का उद्देश्य राष्ट्रीय हितों की पूर्ति करना होता है। अतः भारत की विदेश नीति का भी प्रमुख लक्ष्य अथवा उद्देश्य राष्ट्रीय हितों की पूर्ति व विकास करना है। भारतीय विदेश नीति के प्रमुख लक्ष्य निम्नलिखित हैं –

1. अंतराष्ट्रीय शांति व सुरक्षा का समर्थन करना तथा आपसी मतभेदों के शांतिपूर्ण समाधान का प्रयत्न करना।

2. विश्वव्यापी तनाव दूर करके परस्पर समझौते को बढ़ावा देना और संघर्ष नीति तथा सैन्य गुटबाजी का विरोध करना।

3. शस्त्रों की होड़ विशेष रूप से आणविक शस्त्रों की होड़ का विरोध करना तथा व्यापक निःशस्त्रीकरण का समर्थन करना।

4. राष्ट्रीय सुरक्षा को बढावा देना ताकि राष्ट्र की स्वतंत्रता व अखंडता पर हर प्रकार के खतरे को रोका जा सके।

5. साम्राज्यवाद, उपनिवेशवाद, नस्लवाद, पृथकतावाद तथा सैन्यवाद का विरोध करना।

6. स्वतंत्रता आंदोलन, लोकतांत्रिक संघषों व आत्म निर्धारण के संघर्षों का समर्थन करना।

7. शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व तथा पंचशील के आदर्शों का बढ़ावा देना।

8. विश्व के सभी राष्ट्रों विशेष तौर से पड़ोसी राष्ट्रों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध बनाए रखना।

9. राष्ट्रों के बीच संघर्ष वातावरण को कम करना व उनमें आपसी सूझ-बूझ तथा मैत्रीपूर्ण संबंधों को बढ़ावा देना।

10. एक लोकतांत्रिक विश्व की स्थापना के लिए मानव अधिकारों को एक आवश्यक शर्त के रूप में मान्यता दिए जाने तथा उन्हें लागू किए जाने पर जोर देना।

11. भारत विश्व स्तर पर आतंकवाद को समाप्त करना चाहता है।


Q.14. संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत की भूमिका पर आलोचनात्मक टिप्पणी कीजिए।

Ans ⇒  संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना 24 अक्टूबर, 1945 ई. को हुई। इसका मुख्य उद्देश्य विश्व में शांति स्थापित करना तथा ऐसा वातावरण बनाना जिससे सभी देशों की सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक समस्याओं को सुलझाया जा सके। भारत संयुक्त राष्ट्र संघ का संस्थापक सदस्य है तथा इसे अन्तर्राष्ट्रीय सद्भावना तथा विश्व शांति के लिए एक महत्वपूर्ण संस्था मानता है।

संयुक्त राष्ट्र में भारत की भूमिका (India’s Role in the United Nations):

1. चार्टर तैयार करवाने में सहायता (Help inPreparation oftheU. N. Charter) – संयुक्त राष्ट्र का चार्टर बनाने में भारत ने भाग लिया। भारत की ही सिफारिश पर संयुक्त राष्ट्र संघ ने चार्टर में मानव अधिकारों और मौलिक स्वतंत्रताओं को बिना किसी भेदभाव के लागू करने के उद्देश्य से जोड़ा। सान फ्रांसिस्को सम्मेलन में भारतीय प्रतिनिधि श्री सं० राधास्वामी मुदालियर ने इस बात पर जोर दिया कि यद्धों को रोकने के लिए आर्थिक और सामाजिक न्याय का महत्त्व सर्वाधिक होना चाहिए। भारत संयुक्त राष्ट्र के चार्टर पर हस्ताक्षर करने वाले प्रारंभिक देशों में से एक था।

2. संयुक्त राष्ट्र संघ की सदस्यता बढ़ाने में सहयोग (Co-operation for increasing the membership of United Nations) – संयुक्त राष्ट्र संघ का सदस्य बनने के लिए भारत ने विश्व के प्रत्येक देश को कहा है। भारत ने चीन, बांग्लादेश, हंगरी, श्रीलंका, आयरलैंड और रूमानिया आदि देशों को संयुक्त राष्ट्र संघ का सदस्य बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

3. आर्थिक और सामाजिक समस्याओं को सुलझाने में सहयोग (Co-operation for solving the Economic and Social Problems) – भारत ने विश्व की सामाजिक व आर्थिक समस्याओं को सुलझाने के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ के माध्यम से एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। भारत ने हमेशा आर्थिक रूप से पिछड़े हुए देशों के आर्थिक विकास पर बल दिया है और विकसित देशों से आर्थिक मदद और सहायता देने के लिए कहा है।

4. निःशस्त्रीकरण के बारे में भारत का सहयोग (India’s Co-operation to U.N. for the disarmament) – संयुक्त राष्ट्र संघ के चार्टर में महासभा और सुरक्षा परिषद दोनों के ऊपर यह . जिम्मेदारी डाल दी गई है कि नि:शस्त्रीकरण के द्वारा ही विश्व शांति को बनाये रखा जा सकता है और अणु शक्ति का प्रयोग केवल मानव कल्याण के लिए होना चाहिए। भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री राजीव गाँधी ने अक्टूबर, 1987 में संयुक्त राष्ट्र संघ की महासभा में बोलते हुए पुनः पूर्ण परमाणविक निःशस्त्रीकरण की अपील की थी।

संयुक्त राष्ट्र संघ के राजनीतिक कार्यों में भारत का सहयोग (India’s Co-operation in the Political Functions of the United Nations) – भारत ने संयुक्त संघ द्वारा सुलझाई गई प्रत्येक समस्या में अपना पूरा-पूरा सहयोग दिया। ये समस्याएँ निम्नलिखित हैं –

1. कोरिया की समस्या (Korean Problems) – जब उत्तर कोरिया ने दक्षिण कोरिया पर आक्रमण कर दिया तो तीसरे विश्व युद्ध का खतरा उत्पन्न हो गया क्योंकि उस समय उत्तरी कोरिया रूस के और दक्षिण कोरिया अमेरिका के प्रभाव क्षेत्र में था। ऐसे समय में भारत की सेना कोरिया में शांति स्थापित करने के लिए गई। भारत ने इस युद्ध को समाप्त करने तथा दोनों देशों के युद्धबन्दियों के आदान-प्रदान में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

2. स्वेज नहर की समस्या (Problems concerned with Suez Canal) – जुलाई, 1956 के बाद में मिस्र ने स्वेज नहर के राष्ट्रीयकरण की घोषणा कर दी। इस राष्ट्रीयकरण से इंग्लैंड और फ्रांस को बहुत अधिक हानि होने का भय था अतः उन्होंने स्वेज नहर पर अपना अधिकार जमाने के उद्देश्य से इजराइल द्वारा मित्र पर आक्रमण करा दिया। इस युद्ध को बन्द कराने के लिए संयुक्त राष्ट्र ने सभी प्रयास किये। इन प्रयासों में भारत ने भी पूरा सहयोग दिया और वह युद्ध बन्द हो गया।

3. हिन्द-चीन का प्रश्न (Issue of Indo-China) – सन् 1954 में हिन्द-चीन में आग भड़की। उस समय ऐसा लगा कि संसार की अन्य शक्तियाँ भी उसमें उलझ जायेगी। जिनेवा में होने वाली अंतर्राष्ट्रीय कान्फ्रेंस में भारत ने इस क्षेत्र की शांति स्थापना पर बहुत बल दिया।

4. हंगरी में अत्याचारों का विरोध (Opposition ofAtrocities in Hangery) – जब रूसी सेना ने हंगरी में अत्याचार किये तो भारत ने उसके विरुद्ध आवाज उठाई। इस अवसर पर उसने पश्चिमी देशों के प्रस्ताव का समर्थन किया, जिसमें रूस से ऐसा न करने का अनुरोध किया गया था।

5. चीन की सदस्यता में भारत का योगदान (Contribution of India in greating membership to China) – विश्व शांति की स्थापना के सम्बन्ध में भारत का मत है कि जब तक संसार के सभी देशों का प्रतिनिधित्व संयुक्त राष्ट्र में नहीं होगा वह प्रभावशाली कदम नहीं उठा सकता। भारत के 26 वर्षों के प्रयत्न स्वरूप संसार में यह वातावरण बना लिया गया। इस प्रकार चीन सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य भी बन गया है।

6. नये राष्ट्रों की सदस्यता (Membership to New Nations) – भारत का सदा प्रयत्न रहा है कि अधिकाधिक देशों को संयुक्त राष्ट्र का सदस्य बनाया जाये। इस दृष्टि से नेपाल, श्रीलंका, जापान, इटली, स्पेन, हंगरी, बल्गारिया, ऑस्ट्रिया, जर्मनी आदि को सदस्यता दिलाने में भारत ने सक्रिय प्रयास किया।

7 रोडेशिया की सरकार (Government of Rodesia) – जब स्मिथ ने संसार की अन्य श्वेत जातियों के सहयोग से रोडेशिया के निवासियों पर अपने साम्राज्यवादी शिकंजे को कसा तो भारत ने राष्ट्रमण्डल तथा संयुक्त राष्ट्र के मंचों से इस कार्य की कटु आलोचना की।

8. भारत विभिन्न पदों की प्राप्ति कर चुका है (India had worked at different posts) – भारत की सक्रियता का प्रभाव यह है कि श्रीमती विजयलक्ष्मी पंडित को साधारण सभा का अध्यक्ष चुना गया। इसके अतिरिक्त मौलाना आजाद यूनेस्को के प्रधान बने, श्रीमती अमृत कौर विश्व स्वास्थ्य संघ की अध्यक्षा बनीं। डॉ. राधाकृष्णन् आर्थिक व सामाजिक परिषद के अध्यक्ष चुने गये। सर्वाधिक महत्त्व की बात भारत को 1950 में सुरक्षा परिषद का अस्थायी सदस्य चुना जाना था। अब तक छ: बार 1950, 1967, 1972, 1977, 1984 तथा 1992 में भारत अस्थायी सदस्य रह चुका है। डॉ. नगेन्द्र सिंह 1973 से ही अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय के न्यायाधीश रहे। फरवरी, 1985 में मुख्य न्यायाधीश चुने गये। श्री के० पी० एस. मेनन कोरिया तथा समस्या के सम्बन्ध में स्थापित आयोग के अध्यक्ष चुने गये थे।

निष्कर्ष (Conclusion) – भारत विश्व शांति व सुरक्षा को बनाये रखने के लिए संयुक्त राष्ट्र को सहयोग देता रहा है और भारत का अटल विश्वास है कि संयुक्त राष्ट्र विश्व शांति को बनाये रखने का महत्त्वपूर्ण यंत्र है। पं. जवाहरलाल ने एक बार कहा था, “हम संयुक्त राष्ट्र के बिना विश्व की कल्पना भी नहीं कर सकते।”


Q.15. संयुक्त राष्ट्र की स्थापना के प्रमुख उद्देश्य क्या थे? संयुक्त राष्ट्र के संगठन और इसके अंगों के प्रमुख कार्यों का वर्णन कीजिए। . अथवा, उन मुख्य उद्देश्यों का वर्णन कीजिए जिन पर संयुक्त राष्ट्र आधारित है ? कहाँ तक उनकी प्राप्ति हो सकी है ?

Ans ⇒  संयुक्त राष्ट्र एक ऐसी अंतर्राष्ट्रीय संस्था है जिसकी स्थापना युद्धों को रोकने, आपसी शांति और भाईचारा स्थापित करने तथा जन-कल्याण के कार्य करने के लिए की गई है। आजकल संसार के छोटे-बड़े लगभग 192 देश इसके सदस्य हैं। इस संस्था की विधिवत स्थापना 24 अक्टूबर, 1945 ई० को हुई थी। इस संस्था का मुख्य कार्यालय न्यूयॉर्क, अमेरिका में है।

उद्देश्य (Aims) –  1. अन्तर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा को बनाए रखना। 2. भिन्न-भिन्न राष्ट्रों के बीच मैत्रीपूर्ण सम्बन्धों को बढ़ावा देना। 3. आपसी सहयोग द्वारा आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक तथा मानवीय ढंग की अंतर्राष्ट्रीय समस्याओं को हल करना। 4. ऊपर दिये गये हितों की पूर्ति के लिए भिन्न-भिन्न राष्ट्रों की कार्यवाही में तालमेल करना।

संयुक्त राष्ट्र का संगठन (Organization of the United Nations)

1. साधारण सभा या महासभा General Assembly) – यह सभा संयुक्त राष्ट्र का अंग है। इसमें जब सदस्य राष्ट्रों के प्रतिनिधि सम्मिलित होते हैं। संयुक्त राष्ट्र के सभी सदस्य देश इसके भी सदस्य हैं। प्रत्येक सदस्य राष्ट्र 5 प्रतिनिधि भेज सकता है परंतु उनका वोट एक ही होता है। इसका अधिवेशन वर्ष में एक बार होता है।

कार्य (Functions) – 1. यह सभा शांति तथा सुरक्षा कार्यों पर विचार करती है। 2. यह सभा संयुक्त राष्ट्र का बजट पास करती है। 3. महासभा संयुक्त राष्ट्र के बाकी सब अंगों के सदस्यों का चुनाव ‘ करती है।

2. सुरक्षा परिषद (Security Council) – यह परिषद संयुक्त राष्ट्र की कार्यकारिणी है। इसके कुल 15 सदस्य होते हैं जिनमें 5 स्थायी सदस्य हैं और 10 अस्थायी। 5 स्थायी सदस्य हैं-(i) अमेरिका, (ii) रूस, (iii) फ्रांस, (v) साम्यवादी चीन। अस्थायी सदस्यों का चुनाव साधारण सभा द्वारा 2 वर्ष के लिए किया जाता है।

सुरक्षा परिषद् के कार्य (Function of Security Council) (i) यह परिषद विश्व में शांति स्थापित करने के लिए जिम्मेदार है। कोई भी देश अपनी शिकायत इस परिषद के सामने रख सकता है। (ii) यह झगड़ों का निर्णय करती है और यदि उचित समझे तो किसी भी देश के विरुद्ध सैनिक शक्ति का प्रयोग कर सकती है। (iii) साधारण सभा के सहयोग से अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय के जजों को नियुक्त करती है।

3. आर्थिक तथा सामाजिक परिषद (Economic and Social Council) – इस परिषद के 27 सदस्य होते हैं जो साधारण सभा के द्वारा 3 वर्ष के लिए चुने जाते हैं। इनमें एक-तिहाई सदस्य हर वर्ष टूट जाते हैं। उनके स्थान पर नये सदस्य चुन लिए जाते हैं।

कार्य (Functions) – यह परिषद अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, शैक्षिक और स्वास्थ्य सम्बन्धी मामलों पर विचार करती है।

4. संरक्षण परिषद् Trusteeship Council) – यह परिषद उन प्रदेशों के शासन की देखभाल करती है जिन्हें संयुक्त राष्ट्र ने अन्य देशों के संरक्षण में रखा हो। इसके अतिरिक्त यह इस बात का भी प्रयत्न करती है कि प्रशासन चलाने वाले देश इन प्रदेशों को हर प्रकार से उन्नत करके स्वतंत्रता के योग्य बना दें।

कार्य Functions) – संरक्षण परिषद समय-समय पर संरक्षित इलाकों की उन्नति का अनुमान लगाने के लिए मिशन भेजती है।

5. अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय (International Court of Justice ) – यह न्यायालय संयुक्त राष्ट्र संघ का प्रमख न्यायिक अंग है। इस न्यायालय के 15 न्यायाधीश होते हैं जो साधारण सभा तथा सरक्षा परिषद द्वारा 9 वर्षों के लिए चुने जाते हैं। यह न्यायालय संयुक्त राष्ट के भिन्न-भिन्न अंगों द्वारा उनकी समाजसेवी संस्थाओं को न्यायिक परामर्श भी देता है।

कार्य Functions) – यह न्यायालय उन झगड़ों का फैसला करता है जो भिन्न-भिन्न देश उसके सामने पेश करते हैं।

6. सचिवालय (Secretariat) – यह संयुक्त राष्ट्र का मुख्य कार्यालय है। इसका सबसे बड़ा अधिकारी महासचिव (Secretary General) होता है जिसकी सुरक्षा परिषद की सिफारिश पर साधारण सभा नियुक्त करती है। यह संयुक्त राष्ट्र का मुख्य प्रबन्धक होता है। उसके अधीन दफ्तर के लगभग 6000 कर्मचारी काम करते हैं जो भिन्न-भिन्न देशों के होते हैं।

कार्य (Functions) – संयुक्त राष्ट्र के सचिवालय का प्रमुख कार्य सारे विश्व में फैले संयुक्त राष्ट्र के अंगों की शाखाओं का प्रबन्ध करता है और उनकी आर्थिक एवं अन्य आवश्यकताओं को पूरा करता है।


Q.16. भारत की विदेश नीति विश्व शांति की स्थापना में किस प्रकार सहायक सिद्ध हुई है ?

Ans ⇒  प्रस्तावना – भारत ने स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् जो विदेश नीति अपनाई उसके अनुसार गुटनिरपेक्षता की नीति को अपनी विदेशी नीति का आधार बनाया। विश्व के सभी देशों के साथ और विशेषतया अपने पड़ोसी देशों के साथ मित्रतापूर्ण संबंध बनाये रखना और विश्व शांति को बनाए रखना भारत की विदेश नीति के उद्देश्य रहे हैं। विश्व शांति की स्थापना में भारत के योगदान का संक्षिप्त विवेचन निम्नलिखित है –

विश्व शांति की स्थापना में भारत का योगदान (Contribution of Indian inmaintaining world-peace) –

(i) भारत की तटस्थता की नीति (India’s policy of neutrality) – अन्तर्राष्ट्रीय मामलों में भारत ने हमेशा तटस्थता की नीति को अपनाया है। द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद सारा विश्व दो विरोधी गुटों में बँटा हआ है और ये दोनों गुट संयुक्त राष्ट्र के उद्देश्यों की पूर्ति के रास्ते में एक रुकावट सिद्ध हो रहे थे। इन दोनों गुटों के आपसी खिंचाव के कारण तृतीय विश्वयुद्ध की शंकाएँ बढ़ती जा रही है परंतु भारत हमेशा इन दोनों गटों से तटस्थ रहा है और दोनों महाशक्तियों को एक-दूसरे से नजदीक लाने के लिए कोशिशें करता रहा है।

(ii) सैनिक गुटों का विरोध (Opposition of the military alliances) – विश्व में बहुत-से सैनिक गुट बने जैसे नाटो, सैन्ट्रो आदि। भारत का हमेशा यह विचार रहा है कि ये सैनिक गट बनने युद्धों की संभावना बढ़ जाती है और ये सैनिक गुट विश्व शांति में बाधक हैं। अत: भारत ने हमेशा बन सैनिक गुटों की केवल आलोचना ही नहीं कि बल्कि इनका पूरी तरह से विरोध किया है।

(iii) निःशस्त्रीकरण में सहायता (Support of disarmament) – संयुक्त राष्ट्र संघ ने निःशस्त्रीकरण के प्रश्न को अधिक महत्त्व दिया है। इस समस्या को हल करने के लिए बहुत से प्रयास किए हैं। भारत ने इस समस्या को समाधान करने के लिए हमेशा संयुक्त राष्ट्र की मदद की है क्योंकि भारत को यह विश्वास है कि पूर्ण निःशस्त्रीकरण के द्वारा ही संसार में शांति की स्थापना हो सकती है। सातवें गुटनिरपेक्ष शिखर सम्मेलन को सम्बोधित करते हुए श्रीमती इंदिरा गाँधी ने कहा था, “विकास स्वतंत्रता, नि:शस्त्रीकरण और शांति परस्पर एक-दूसरे से संबंधित हैं। क्या नाभिकीय अस्रों के रहते शाति संभव है ?’ एक नाभिकीय विमानवाहक पर जो खर्च होता है वह 53 देशों के सकल राष्ट्रीय उत्पादन से अधिक है। नाग ने अपना फन फैला दिया है। समूची मानव जाति भयाक्रांत और भयभीत निगाहों से उसे इस झूठी आशा के साथ देख रही है कि वह उसे काटेगा नहीं।”

(iv) जातीय भेदभाव का विरोध (Opposition of the policy of dicriminations based on caste, creed and colour) – भारत ने अपनी विदेश नीति के आधार पर जातीय भेदभाव को समाप्त करने का निश्चय किया है। जब संसार का कोई भी देश जाति प्रथा के भेदभाव को अपनाता है तो भारत सदैव उसका विरोध करता रहा है। दक्षिण अफ्रीका ने जब तक जातीय भेदभाव की नीति को अपनाता तो भारत ने उसका विरोध किया और अब भी कर रहा है।

(v) संयुक्त राष्ट्र संघ का समर्थन (Co-operation to the United Nation) – संयुक्त राष्ट्र संघ के उद्देश्यों को भारतीय संविधान में भी स्थान दिया गया है तथा भारत शुरू से ही इसका सदस्य रहा है। संयुक्त राष्ट्र संघ को शक्तिशाली बनाना और उसके कार्यों में सहयोग देना भारत की विदेश नीति के प्रमुख सिद्धांत रहे हैं। संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा किए गए शांति प्रयासों में भारत ने हर प्रकार की सहायता प्रदान की। जैसे स्वेज नहर, हिन्द-चीन के प्रश्न, वियतनाम की समस्या, साइप्रस आदि में भारत ने संयुक्त राष्ट्र की प्रार्थना पर अपनी सेनाएँ भी भेजी थी। भारत कई बार सुरक्षा परिषद् का भी सदस्य चुना गया है तथा संयुक्त राष्ट्र संघ की विभिन्न एजेन्सियों का सदस्य बनकर क्रियात्मक योगदान प्रदान कर रहा है। वर्तमान में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की स्थापना सदस्यता के लिए भारत प्रयासरत है।


Q.17.किसी सरकार के समक्ष युद्ध की स्थिति में जो तीन विकल्प होते हैं उनका उल्लेख कीजिए।

Ans ⇒  बुनियादी तौर पर किसी सरकार के पास युद्ध की स्थिति में तीन विकल्प होते हैं-
(i) युद्ध छिड़ने पर स्थिति देखते हुए शत्रु के सामने हथियार डालना या आत्मसमर्पण करना।
(ii) विरोधी पक्ष की बात को बिना युद्ध किए ही मान लेना।
(iii) विरोधी पक्ष को डराने के लिए ऐसे संकेत देना यदि वह युद्ध छेड़ेगा अथवा बंद नहीं करेगा तो वह (सरकार) अपने सहयोगियों अथवा कदमों से ऐसे विनाशकारी कदम उठाएगी जिन्हें सुनकर हमलावर बाज आए अथवा युद्ध थम जाए तो अपनी रक्षा करने के लिए ऐसे हथियारों का प्रयोग करना कि शत्रु तुरंत पीछे हट जाए या पराजित हो जाये।


Q. 18. वैश्वीकरण के संदर्भ में विकासशील देशों में राज्य की बदलती भूमिका का आलोचनात्मक मूल्यांकन करें।

Ans ⇒  1. वैश्वीकरण के संदर्भ में विकासशील देशों में राज्य की बदलती भूमिका पर व्यापक प्रभाव पड़ा है। सबसे सीधा-सरल विचार यह है कि वैश्वीकरण के कारण राज्य की क्षमता यानी सरकारों को जो करना है उसे करने की ताकत में कमी आती है। पूरी दुनिया में कल्याणकारी राज्य की धारणा अब पुरानी पड़ गई और इसकी जगह न्यूनतम हस्तक्षेपकारी राज्य ने ली है।

2. राज्य अब कुछेक मुख्य कामों तक ही अपने को सीमित रखता है, जैसे कानून और व्यवस्था को बनाये रखना तथा अपने नागरिकों की सुरक्षा करना। इस तरह से राज्य ने अपने को पहले के कई ऐसे लोक-कल्याणकारी कामों से खींच लिया है जिनका लक्ष्य आर्थिक और सामाजिक-कल्याण होता था। लोक कल्याणकारी राज्य की जगह अब बाजार आर्थिक और सामाजिक प्राथमिकताओं का प्रमुख निर्धारक हैं।

3. विकासशील देशों में बहुराष्ट्रीय निगम अपने पैर पसार चुके हैं और उनकी भूमिका बढ़ी है। इससे सरकारों के अपने दम पर फैसला करने की क्षमता में कमी आती है। इसी के साथ एक बात और भी है। वैश्वीकरण से हमेशा राज्य की ताकत में कमी आती है-ऐसी बात नहीं राजनीतिक समुदाय के आधार के रूप में राज्य की प्रधानता को कोई चुनौती नहीं मिली है और राज्य इस अर्थ में आज भी प्रमुख है। विश्व की राजनीति में अब भी विभिन्न देशों के बीच मौजूद पुरानी ईर्ष्या और प्रतिद्वंद्विता का दखल है। राज्य कानून और व्यवस्था, राष्ट्रीय सुरक्षा जैसे अपने अनिवार्य कार्यों को पूरा कर रहे हैं और बहुत सोच-समझकर अपने कदम उन्हीं दायरों से खींच रहे हैं जहाँ उनकी मर्जी हो। राज्य अभी भी महत्वपूर्ण बने हुए हैं।

4. वस्तुत: कुछ मायनों में वैश्वीकरण के फलस्वरूप राज्य की ताकत में इजाफा हुआ है। अब राज्यों के हाथ में अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी मौजूद है जिसके बूते राज्य अपने नागरिकों के बारे में सूचनाएँ जुटा सकते हैं। इस सूचना के दम पर राज्य ज्यादा कारगर ढंग से काम कर सकते हैं। उनकी क्षमता बढ़ी हैं, कम नहीं हुई। इस प्रकार नई प्रौद्योगिकी के परिणामस्वरूप राज्य अब पहले से ज्यादा ताकतवर हैं।


Q.19. आंध्र प्रदेश में चले शराब विरोधी आंदोलन ने देश का ध्यान कुछ गंभीर मुद्दों की तरफ खींचा। ये मुद्दे क्या थे ?

Ans ⇒  आंध्र प्रदेश में चलाए गए शराब-विरोधी आंदोलन द्वारा चलाए गए जिन गंभीर मुद्दों की तरफ ध्यान खींचा (Issue and item attention drawn by anti arrack movement launched in Andhra Pradesh)

(i) ताड़ी-विरोधी आंदोलन का नारा बहुत साधारण था-‘ताड़ी की बिक्री बंद करो।’ लेकिन इस साधारण नारे ने क्षेत्र के व्यापक सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक मुद्दों तथा महिलाओं के जीवन को गहरे रूप से प्रभावित किया।

(ii) ताड़ी व्यवसाय को लेकर अपराध एवं राजनीति के बीच एक गहरा नाता बन गया था। राज्य सरकार को ताड़ी की बिक्री से काफी राजस्व प्राप्ति होती थी इसलिए वह इस पर प्रतिबंध नहीं लगा रही थी।

(iii) स्थानीय महिलाओं के समूहों ने इस जटिल मुद्दे को अपने आंदोलन में उठाना शुरू किया। वे घरेलू हिंसा के मुद्दे पर भी खुले तौर पर चर्चा करने लगीं। आंदोलन ने पहली बार महिलाओं को घरेलू हिंसा जैसे निजी मुद्दों पर बोलने का मौका दिया।

(iv) ताडी-विरोधी आंदोलन महिला आन्दोलन, का एक हिस्सा बन गया। इससे पहले घरेलू हिंसा, दहेज प्रथा, कार्यस्थल एवं सार्वजनिक स्थानों पर यौन उत्पीड़न के खिलाफ काम करने वाले महिला समूह आमतौर पर शहरी मध्यवर्गीय महिलाओं के बीच ही सक्रिय थे और यह बात परे देश पर लागू होती थी। महिला समूहों के इस सतत कार्य से यह समझदारी विकसित होनी शुरू हुई कि औरतों पर होने वाले अत्याचार और लैंगिक भेदभाव का मामला खासा जटिल है।
(v) आठवें दशक के दौरान महिला आंदोलन परिवार के अंदर और उसके बाहर होने वाली यौन हिंसा के मुद्दों पर केंद्रित रहा। इन समूहों ने दहेज प्रथा के खिलाफ मुहिम चलाई और लैंगिक समानता के सिद्धांत पर आधारित व्यक्तिगत एवं संपत्ति कानूनों की माँग की।

(vi) इस तरह के अभियानों ने महिलाओं के मुद्दों के प्रति समाज में व्यापक जागरूकता पैदा की। धीरे-धीरे महिला आंदोलन कानूनी सुधारों से हटकर सामाजिक टकराव के मुद्दों पर भी खुले तौर पर बात करने लगा।

(vii) नवें दशक तक आते-आते महिला आंदोलन समान राजनीतिक प्रतिनिधित्व की बात करने लगा था। आपको ज्ञात ही होगा कि संविधान के 73वें संशोधन के अंतर्गत महिलाओं को स्थानीय राजनीतिक निकायों में आरक्षण दिया गया है।


Q.20. दलित-पैंथर्स ने कौन-से मुद्दे उठाए ?

Ans ⇒  बीसवीं शतब्दी के सातवें दशक के शुरुआती सालों से शिक्षित दलितों की पहली पीढ़ी ने अनेक मंचों से अपने हक की आवाज उठायी। इनमें ज्यादातर शहर की झुग्गी-बस्तियों में पलकर बड़े हुए दलित थे। दलित हितों की दावेदारी के इसी क्रम में महाराष्ट्र में दलित युवाओं का एक संगठन ‘दलित पैंथर्स’ 1972 में बना।

1. आजादी के बाद के सालों में दलित समूह मुख्यतया जाति आधारित असमानता और भौतिक साधनों के मामले में अपने साथ हो रहे अन्याय के खिलाफ लड़ रहे थे। वे इस बात को लेकर सचेत थे कि संविधान में जाति आधारित किसी भी तरह के भेदभाव के विरुद्ध गारंटी दी गई है।

2. आरक्षण के कानून तथा सामाजिक न्याय की.ऐसी ही नीतियों का कारगर क्रियान्वयन इनकी प्रमुख माँग थी।

3. भारतीय संविधान में छुआछूत की प्रथा को समाप्त कर दिया गया है। सरकार ने इसके अंतर्गत ‘साठ’ और ‘सत्तर’ के दशक में कानून बनाए इसके बावजूद पुराने जमाने में जिन जातियों को अछूत माना गया था, उनके साथ इस नए दौर में भी सामाजिक भेदभाव तथा हिंसा का बरताव कई रूपों में जारी रहा।

4. दलितों की बस्तियाँ मुख्य गाँव से अब भी दूर होती थीं। दलित महिलाओं के साथ यौन-अत्याचार होते थे। जातिगत प्रतिष्ठा की छोटी-मोटी बात को लेकर दलितों पर सामूहिक जुल्म ढाये जाते थे। दलितों के सामाजिक और आर्थिक उत्पीड़न को रोक पाने में कानून की व्यवस्था नाकामी साबित हो रही थी।


S.N Class 12th Political Science Question 2022
1.Political Science ( लघु उत्तरीय प्रश्न )  PART- 1
2.Political Science ( लघु उत्तरीय प्रश्न )  PART- 2
3.Political Science ( लघु उत्तरीय प्रश्न )  PART- 3
4.Political Science ( लघु उत्तरीय प्रश्न )  PART- 4
5.Political Science ( लघु उत्तरीय प्रश्न )  PART- 5
6.Political Science ( लघु उत्तरीय प्रश्न )  PART- 6
7.Political Science ( दीर्घ उत्तरीय प्रश्न )  PART- 1
8.Political Science ( दीर्घ उत्तरीय प्रश्न )  PART- 2
9.Political Science ( दीर्घ उत्तरीय प्रश्न )  PART- 3
10.Political Science ( दीर्घ उत्तरीय प्रश्न )  PART- 4
11.Political Science ( दीर्घ उत्तरीय प्रश्न )  PART- 5

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