Class 12th Political Science ( लघु उत्तरीय प्रश्न ) PART- 6
Q.150. शीतयुद्ध के दौरान महाशक्तियों द्वारा बनाए गए किन्हीं दो सैन्य संगठनों के नाम लिखिए। सैन्य संधियाँ किस सिद्धांत पर आधारित थीं ?
Ans ⇒ 1. नाटो – 1949 में अमरीका के नेतृत्व में साम्यवाद को रोकने के लिए नाटो का गठन किया गया था। अब नाटो के सदस्यों को ‘शांति का भागीदार’ कहा जाता है।
2. वारसा – सोवियत संघ के नेतृत्व में 1955 में वारसा संधि का गठन हुआ इसका उद्देश्य सदस्य देशों को अमेरिका प्रभुत्व से बचाना था। इसमें पोलैण्ड, हंगरी, पूर्वी जर्मनी, बुल्गारिया आदि देश शामिल थे। ये सैन्य संधियाँ आत्मरक्षा के लिए की गई थी। सदस्य राष्ट्र अपने आर्थिक, राजनीतिक सामरिक हितों को देखते हुए सैनिक गुटों में शामिल हुए। ये संधियाँ सामूहिक सुरक्षा पर आधारित थी।
Q.151. द्वि-राष्ट्र सिद्धांत क्या है ?
Ans ⇒ शीत युद्ध के समय (1945-91) में दो अलग-अलग गुटों में विश्व विभक्त था। एक का नेतृत्व सोवियत संघ तो दूसरे का अमेरिका कर रहा था। इसे ही द्विध्रुवता कहा जाता है। वैसे राष्ट्र जो दोनों ध्रुवों से जुड़े थे द्वि-राष्ट्र सिद्धान्त के पोषक थे। द्वि-राष्ट्र सिद्धांत दो मतों, दो प्रभावों एवं दो ध्रुवों के मत को मानते थे।
Q.152. आर्थिक न्याय क्या है ?
Ans ⇒ आर्थिक न्याय से तात्पर्य समाज में बराबरी का प्रयास करना है। किसी के पास अकूत संपत्ति न हो। कोई भूखमरी से न मरे। सर्वत्र आर्थिक बराबरी हो। मूलभूत आवश्यकताओं की उपलब्धता सभी नागरिकों को हो। यही आर्थिक न्याय है।
Q. 153. दक्षेस क्या है ?
Ans ⇒ दक्षेस (South Asian Association of Regional Co-operation) आठ दक्षिण एशियाई देशों का समूह है। इसका 16वाँ शिखर सम्मेलन भूटान की राजधानी थिम्पू में 28-29 अप्रैल, 2010 को संपन्न हुआ। इस संगठन में भारत, भूटान, अफगानिस्तान, मालदीव, नेपाल, पाकिस्तान, श्रीलंका एवं बांग्लादेश सदस्य हैं। इसकी स्थापना 8 दिसंबर, 1985 में हुई थी।
Q. 154. प्रत्यक्ष प्रजातंत्र से आप क्या समझते हैं ?
Ans ⇒ जब जनता द्वारा प्रत्यक्ष रूप से निर्वाचन में भाग लेकर सरकार चुनी जाए तब उसे प्रत्यक्ष प्रजातंत्र कहते हैं। भारत में प्रत्यक्ष प्रजातंत्र है। यहाँ जनता को मतदान का अधिकार प्राप्त है। वह अपनी मर्जी से अपना सांसद एवं विधायक चुनती है।
Q.155. भूमण्डलीय तापन क्या है ?
Ans. विज्ञान के बढ़ते कदम से कल-कारखानों, मोटरवाहनों में काफी बढ़ोतरी हुई। इनके द्वारा उत्पन्न धुआँ गर्म वाष्प एवं ताप वातावरण को प्रभावित करता है। इसके कारण धरती का ताप काफी बढ़ गया है। धरती के ऊपर धुआँ एवं धूलकणों की परत से धरती की गर्मी अंतरिक्ष में नहीं पहुँच रही है। फलतः धरती हरित-गृह प्रभाव के कारण गर्म होती जा रही है। भूमंडलीय तापन इसी का नाम है।
Q.156. भारत और नेपाल के मध्य संबंधों पर एक टिप्पणी लिखिए।
Ans ⇒ भारत-नेपाल के संबंध – 1. भारत और नेपाल के बीच बड़े मधुर संबंध हैं और पूरी दुनिया में ऐसे संबंधों के इक्के-दुक्के उदाहरण ही मिलते हैं। दोनों देशों के बीच एक संधि हुई है। इस संधि के तहत दोनों देशों के नागरिक एक-दूसरे के देश में बिना पासपोर्ट (पारपत्र) और वीजा के आ-जा सकते हैं और काम कर सकते हैं। खास संबंधों के बावजूद दोनों देश के बीच अतीत में व्यापार से संबंधित मनमुटाव पैदा हुए हैं।
2. नेपाल की चीन के साथ दोस्ती को लेकर भारत सरकार ने अक्सर अपनी अप्रसन्नता जतायी है। नेपाल सरकार भारत-विरोधी तत्वों के खिलाफ कदम नहीं उठाती। इससे भी भारत नाखुश है।
3. भारत की सुरक्षा एजेंसियाँ नेपाल के चल रहे नक्सल आंदोलन को अपनी सुरक्षा के लिए खतरा मानती हैं क्योंकि भारत में उत्तर बिहार से लेकर दक्षिण में आन्ध्र प्रदेश तक विभिन्न प्रांतों में नक्सलवादी समूहों का उभार हुआ है। नेपाल में बहुत से लोग यह सोचते हैं कि भारत की सरकार नेपाल के अंदरूनी मामले में दखल दे रही है और उसके नदी जल तथा पनबिजली पर आँख गड़ाए हुए है।
4. चारों तरफ से जमीन से घिरे नेपाल को लगता है कि भारत उसको अपने भू-क्षेत्र से होकर समद्र तक पहुंचने से रोकता है। बहरहाल भारत-नेपाल के संबंध एकदम मजबूत और शांतिपूर्ण हैं। विभेदों के बावजद दोनों देश व्यापार. वैज्ञानिक सहयोग, साझे प्राकृतिक संसाधन, बिजली उत्पादन और जल प्रबंधन ग्रिड के मसले पर एक साथ हैं। नेपाल में लोकतंत्र की बहाली से दोनों देशों के बीच संबंधों के और मजबूत होने की उम्मीद बंधी है।
Q.157. भारत-श्रीलंका समझौता 1987 पर टिप्पणी लिखें।
Ans ⇒ भारत-श्रीलंका समझौता 1987 – जुलाई 1987 में तमिलों की समस्या को सुलझाने के श्रीलंका समझौता हुआ। इस समझौते के प्रमुख प्रावधान अंग्रलिखित थे –
1. उत्तरी व पूर्वी दो प्रदेशों को, जहाँ तमिल बहुसंख्य हैं एकीकृत क्षेत्र बनाया जाएगा।
2. उपरोक्त क्षेत्र में विधानसभा की स्थापना की जाएगी तथा लोकप्रिय सरकार गठित की जाएगी।
3. जनमत संग्रह के माध्यम से यह ज्ञात किया जाएगा कि ये दोनों प्रांत विलय के पक्ष में हैं या नहीं। यदि ये प्रांत इसके विरुद्ध ही निर्णय देते हैं तो उनकी सरकारें अलग ही रहेंगी। जनमत संग्रह 1988 तक करा लिया जाना तय हुआ।
4. यदि तमिल उग्रवादी इस समझौते के विरुद्ध सशस्त्र संघर्ष बन्द नहीं करते तो श्रीलंका सरकार शांति की स्थापना के लिए भारतीय सेना को आमंत्रित कर सकती है।
5. श्रीलंका की अखंडता पर सहमति प्रकट की गयी। उपरोक्त समझौते के बाद भारतीय सेना श्रीलंका के निमंत्रण पर वहाँ गयी। सेना ने सराहनीय कार्य किया। श्रीलंका के उत्तर व पूर्वी प्रांतों में लोकप्रिय सरकारें बनीं । तमिल उग्रवादी बाद में संघर्ष करते रहे।
6. श्रीलंका की जनता के दबाव में श्रीलंका सरकार ने भारत से जुलाई 1989 तक सेना वापिस बुलाने का आग्रह किया। भारत सरकार का कहना था कि बिना शांति स्थापित किये सेना की वापसी उचित नहीं है किन्तु अंततः मार्च 1990 तक भारतीय सेना वापस बुला ली गयी। भारत की तमिलों के विरुद्ध सैनिक कार्यवाही में तमिल समाज में भारत सरकार के प्रति रोष उत्पन्न हो गया। भारत के प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या इसी पृष्ठभूमि में रचित षड्यंत्र का परिणाम थी। आजकल दोनों देशों के संबंध मधुर बने हुए हैं।
Q. 158. तथ्य दीजिए कि पर्यावरण से जुड़े सरोकार 1960 के दशक के बाद राजनैतिक चरित्र ग्रहण कर सके।
Ans ⇒ पर्यावरण से जुड़े सरोकारों का लंबा इतिहास है लेकिन आर्थिक विकास के कारण पर्यावरण पर होने वाले असर की चिंता ने 1960 के दशक के बाद से राजनीतिक चरित्र ग्रहण किया वैश्विक मामलों से सरोकार रखनेवाले एक विद्वत् समूह ‘क्लब आव रोम’ ने 1992 में ‘लिमिट्स टू ग्रोथ शीर्षक से एक पुस्तक प्रकाशित की। यह पुस्तक दुनिया की बढ़ती जनसंख्या के आलोक में प्राकृतिक संसाधनों के विनाश के संदेश को बड़ी खूबी से बताती है।
Q.159. रियो सम्मेलन के क्या परिणाम हुए ? अथवा, रियो सम्मेलन का आयोजन क्यों और कहाँ हुआ था ? इससे जुड़ी कुा विशेषताएँ भी लिखिए।
Ans ⇒ 1. उद्देश्य एवं स्थान – 1992 में संयुक्त राष्ट्रसंघ का पर्यावरण और विकास के मुद्दे पर केन्द्रित एक सम्मेलन, ब्राजील के रियो डी जनेरियो में हुआ। इसे पृथ्वी सम्मेलन कह जाता है।
2. विशेषताएँ – (i) इस सम्मेलन में 170 देश, हजारों स्वयं सेवी संगठन तथा अनेक बहुराष्ट्रीय निगमों ने भाग लिया। वैश्विक राजनीति के दायरे में पर्यावरण को लेकर बढ़ते सरोकारों को इस सम्मेलन में एक ठोस रूप मिला।
(ii) इस सम्मेलन मे पाँच साल पहले (1987) अवर कॉमन फ्यूचर’ शीर्षक बर्टलैंड रिपोर्ट छपी थी। रिपोर्ट में चेताया गया था कि आर्थिक विकास के चालू तौर-तरीके आगे चलकर टिकाऊ साबित नहीं होंगे। विश्व के दक्षिणी हिस्से में औद्योगिक विकास की माँग ज्यादा प्रबल है और रिपोर्ट में इसी हवाले से चेतावनी दी गई थी।
(iii) रियो-सम्मेलन में यह बात खुलकर सामने आयी कि विश्व के धनी और विकसित देश यानी उत्तरी गोलार्द्ध तथा गरीब और विकासशील देश यानी दक्षिणी गोलार्द्ध पर्यावरण के अलग-अलग अजेंडे के पैरोकार हैं। उत्तरी देशों की मुख्य चिंता ओजोन परत की छेद और वैश्विक तापवृद्धि (ग्लोबल वार्मिंग) को लेकर थी। दक्षिणी देश आर्थिक विकास और पर्यावरण प्रबंधन के आपसी रिश्ते को सुलझाने के लिए ज्यादा चिंतित थे।
(iv) रियो-सम्मेलन में जलवायु परिवर्तन जैव-विविधता और वानिकी के संबंध में कुछ नियमाचार निर्धारित हुए । इसमें ‘एजेंडा-21’ के रूप में विकास के कुछ तौर-तरीके भी सुझाए गए लेकिन इसके बाद भी आपसी अंतर और कठिनाइयाँ बनी रहीं।
(v) सम्मेलन में इस बात पर सहमति बनी कि आर्थिक वृद्धि से पर्यावरण को नुकसान न पहुँचे इसे ‘टिकाऊ विकास’ का तरीका कहा गया लेकिन समस्या यह थी कि ‘टिकाऊ विकास’ पर अमल कैसे किया जाएगा। कुछ आलोचकों का कहना है कि ‘एजेंडा-21’ का झुकाव पर्यावरण संरक्षण को सुनिश्चित करने के बजाय आर्थिक वृद्धि की ओर है।
Q.160. विश्व की ‘साझी विरासत’ का क्या अर्थ है ? इसका दोहन और प्रदूषण कैसे होता है ?
Ans ⇒ (i) विश्व की साझी विरासत का अर्थ – साझी संपदा वह संसाधन है जिस पर किसी एक का नहीं बल्कि पूरे समुदाय का हक होता है। यह साझा चूल्हा, साझा चारागाह, साझा मैदान साझा कुआँ या नदी कुछ भी हो सकता है। इसी तरह विश्व के कुछ हिस्से और क्षेत्र किसी एक देश के संप्रभु क्षेत्राधिकार से बाहर होते हैं। इसीलिए उनका प्रबंधन साझे तौर पर अंतर्राष्ट्रीय समदाय द्वारा किया जाता है। इन्हें ‘वैश्विक संपदा’ या ‘मानवता की साझी विरासत’ कहा जाता है। इसमें पृथ्वी का वायुमंडल, अंटार्कटिका, समुद्री सतह और बाहरी अंतरिक्ष शामिल हैं।
(ii) दोहन और प्रदूषण – 1. ‘वैश्विक संपदा’ की सुरक्षा के सवाल पर अंतर्राष्ट्रीय सहयोग कायम करना टेढ़ी खीर है। इस दिशा में कुछ महत्वपूर्ण समझौते जैसे अंटार्कटिका संधि (1959) मांट्रियल न्यायाचार अथवा प्रोटोकॉल (1987) और अंटार्कटिका पर्यावरणीय न्यायाचार अथवा प्रोटोकॉल (1991) हो चुके हैं। पारिस्थितिकी से जुडे हर मसले के साथ एक बड़ी समस्या यह जडी है कि अनुष्ट वैज्ञानिक साक्ष्यों और समय-सीमा को लेकर मतभेद पैदा होते हैं। ऐसे में एक सर्व-सामान्य पर्यावरणीय एजेंडा पर सहमति कायम करना मुश्किल होता है।
2. इस अर्थ में 1980 के दशक के मध्य में अंटार्कटिका के ऊपर ओजोन परत में छेद की खोज एक आँख खोल देनेवाली घटना है।
3. ठीक इसी तरह वैश्विक संपदा के रूप में बारी अंतरिक्ष के इतिहास से भी पता चलता है कि इस क्षेत्र में प्रबंधन पर उत्तरी और दक्षिणी गोलार्द्ध के देशों के बीच मौजूद असमानता का असर पड़ा है। धरती के वायुमंडल और समुद्री सतह के समान यहाँ भी महत्वपूर्ण मसला प्रौद्योगिकी और औद्योगिक विकास का है यह एक जरूरी बात है क्योंकि बाहरी अंतरिक्ष में जो दोहन-कार्य हो रहे हैं उनके फायदे न तो मौजूदा पीढ़ी में सबके लिए बराबर हैं और न आगे की पीढ़ियों के लिए।
Q.161. भारत के संदर्भ में साझी संपदा के अर्थ को उदाहरण देकर संक्षेप में समझाइए।
Ans ⇒ भारत में सांझी संपदा की संकल्पना (Concept of Common Property in India) –
1. अर्थ (Meaning) – साझी संपदा का अर्थ होता है ऐसी संपदा जिस पर किसी समूह के प्रत्येक सदस्य का स्वामित्व हो। इसके पीछे मूल तर्क यह है कि ऐसे संसाधन की प्रकृति, उपयोग के स्तर और रख-रखाव के संदर्भ में समूह के हर सदस्य को समान अधिकार प्राप्त होंगे और समान उत्तरदायित्व निभाने होंगे।
2. उदाहरण (Example) – उदाहरण के लिए, सदियों के चलन और आपसी समझदारी से भारत के ग्रामीण समुदायों ने सांझी संपदा के संदर्भ में अपने सदस्यों के अधिकार और दायित्व तय किए हैं।
3. आकार में आ रही कमी के कारण (Reasons ofreducing Size) – निजीकरण, गहनतर खेती, आबादी की वृद्धि और पारिस्थितिकी तंत्र की गिरावट समेत कई कारणों से पूरी दुनिया में साझी सपदा का आकार घट रहा है, उसकी गुणवत्ता और गरीबों को उसकी उपलब्धता कम हो रही है।
4. भारत में साझी सम्पदा (Common Property in India) – राजकीय स्वामित्व वाली वन्यभूमि में पावन माने जाने वाले वन-प्रांत के वास्तविक प्रबंधन की पुरानी र रख-रखाव और उपभोग का ठीक-ठीक उदाहरण है। दक्षिण भारत के वन-प्रदेशों में विद्यमान पावन वन-प्रांतों का प्रबन्धन परंपरानुसार ग्रामीण समुदाय करता आ रहा है।
Q.162. देश की स्वतंत्रता के उपरांत विकास के स्वरूप एवं इससे जुड़े नीतिगत निर्णयों के बारे में किस सीमा तक टकराव था? क्या यह टकराव आज भी जारी है ? संक्षेप में समझाइए।
Ans ⇒ राजनीतिक टकराव एवं विकास – (i) भारत 15 अगस्त, 1947 को स्वतंत्र हुआ। आजादी के बाद अपने देश में ऐसे कई फैसले लिए गए। इनमें से कोई भी फैसलों से मुँह फेरकर नहीं लिया जा सकता था। सारे के सारे फैसले आपस में आर्थिक विकास के एक मॉडल या यों कहें कि एक ‘विजन’ से बँधे हुए थे।
(ii) लगभग सभी इस बात पर सहमत थे कि भारत के विकास का अर्थ आर्थिक संवृद्धि और आर्थिक-सामाजिक न्याय दोनों है। इस बात पर भी सहमति थी कि इस मामले को व्यवसायी, उद्योगपति और किसानों के भरोसे नहीं छोड़ा जा सकता है। .
(iii) सरकार को इस मसले में प्रमुख भूमिका निभानी थी। जो भी हो, आर्थिक-संवृद्धि हो और सामाजिक न्याय भी मिले-इसे सुनिश्चित करने के लिए सरकार कौन-सी भूमिका (पूर्णतया सक्रिय या पूर्णतया निष्क्रय) निभाएं? इस सवाल पर मतभेद थे। क्या कोई ऐसा केन्द्रीय संगठन (अर्थात् योजना आयोग) जरूरी है जो देश के लिए योजना बनाए? क्या सरकार को कुछ महत्वपूर्ण उद्योग और व्यवसाय खुद (सार्वजनिक क्षेत्र) चलाने चाहिए? अगर सामाजिक न्याय संवृद्धि की जरूरतों के आड़े आता हो तो ऐसी सूरत में सामाजिक न्याय पर कितना जोर देना उचित होगा ?
(iv) उपर्युक्त प्रत्येक सवाल पर टकराव हुए जो आज तक जारी है। जो फैसले लिए गए उनके राजनीतिक परिणाम सामने आए। इनमें से अधिकतर मसलों पर राजनीतिक रूप से कोई फैसला लेना ही था और इसके लिए राजनीतिक दलों से विचार-विमर्श करना जरूरी था, साथ ही जनता की स्वीकृति भी हासिल करनी थी।
Q.163. वामपंथ एवं दक्षिण पंथ के अर्थ स्पष्ट कीजिए। भारतीय राजनयिक दलों को ध्यान में रखकर दोनों रूझानों को आशय स्पष्ट कीजिए।
Ans ⇒ 1. वामपंथ – प्रायः वामपंथ का उल्लेख करते हुए उन लोगों या दलों की ओर संकेत किया जाता है जो प्रायः साम्यवादी या समाजवादी, माओवादी, लेनिनवादी, नक्सलवादी, प्रजासमाजवादी, फॉरवर्ड ब्लॉक आदि दल स्वयं को इसी विचारधारा के पक्षधर एवं उस पर चलने के लिए कार्यक्रम एवं नीतियाँ बनाते हैं। प्रायः ये गरीब एवं पिछड़े सामाजिक समूह की तरफदारी करते हैं। वह इन्हीं वर्गों को लाभ पहुंचाने वाली सरकारी नीतियों का समर्थन करते हैं।
भारत में भारतीय साम्यवादी दल, भारतीय साम्यवादी दल (मार्क्सवादी) समाजवादी दल स्वयं को वामपंथी मानते हैं। ये लेनिनवादी-मार्क्सवादी या भूतपूर्व सोवियत संघ या साम्यवादी चीन की नीतियों एवं विकास कार्यक्रम को ही अधिक अच्छा समझते रहे हैं। समाजवादी दल भी स्वयं को वामपंथी मानता है।
2. दक्षिणपंथ – इस विचारधारा से उन लोगों या दलों की ओर इंगित किया जाता है जो यह मानते हैं कि खुली प्रतिस्पर्धा और बाजारमूलक अर्थव्यवस्था के द्वारा ही प्रगति हो सकती है अर्थात् सरकार । को अर्थव्यवस्था में गैर जरूरी हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए। भूतपूर्व स्वतंत्रता पार्टी, भारतीय जनसंख्या, वर्तमान भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस को (विशेषकर 1991 की नई आर्थिक नीति के बाद) दक्षिणा पंथ की राजनीतिक पार्टियाँ कहा जाता है। वर्तमान भारतीय जनता दल एवं ज्यादातर एन० डी० ए० से जुड़े दल भी दक्षिण पंथी है।
3. अंतर्राष्ट्रीय फिजा से हम सोवियत संघ की पूर्व राजनीतिक साम्यवादी (बोल्शेविक दल) पार्टी या चीन की कम्युनिस्ट वामपंथी तो अमेरिका की दोनों राजनीतिक पार्टियों-डेमोक्रेटिक पार्टी तथा रिपब्लिकन पार्टी तथा ब्रिटेन की कंजरवेटिव पार्टी दक्षिणपंथ के अच्छे उदाहरण हैं। प्रायः दक्षिणपंथ उदारवाद, वैश्वीकरण, पूंजीवाद, व्यक्तिवाद, उन्मुक्त व्यापार आदि के पक्षधर होते हैं।
वामपंथ भूमि सुधारों, उद्योगों तथा भूमि एवं उत्पादन साधनों का स्वामित्व एवं प्रबंध प्रायः किसानों एवं मजदूरों के दिये जाने के पक्षधर होते हैं। 1947 से 1990 तक काँग्रेस पार्टी को मध्यवर्ती या केन्द्रीय नीतियों पर चलने वाली पार्टी माना जाता था।
Q.164. द्वितीय विश्व युद्ध के उपरान्त कई देशों ने शक्तिशाली राष्ट्रों की इच्छानुसार अपनी विदेश नीति क्यों अपनायी थी ?
Ans ⇒ द्वितीय विश्व युद्ध के तुरंत बाद (1945 ई. के उपरान्त) के दौर में अनेक विकासशील देशों ने ताकतवर देशों की मर्जी को ध्यान में रखकर अपनी विदेश नीति इसलिए अपनाई क्योंकि इन देशों से (सुपर तथा ताकतवर शक्तियों) से इन्हें (नव स्वतंत्र देश या विकासशील देश अनुदान) (Grants) अथवा ऋण (कर्ज) मिल रहा था।
Q.165. विदेशी संबंध के विषय में संविधान निर्माताओं ने राज्य के नीति निर्देशक सिद्धान्तों के अन्तर्गत अनुच्छेद 51 में क्या कहा है। संक्षेप में उल्लेख कीजिए।
Ans ⇒ भारतीय संविधान के अनुच्छेद 51 में ‘अन्तर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा के बढ़ावे’ के लिए राज्य के नीति-निर्देशक सिद्धांत के हवाले (संदर्भ से) कहा गया है कि राज्य-(a) अंतर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा की अभिवृद्धि का, (b) राष्ट्रों के बीच न्यायसंगत और सम्मानपूर्ण संबंधों को बनाए रखने का, (c) संगठित लोगों के एक-दूसरे से व्यवहार में अंतर्राष्ट्रीय विधि और संधि-बाध्यताओं के प्रति आदर बढ़ाने का, और (d) अंतर्राष्ट्रीय विवादों को पारस्परिक बातचीत द्वारा निपटारे के लिए प्रोत्साहन देने का प्रयास करेगा।
Q.166. प्रथम एफ्रो एशियाई एकता सम्मेलन कहाँ, कब हुआ ? इसकी कुछ विशेषताएं बताइए।
Ans ⇒ एफ्रो एशियाई एकता सम्मेलन इंडोनेशिया के एक बड़े शहर बांडुग में 1955 में हुआ।
विशेषताएँ (Features) -6
(i) आमतौर पर इसे बांडुग सम्मेलन के नाम से जाना जाता है।
(ii) इस सम्मेलन में गुट-निरपेक्ष आंदोलन की नींव पड़ी। इस सम्मेलन में भाग लेने वाले देशों . ने इंडोनेशिया से नस्लवाद खासकर दक्षिण अफ्रीका में रंग-भेद का विरोध किया।
Q. 167. द्वितीय विश्वयुद्ध के पश्चात् अन्तर्राष्ट्रीय क्षेत्र में संयुक्त राज्य अमेरिका की स्थिति का वर्णन कीजिए।
Ans ⇒ द्वितीय विश्वयुद्ध के पश्चात् संयुक्त राज्य अमेरिका विश्व का सबसे शक्तिशाली राष्ट्र था। उस पर समस्त विश्व के नेतृत्व का उत्तरदायित्व था। दूसरा शक्तिशाली देश सोवियत रूस था जो अन्तर्राष्ट्रीय साम्यवादी क्रांति का कार्य करता था। पश्चिमी यूरोप के देश शक्तिशून्य हो चुके थे। अफ्रीका और एशिया के देशों में आर्थिक दरिद्रता छाई हुई थी। इन देशों में साम्यवाद के प्रसार को रोकने के लिए अमेरिका ने अपनी विदेश नीति को साम्यवाद के प्रसार.की रोक पर आधारित बनाया।
Q.168. विरोधी दलों के विरोध तथा काँग्रेस की टूट ने आपातकाल की पृष्ठभूमि कैसे तैयार की थी ?
Ans ⇒ देश में 1952 ई. के चुनाव से ही देश एवं अधिकांश प्रांतों में काँग्रेस के पास ही सत्ता रही। कुछ ही प्रांतों में विरोधी दलों या संयुक्त विरोधी दलों की सरकारें बनीं। वे केंद्र में सत्ता में आना चाहते थे। काँग्रेस के विपक्ष में जो दल थे उन्हें लग रहा था कि सरकारी प्राधिकार को निजी प्राधिकार मानकर इस्तेमाल किया जा रहा है और राजनीति हद से ज्यादा व्यक्तिगत होती जा रही है। काँग्रेस टूटने से इंदिरा गाँधी और उनके विरोधियों के बीच मतभेद गहरे हो गए थे।
सत्ता पाने पर प्रायः प्रत्येक व्यक्ति में किसी-न-किसी सीमा तक घमंड आ ही जाता है। इंदिरा गाँधी भी इसका अपवाद नहीं थी। वे पुरानी काँग्रेस को पूर्णतया निर्बल बनाने की इच्छा रखती थीं। गुजरात आंदोलन तथा बिहार आंदोलनों को विरोधी दलों ने राष्ट्रव्यापी बनाना चाहा जय प्रकाश नारायण संपूर्ण क्रांति की बात कर रहे थे। ऐसी सभी घटनाओं ने आपातकाल के लिए पृष्ठभूमि तैयार की।
Q.169. किन्हीं उन प्रमुख चार नेताओं का उल्लेख कीजिए जिन्होंने समाज के दलितों के कल्याण के लिए प्रयास किए।
Ans ⇒ (i) ज्योतिराव फुले ने भारतीय समाज के तथाकथित पिछड़े वर्ग के कल्याण के लिए आवाज उठाई, संगठन बनाए और लेख लिखे। वे ब्राह्मणवाद के कट्टर विरोधी थे।
(ii) मोहनदास कर्मचंद गांधी, उन्होंने हरिजन संघ, हरिजन नाम से पत्रिका और छुआछूत उन्मूलन और तथाकथित हरिजनों (जिन्हें प्राय: दलित कहा जाना अधिक सही माना जाता है) के कल्याण के लिए बहुत प्रयास किया।
(iii) डॉ. भीमराव अम्बेदकर ने अपने जीवन पर दलितों के उत्थान के लिए कार्य किए, संगठन बनाए और भारतीय संविधान की रचना के दौरान छुआछूत उन्मूलन के लिए व्यवस्था कराई। किसी भी रूप में छूआछूत के व्यवहार करनेवाले लोगों को दोषी मानकर कानून के अंतर्गत कठोर दंड दिए जाने की व्यवस्था कराई।
(iv) काशीराम ने डॉ. भीमराव अम्बेदकर जैसे महान् समाज-सुधारक को अपना आदर्श और प्रेरणा स्रोत मानकर बहुजन समाज पार्टी की रचना की। यह दल उनके संपूर्ण जीवन में कार्यरत रहा। आज भी यह दल उनके कल्याण के लिए कार्यरत हैं।
Q.170. संयुक्त राष्ट्र की कुछ उपलब्धियों का वर्णन कीजिए।
Ans ⇒ संयुक्त राष्ट्र की विधिवत् स्थापना 24 अक्टूबर, 1945 ई० को हुई। इसकी स्थापना का मुख्य उद्देश्य विश्व शांति की स्थापना था। अपनी स्थापना के बाद अब तक की संयुक्त राष्ट्र की कुछ प्रमुख उपलब्धियाँ निम्नलिखित थीं –
1. इसमें फिलिस्तीन समस्या को हल किया और यहूदियों के लिए 1948 ई० में इजरायल राज्य की स्थापना की।
2. इसने कोरिया तथा हिंद-चीन के युद्ध को समाप्त कराया और कोरिया की स्वाधीनता पर आँच नहीं आने दी।
3. इसने इंडोनेशिया से डच सेनाओं को वापस लौटने के लिए मजबूर किया। इस प्रकार 1948 ई० में स्वतंत्र इंडोनेशिया का उदय हुआ।
4. इसने 1948 और 1965 में कश्मीर की सीमा पर भारत और पाकिस्तान के युद्ध को बंद कराया।
5. इसने इंगलैंड और मिस्र के बीच स्वेज नहर के झगड़े का अंत कराया। इसने मलाया, लीबिया, ट्यनेशिया, घाना तथा टोगोलैंड आदि देशों को स्वतंत्र करने में पूरी-पूरी सहायता की।
6. इसने कांगो में शांति स्थापित कराने में पूरी-पूरी सहायता की। इसने सोवियत रूस और अमेरिका (दो गुटों) के आपसी मतभेदों और तनावों को कम किया।
7. इसने विनाशकारी शस्त्रों की रोकथाम के लिए समय-समय पर बड़े राष्ट्र के शिखर सम्मेलन . बुलाए।
8. संयुक्त राष्ट्र संघ ने ईरान और इराक के बीच आठ वर्षों से चले आ रहे युद्ध को 1988 ई. में समाप्त करवा कर एक और सफलता प्राप्त की। ..
Q.171. भारत को संयुक्त राष्ट्र की सदस्यता से क्या लाभ हुए ?
Ans ⇒ जहाँ एक ओर विश्व के राष्ट्र संयुक्त राष्ट्र को सहयोग देते हैं, वहाँ दूसरी ओर संयुक्त राष्ट्र की विशेष संस्थाओं ने भारत की शैक्षिक, सामाजिक, आर्थिक, तकनीकी तथा वैज्ञानिक उन्नति में सराहनीय योगदान दिया है, जिसका वर्णन निम्न प्रकार हैं :
1. उत्तर प्रदेश के तराई प्रदेश को कृषि योग्य बनाने में खाद्य एवं कृषि संगठन ने बहुत सहायता दी है। राजस्थान में रेगिस्तान के प्रसार को रोकने तथा इसे हरा-भरा बनाने में भी यह संगठन प्रयत्नशील है।
2. विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भारत में जनस्वास्थ्य के लिए प्रशंसनीय कार्य किये। डी. डी. टी तथा तपेदिक निवारण के लिए बी. सी. जी. वैक्सीन पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध कराये हैं। चिकित्सा क्षेत्र में उच्च अध्ययन के लिए अनेक छात्रवृतियाँ भी दी हैं।
3. शैक्षिक व सांस्कृतिक क्षेत्र में भी भारत को संयुक्त राष्ट्र से काफी मदद मिली है। इसकी विशेष संस्था ‘यूनेस्को’ ने भारत में शिक्षा-प्रसार में यथेष्ट योगदान दिया है। तकनीकी क्षेत्र में विभिन्न देशों से अध्यापकों एवं छात्रों के आदान-प्रदान करने में तथा अन्य देशों में सांस्कृतिक संपर्क बढ़ाने में भारत को यूनेस्को से सहायता मिली है।
4. भारत के आर्थिक विकास में भी संयुक्त राष्ट्र ने अनेक प्रकार से सहायता पहुँचाई है। विश्व बैंक ने पंचवर्षीय योजनाओं के लिए ऋण भी दिये हैं। अनेक योजनाओं को सफल बनाने के लिए हमें तकनीकी विशेषज्ञों का परामर्श भी उपलब्ध हुआ है।
Q.172. 1990 ई० का दशक भारतीय राजनीति में नए बदलाव का दशक क्यों माना जाता है ?
Ans ⇒ (i) 1984 ई० में भारत के प्रथम महिला प्रधानमंत्री को अंगरक्षकों द्वारा 1984 ई० में हत्या। लोकसभा के चुनाव सहानुभूति की लहर में काँग्रेस का विजयी होना और उनके पुत्र राजीव गाँधी का प्रधानमंत्री बनना परंतु 1989 में काँग्रेस की हार और 1991 में मध्यावधि का चुनाव होना।
(ii) राष्ट्रीय राजनीति में मंडल मुद्दा (ओ.बी.सी.) का उदय होना।
(iii) विभिन्न सरकारों द्वारा नई आर्थिक नीति और सुधारों को अपनाकर, उदारीकरण, वैश्वीकरण को बढ़ावा देना।
(iv) अयोध्या में स्थिति एक विवादित ढाँचे का विध्वंस, देश में सामाजिक सांप्रदायिक तनाव और दंगे देश में गठबंधन की राजनीति तेजी से उदित होना और नए राजनैतिक दलों के रूप में भाजपा, उसके सहयोगी और संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन के समर्थक दलों का तेजी से उत्थान।
Q.173. शांति स्थापना कार्यवाही से आप क्या समझते हैं ? उसमें भारत की भूमिका का वर्णन कीजिए।
Ans ⇒ विश्व शांति की स्थापना में संयुक्त राष्ट्र ने महत्वपूर्ण कार्य किया है। 1950-60 के दशकों में विश्व के विभिन्न भागों में विवाद उत्पन्न हुए। भारत ने संयुक्त राष्ट्र के अंतर्गत तथा संयुक्त राष्ट्र के अधीन विश्वशांति की स्थापना के लिए अहम् भूमिका निभायी। इसके लिए भारत ने अपनी सेनाएँ भेज कर योगदान दिया। भारतीय सेना ने कछ अत्यंत कठिन मिशन में भाग लिया और काफी नुकसान उठाते हुए शांति स्थापित करायी। भारत ने कोरिया में युद्ध पीड़ितों और घायलों की सेवा के लिए पारामेडिकल युनिट का प्रावधान किया। कोरिया में 1953 में युद्ध विराम के बाद भारत को तटस्थ राष्ट्र आयोग (Neutral Nations Repatitation Commission) का चेयरमैन नियुक्त किया गया। भारत ने मध्य एशिया में शांति स्थापना में भी मदद की है। यूनाइटेड नेशन्स इमरजेन्सी फोर्स (UNEF) अर्थात् संयुक्त राष्ट्र आपात सेना 1956 में भारत ने इन्फेन्ट्री बटालियन उपलब्ध करायी। यह कार्यक्रम 11 वर्ष तक 1956 से 1967 तक चलाया गया। भारत 1954 में अंतर्राष्ट्रीय नियंत्रण आयोग (International Control Commission) का चेयरमैन रहा जिसने वियतनाम और लाओस, कम्बोडिया और फ्रांस में युद्ध विराम लागू कराया। 1970 तक भारत ने अपनी इन्फैन्ट्री बटालियन को भेजा। 1960 में, कांगो में भी भारतीय सेना के मानवतापूर्ण कार्यों और अनुशासन की बड़ी प्रशंसा हुई थी। यमन में 1960 में, साइप्रस में संयुक्त राष्ट्र आपरेशन के तहत तथा ईरान-इराक सीमा विवाद के तहत भारत ने सहायता दी। फार्स कमाण्डर तथा आवजर्वर भेजे गये। संयुक्त राष्ट्र द्वारा की गयी कार्यवाही में भी भारत ने अपने अफसर तथा इंजीनियरों को भेजा। विश्व के अधिकांश भागों में भारत ने इस प्रकार के शांति प्रयासों में कदम उठाए हैं। अफ्रीकी एशियाई एकता तथा संयुक्त राष्ट्र में शांति स्थापना के प्रयासों में भारत अपनी जोरदार आवाज उठाता रहा है।
Q.174. द्वितीय विश्वयुद्ध के उपरान्त महाशक्तियों को गुट बनाने की आवश्यकता क्यों पड़ी थी ?
Ans ⇒ द्वितीय विश्वयुद्ध के उपरान्त महाशक्तियों को गुट बनाने की आवश्यकता निम्न कारणों से पड़ी थी-
1. अपने-अपने राजनीतिक प्रभाव एवं समर्थकों की संख्या बढ़ाने के लिए उन्हें अपने गुट बनाने की जरूरत पड़ी थी।
2. अनेक राष्ट्र विशेषकर यूरोप में दोनों शक्तियाँ एक-दूसरे के विरुद्ध दो विश्वयुद्ध लड़ चुकी थीं। वे अब भी सोच रही थीं कि तीसरा विश्व युद्ध छिड़ने पर वे अपने-अपने समर्थक राष्ट्रों से सैनिक, युद्ध सामग्री, खाद्य सामग्री आदि तुरंत प्राप्त कर सकेंगे।
3. तेल (पेट्रोल) तथा डीजल उत्पादक देशों को अपनी ओर करना जरूरी था ताकि सामान्य परिस्थितियों में आर्थिक विकास तथा संकट की घड़ी में युद्ध संचालन, यातायात तथा औद्योगिक एवं कृषि उन्नति निरन्तर जारी रखी जा सके।
4. खनिज सम्पदा एशियाई, अफ्रीकी तथा लतीनी देशों से प्राप्त किये जा सकते थे।
5. अनेक देशों के समर्थन या मित्रता के बाद उनके भू-क्षेत्र को महाशक्तियाँ अपने हथियारों एवं सेना का संचालन करने के लिए उपयोग कर सकते थे।
6. महाशक्तियाँ छोटी शक्तियों के द्वीपों या भू-क्षेत्रों को जासूसी करने के लिए इस्तेमाल कर सकते थे। शत्रु के सैनिक ठिकानों का पता करना एवं उनकी जासूसी करना समर्थक देशों के माध्यम से या सहयोग से आसानी से की जा सकती है।
7. महाशक्तियाँ आर्थिक मदद लेन-देन के लिए भी अपने गुट के सदस्यों का प्रयोग कर सकते हैं।
8. पूँजीवादी गुट के देश साम्यवाद को अपनी विचारधारा के लिए हउआ मानते थे।
Q.175. “किसी देश की सुरक्षा, आंतरिक शांति और कानून व्यवस्था पर निर्भर करती है। इस कथन को समझाते हुए बताइए कि दूसरे विश्वयुद्ध के बाद विश्व की दो महान शक्तियों ने अपनी सीमाओं के बाहर खतरों पर ध्यान क्यों केन्द्रित किया ?
Ans ⇒ 1. पारंपरिक धारणा के अनुसार किसी देश की सुरक्षा आंतरिक शांति और कानून व्यवस्था पर अवलंबित होती है। अगर किसी देश के भीतर रक्तपात हो रहा हो अथवा होने की आशंका हो तो वह देश सुरक्षित कैसे हो सकता है? यह बाहर के हमलों से निपटने की तैयारी कैसे करेगा जबकि खुद अपनी सीमा के भीतर सुरक्षित नहीं है ? इसी कारण सुरक्षा की परंपरागत धारणा का जरूरी अंदरूनी सुरक्षा से भी है।
2. दूसरे विश्वयुद्ध के बाद से इस पहलू पर ज्यादा जोर नहीं दिया गया तो इसका कारण यही था कि दुनिया के अधिकांश ताकतवर देश अपनी अंदरूनी सुरक्षा के प्रति कमोबेश आश्वस्त थे। हमने पहले कहा था कि संदर्भ और स्थिति को नजर में रखना जरूरी है। आंतिरक सुरक्षा ऐतिहासिक रूप से सरकारों का सरोकार बनी चली आ रही थी लेकिन दूसरे विश्वयुद्ध के बाद ऐसे हालात और संदर्भ सामने आये कि आंतिरक सुरक्षा पहले की तुलना में कहीं कम महत्त्व की चीज़ बन गई।
3. सन् 1945 के बाद ऐसा जान पड़ा कि.संयुक्त राज्य अमेरिका और सोक्यित संघ अपनी सीमा के अंदर एकीकृत और शांति संपन्न है। अधिकांश यूरोपीय देशों, खासकर ताकतवर पश्चिमी मुल्कों के सामने अपनी सीमा के भीतर बसे समुदायों अथवा वर्गों से कोई गंभीर खतरा नहीं था। इस कारण इन देशों ने अपना ध्यान सीमापार के खतरों पर केन्द्रित किया।
Q.176. तीसरी दुनिया के देशों और विकसित देशों की जनता के सामने मौजूद खतरों में क्या अंतर है ?
Ans ⇒ (i) तीसरी दुनिया से हमारा अभिप्राय जापान को छोड़कर संपूर्ण एशियाई अफ्रीकी और लैटिन अमेरिकी देशों से हैं इन देशों के सामने विकसित देशों की जनता के सामने आने वाले मौजूदा खतरों से बड़ा अंतर है।
(ii) विकसित देशों से हमारा अभिप्राय प्रथम दुनिया और द्वितीय दुनिया के देशों से है। प्रथम दुनिया के देशों में संयुक्त राज्य अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी, इटली और पश्चिमी यूरोप के अधिकांश देश आते हैं जबकि दूसरी दुनिया में प्रायः पूर्व सोवियत संघ (अब रूस) और अधिकतर पूर्वी यूरोप के देश शामिल किए जाते हैं।
(iii) तीसरी दुनिया के देशों के सामने बाह्य सुरक्षा का खतरा तो है ही लेकिन उनके सामने आंतरिक खतरे भी बहुत हैं। उन्हें बाहरी खतरों में विदेशी बड़ी शक्तियों के वर्चस्व का खतरा होता है। वे देश उन्हें अपनी सैन्य सर्वस्व, राजनैतिक विचारधारा के वर्चस्व और आर्थिक सहायता सशर्त देने के वर्चस्व से डराते रहते हैं। प्रायः बड़ी शक्तियाँ उनके पड़ोसी देशों के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप करके या मनमानी कठपुतली सरकारें बनाकर उनसे मनमाने तरीके से तीसरी दुनिया के देशों के लिए खतरे पैदा करते रहते हैं जैसे अपरोक्ष रूप से वह आतंकवाद को बढ़ावा देकर या मनमानी कीमतों पर प्राकृतिक संसाधनों की आपूर्ति या अपने हित के लिए ही उदारीकरण, मुक्त व्यापार, वैश्वीकरण, सशर्त निवेश आदि के द्वारा आंतरिक आर्थिक खतरे जैसे कीमतों की बढ़ोत्तरी, बेरोजगारी में वृद्धि, निर्धनता, आर्थिक विषमता को प्रोत्साहन देकर, उन्हें निम्न जीवन स्तर की तरफ अप्रत्यक्ष रूप से धकेलकर नए-नए खतरे पैदा करते हैं।
(iv) तीसरी दुनिया के सामने आतंकवाद, एड्स, बर्ड फ्लू और अन्य महामारियाँ भी खतरा बनकर आती हैं। इन देशों में प्रायः पारस्परिक घृणा, संकीर्ण भावनाओं के कारण उत्पन्न होती रहती है। जैसे घामक उन्माद, जाति भेद-भाव पर आधारित आंतरिक दंगों का खतरा, महिलाओं और बच्चों का निरंतर
बढ़ता हुआ यौवन और अन्य तरह का शोषण, भाषावाद, क्षेत्रवाद आदि से भी इन देशों में खतरा उत्पन्न होता रहता है। कई बार बड़ी शक्तियाँ इन देशों में सांस्कृतिक शोषण और पाश्चात्य सांस्कृति ऐसे मूल्यों को बढ़ावा देती हैं जिनके कारण उनकी पहचान और संस्कृति खतरे में आ सकती है।
(v) यहाँ तक विकसित राष्ट्रों का प्रश्न है उनके सामने अपनी परमाणु बमों के वर्चस्व को बनाए रखना और विश्व की अन्य शक्तियों को कई परमाणु शक्ति बनने से रोकना है। दूसरी ओर पहली दुनिया के देश चाहते हैं कि नाटो बना रहे और परमाणु शक्ति का वर्चस्व स्थापित रहे।
Q.177. मणिपुर रियासत का विलय भारत संघ में किस प्रकार सम्पन्न हुआ ? संक्षेप में समझाइए।
Ans ⇒ मणिपुर का भारत संघ में विलय (Annexation of Manipur of India Union)
(i) भारतीय सरकार और राजा में समझौता Agreement between Indian Government and India ruler) – आजादी के चंद रोज पहले मणिपुर के महाराजा बोधचंद्र सिंह ने भारत सरकार के साथ भारतीय संघ में अपनी रियासतों के विलय के एक सहमति-पत्र पर हस्ताक्षर किए थे। इसकी एवज में उन्हें यह आश्वासन दिया गया था कि मणिपुर की आंतरिक स्वायतत्ता बरकरार रहेगी।
(ii) चुनाव Election) – जनमत के दबाव में महाराजा ने 1948 ई० के जून में चुनाव करवाया और इस चुनाव के फलस्वरूप मणिपुर की रियासत में संवैधानिक राजतंत्र कायम हुआ। मणिपुर भारत का पहला भाग है जहाँ सार्वभौम वयस्क मताधिकार के सिद्धांत को अपनाकर चुनाव हुए।
(ii) राजनैतिक दलों में मतभेद (Differences among Political Parties) – मणिपुर की विधान सभा में भारत में विलय पर गहरे मतभेद थे। मणिपुर की काँग्रेस चाहती थी कि इस रियासत को भारत में मिला दिया जाए जबकि दूसरी राजनीतिक पार्टियाँ इसके खिलाफ थीं।
(iv) अंतिम समझौता और विलय(Find Agreement and Annexation) – मणिपुर की निर्वाचित विधान सभा से परामर्श किए बगैर भारत सरकार ने महाराजा पर दबाव डाला कि वे भारतीय संघ में शामिल होने के समझौते पर हस्ताक्षर कर दें। भारत सरकार को इसमें सफलता मिली। मणिपुर में इस कदम को लेकर लोगों में क्रोध और नाराजगी के भाव पैदा हुए। इसका असर आज तक देखा जा सकता है।
Q.178. भारत का प्रथम आम चुनाव अथवा 1952 ई० का चुनाव देश के लोकतंत्र के इतिहास के लिए मील का पत्थर (Milestone) क्यों और कैसे साबित हुआ ? संक्षेप में लिखिए।
Ans ⇒ 1. स्वतंत्र भारत के प्रथम आम चुनावों को दो बार स्थगित करना पड़ा और आखिरकार 1951 ई० के अक्टूबर से 1952 ई. के फरवरी तक चुनाव हुए। जो भी हो इस चुनाव को अमूमन 1952 ई. का चनाव ही कहा जाता है क्योंकि देश के ज्यादातर हिस्सों में मतदान 1952 ई. में ही हए। चना अभियान, मतदान और मतगणना में कल छह महीने लगे।
2. चुनावों में उम्मीदवारों के बीच मुकाबला भी हुआ। औसतन हर सीट के लिए चार उम्मीदवार चुनाव मैदान में थे। लोगों ने इस चुनाव में बढ़-चढ़कर हिस्सेदारी की। कुल मतदाताओं में आधे से अधिक ने मतदान के लिए अपना वोट डाला।
3. चुनावों के परिणाम घोषित हुए तो हारने वाले उम्मीदवारों ने भी इन परिणामों को निष्पक्ष बताया। सार्वभौम मताधिकार (Universal Adult Franchise) के इस प्रयोग ने आलोचकों का मुँह बंद कर दिया। टाइम्स ऑफ इंडिया ने माना कि इन चुनावों ने “उन सभी आलोचकों के संदेहों पर पानी फेर दिया है जो सार्वभौम मताधिकार की इस शुरुआत को इस देश के लिए खतरे का सौदा मान रहे थे।”
4. देश से बाहर के पर्यवेक्षक भी हैरान थे। हिंदुस्तान टाइम्स ने लिखा-”यह बात हर जगह मानी जा रही है कि भारतीय जनता ने विश्व के इतिहास में लोकतंत्र के सबसे बड़े प्रयोग को बखूबी अंजाम
दिया।” 1952 का आम चुनाव पूरी दुनिया में लोकतंत्र के इतिहास के लिए मील का पत्थर साबित हुआ। अब यह दलील दे पाना संभव नहीं रहा कि लोकतांत्रिक चुनाव गरीबी अथवा अशिक्षा के माहौल में नहीं कराए जा सकते। यह बात साबित हो गई कि दुनिया में कहीं भी लोकतंत्र पर अमल किया जा सकता है।
Q.179. उन कारकों की चर्चा कीजिए जिनकी वजह से प्रथम आम चुनाव में कांग्रेस को भारी सफलता प्राप्त हुई थी ?
Ans ⇒ (i) भारत के सन् 1952 ई० में हुए पहले आम चुनाव के नतीजों से शायद ही किसी को अचंभा हुआ। आशा यही थी कि भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस इस चुनाव में जीत जाएगी।
(ii) भारतीय राष्टीय काँग्रेस का लोकप्रचलित नाम काँग्रेस पार्टी था और इस पार्टी को स्वाधीनता संग्राम की विरासत हासिल थी। तब के दिनों में यही एकमात्र पार्टी थी जिसका संगठन पूरे देश में था।
(iii) इस पार्टी में खुद जवाहरलाल नेहरू थे जो भारतीय राजनीति के सबसे करिश्माई और लोकप्रिय नेता थे। नेहरू ने काँग्रेस पार्टी के चुनाव अभियान की अगुवाई की और पूरे देश का दौरा किया। जब चुनाव परिणाम घोषित हुए तो काँग्रेस पार्टी की भारी जीत से बहुतों को आश्चर्य हुआ।
Q.180. केरल में प्रथम कम्युनिस्टों की जीत और धारा 356 का काँग्रेस द्वारा दुरुपयोग विषय पर टिप्पणी लिखिए।
Ans ⇒ I. केरल में कम्युनिस्टों की प्रथम चुनावी जीत (The first election victory of the Communist Party in Kerala)- 1957 ई० में ही काँग्रेस पार्टी ने केरल में हार का स्वाद चखना पड़ रहा था। 1957 के मार्च महीने में जो विधानसभा चुनावों के चुनाव हुए उनमें कम्युनिस्ट पार्टी को केरल की विधानसभा के लिए सबसे ज्यादा सीटें मिलीं। कम्युनिस्ट पार्टी को कुल 126 में से 76 सीटें हासिल हुईं और पाँच स्वतंत्र उम्मीदवारों का भी समर्थन इस पार्टी को प्राप्त था। राज्यपाल ने कम्युनिस्ट विधायक दल के नेता ई० एम० एस. नम्बूदरीपाद को सरकार बनाने का न्यौता दिया। दुनिया में यह पहला अवसर था। जब एक कम्युनिस्ट पार्टी की सरकार लोकतांत्रिक चुनावों के जरिए बनी।
II. संविधान की धारा 356 का दुरुपयोग (MisurseofArticle356of the Constitution) केरल में सत्ता से बेदखलं होने पर काँग्रेस पार्टी ने निर्वाचित सरकार के खिलाफ ‘मुक्ति संघर्ष’ छेड़ दिया। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी सत्ता में इस वायदे के साथ आई थी कि वह कुछ क्रांतिकारी तथा प्रगतिशील नीतिगत पहल करेगी। कम्युनिस्ट पार्टी का कहना था कि इस संघर्ष की अगुआई निहित स्वार्थ और धार्मिक संगठन कर रहे हैं। 1959 में केंद्र की काँग्रेस सरकार ने संविधान के अनुच्छेद 356 के अंतर्गत केरल की कम्युनिस्ट सरकार को बर्खास्त कर दिया। यह फैसला बड़ा विवादास्पद साबित हुआ। संविधान-प्रदत्त आपातकालीन शक्तियों के दुरुपयोग के पहले उदाहरण के रूप में फैसले का बार-बार उल्लेख किया जाता है।
Q.181. लोकनायक जयप्रकाश नारायण के जीवन का संक्षिप्त परिचय देते हुए उनके महत्त्वपूर्ण कार्यों या उपलब्धियों का उल्लेख कीजिए।
Ans ⇒ 1. संक्षिप्त परिचय (A brief Introduction) – लोकनायक जयप्रकाश नारायण (जेपी) का जन्म 1902 में हुआ था। वे गाँधीवादी विचारधारा के साथ-साथ समाजवाद तथा मार्क्सवाद से प्रभावित थे। वस्तुत: वे युवावस्था में मार्क्सवादी थे। उन्होंने स्वराज्य के संघर्ष के दिनों में काँग्रेस सोशलिस्ट पार्टी एवं कालांतर में सोशलिस्ट पार्टी की स्थापना की। वे इस दल के महासचिव (general secretary) के पक्षधर रहे।
2. प्रमख कार्य एवं उपलब्धियाँ (Main works and achievements) – सन् 1942 में गाँधीजी द्वारा छेड़े भारत छोड़ो आंदोलन (Quit India Movement) के महानायक बन गए। उन्हें स्वतंत्रता के उपरांत जवाहरलाल नेहरू के राजनीतिक उत्तराधिकारी के रूप में देखा गया। उन्होंने विनोबा भावे के भूआंदोलन में भी बढ़-चढ़कर भाग लिया था। उन्हें कई बार देश के राष्ट्रपति तथा नेहरू मंत्रिमंडल में शामिल होने के लिए कहा गया लेकिन उनहोंने ऐसा करने से इंकार कर दिया। वे निस्वार्थी महान् नेता थे। उन्होंने 1955 में सक्रिय राजनीति छोड़ दी। वे गाँधीवादी होकर भूदान आंदोलन में बहुत ही सक्रिय हो गए। वे वस्तुतः लोक नायक थे। उन्होंने नागा विद्रोहियों से सरकार की ओर से सुलह की बातचीत की। उन्होंने कश्मीर में शांति प्रयास किए। उन्होंने चंबल (घाटी) के डकैतों से सरकार के समक्ष आत्मसमर्पण कराया। उन्होंने सन् 1970 के बाद लाए गए बिहार आंदोलन का नेतृत्व स्वीकार किया। वे अधिकांश विरोधी राजनीतिक दलों को एक मंच पर इंदिरा गाँधी द्वारा लगाई गई (जून 1975) की आपातकाल के घोर विरोधी के प्रतीक बन गए थे। उन्होंने जनता पार्टी के गठन में अहम भूमिका निभाई। सन् 1979 में उनका निधन हो गया।
Q. 182. आंध्र प्रदेश में चले शराब विरोधी आंदोलन ने देश का ध्यान कुछ गंभीर मुद्दों की तरफ खींचा। ये मुद्दे क्या थे ?
Ans ⇒ आंध्र प्रदेश में शराब-विरोधी आंदोलन द्वारा चलाए गए जिन गंभीर मुद्दों की तरफ ध्यान खींचा (Issue and itemattention drawn by anti arrck movement launched in Andhra Pradesh) – ताड़ी-विरोधी आंदोलन का नारा बहुत साधारण था- ‘ताड़ी की बिक्री बंद करो।’ लेकिन इस साधारण नारे ने क्षेत्र के व्यापक सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक मुद्दों तथा महिलाओं के जीवन को गहरे प्रभावित किया।
(ii) ताड़ी व्यवसाय को लेकर अपराध एवं राजनीति के बीच एक गहरा नाता बन गया था। राज्य सरकार को ताड़ी की बिक्री से काफी राजस्व प्राप्ति होती थी इसलिए वह इस पर प्रतिबंध नहीं लगा रही थी।
(iii) स्थानीय महिलाओं के समूहों ने इस जटिल मुद्दे को अपने आंदोलन में उठाना शुरू किया। वे घरेलू हिंसा के मुद्दे पर भी खुले तौर पर चर्चा करने लगीं। आदोलन ने पहली बार महिलाओं को घरेलू हिंसा जैसे निजी मुद्दों पर बोलने का मौका दिया।
(iv) ताड़ी-विरोधी आंदोलन महिला आन्दोलन, का एक हिस्सा बन गया। इससे पहले घरेलू हिंसा दहेज प्रथा, कार्यस्थल एवं सार्वजनिक स्थानों पर यौन उत्पीड़न के खिलाफ काम करने वाले महिला समूह आमतौर पर शहरी मध्यवर्गीय महिलाओं के बीच ही सक्रिय थे और यह बात पूरे देश पर लाग होती थी। महिला समूहों के इस सतत कार्य से यह समझदारी विकसित होनी शुरू हुई कि औरतों पर होने वाले अत्याचार और लैंगिक भेदभाव का मामला खासा जटिल है।
(v) आठवें दशक के दौरान महिला आंदोलन परिवार के अंदर और उसके बाहर होने वाली यौन हिंसा के मुद्दों पर केंद्रित रहा। इन समूहों ने दहेज प्रथा के खिलाफ मुहिम चलाई और लैंगिक समानता के सिद्धांत पर आधारित व्यक्तिगत एवं संपत्ति कानूनों की माँग की।
(vi) इस तरह के अभियानों ने महिलाओं के मुद्दों के प्रति समाज में व्यापक जागरूकता पैदा की। धीरे-धीरे महिला आंदोलन कानूनी सुधारों से हटकर सामाजिक टकराव के मुद्दों पर भी खुले तौर पर बात करने लगा।
(vii) नवें दशक तक आते-आते महिला आंदोलन समान राजनीतिक प्रतिनिधित्व की बात करने लगा था। आपको ज्ञात ही होगा कि संविधान के 73वें और 74वें संशोधन के अंतर्गत महिलाओं को स्थानीय राजनीतिक निकायों में आरक्षण दिया गया है।
Q.183. क्या आंदोलन और विरोध की कार्यवाहियों से देश का लोकतंत्र मजबूत होता है? अपने उत्तर की पुष्टि में उदाहरण दीजिए।
Ans ⇒ अहिंसक और शांतिपूर्ण वाले गाँधीगिरी के आंदोलन और कानून के दायरे में रहकर देश का लोकतंत्र मजबूत होता है। हम अपने उत्तर की पुष्टि में निम्न उदाहरण दे सकते हैं –
(i) चिपको आंदोलन अहिंसक, शांतिपूर्ण चलाया गया एक व्यापक जन आंदोलन था। इससे पेड़ों की कटाई, वनों का उजड़ना रुका। पशु-पक्षियों, गिरिजनों को जल, जंगल, जमीन और स्वास्थ्यवर्द्धक पर्यावरण मिला। सरकार लोकतांत्रिक माँगों के सामने झुकी।
(ii) वामपंथियों द्वारा शांतिपूर्ण चलाए गए किसान और मजदूर आंदोलन द्वारा जन-साधारण में जागृति, राष्ट्रीय कार्यों में भागीदारी और सरकार को सर्वहारा वर्ग की उचित माँगों के लिए जगाने में सफलता मिली।
(iii) दलित पैंथर्स नेताओं द्वारा चलाए गए आंदोलनों, लिखे गए सरकार विरोधी साहित्यकारों की कविताओं और रचनाओं ने, आदिवासी, अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और पिछड़ी जातियों में चेतना पैदा की। दलित पैंथर्स राजनैतिक दल और संगठन बने। जाति भेद-भाव और छुआछूत को धक्का लगा। समाज में समानता, स्वतंत्रता, सामाजिक न्याय, आर्थिक न्याय, राजनैतिक न्याय को सुदृढ़ता मिली।
(iv) ताड़ी विरोधी आंदोलन ने नशाबंदी और मद्य निषेध के विरोध में वातावरण तैयार किया। महिलाओं से संबंधित अनेक समस्याएँ (यौवन उत्पीड़न, घरेलू समस्या, दहेज प्रथा और महिलाओं को विधायिकाओं में आरक्षण दिए जाने) मामले उठे। संविधान में कुछ संशोधन हुए और कानून बनाए गए।
Q. 184. “ऑपरेशन विजय” का वर्णन कीजिए तथा उसका महत्त्व बताइए।
Ans ⇒ पुर्तगालियों ने जब किसी भी तरह से भारतीय की प्रार्थना की, आपसी बातचीत को गोवा को छोड़ने के लिए नहीं माना और उसने गलतफहमी में राष्ट्रवादियों और देशप्रेमियों पर हमले करने शुरू कर दिए। सैंकड़ों लोगों को पुर्तगाली पुलिस ने जब अपना निशाना बनाया तो भारत ने गोवा की आजादी के लिए ऑपरेशन विजय’ (Operation Vijay) नामक सैनिक कार्यवाही की ताकि गोवा के साथ-साथ गोवा और दमन दीव को अत्याचारी शासन से छुड़ाया जा सके।
ऑपरेशन विजय नामक कार्यवाही 17-18 दिसंबर, 1961 को शुरू की गई। इस कार्यवाही के. कमांडर जनरल जे. एन.चौधरी थे। दोपहर के 2 बजकर 25 मिनट पर 19 दिसंबर, 1961 को ‘ऑपरेशन ‘विजय’ नामक कार्यवाही समाप्त हो गई।
यह कार्यवाही भारतीय स्वतंत्रता को पूर्ण करने वाली कार्यवाही थी। गोवा, दमन, दीव हवेली आदि में भारत का तिरंगा फहराया गया। नि:संदेह गोवा की स्वतंत्रता ने भारतीयों का स्वाभिमान बढ़ाया और उन्हें सुशोभित किया। वे भारत के अंग बन गए। भारत की भूमि से विदेशियों की अनाधिकृत उपस्थिति और वर्चस्व पूर्णतया समाप्त हो गया।
Q.185. गोवा को पूर्ण राज्य का दर्जा सन् 1987 में किस तरह प्राप्त हुआ? संक्षेप में लिखिए।
Ans ⇒ दिसंबर 1961 में पुर्तगाल से स्वतंत्रता प्राप्त करने वाला गोवा एवं भारत संघ में शामिल हुए गोवा संघ प्रदेश में शीघ्र एक और समस्या उठ खड़ी हुई। महाराष्ट्रवादी गोमांतक पार्टी के नेतृत्व में एक तबके ने माँग रखी कि गोवा को महाराष्ट्र में मिला दिया जाए क्योंकि यह मराठी भाषी क्षेत्र है। बहरहाल, बहुत से गोवावासी गोवानी पहचान और संस्कृति को स्वतंत्र अहमियत बनाए रखना चाहते थे। कोंकणी भाषा के लिए भी इनके मन में आग्रह था। इस तबके का नेतृत्व यूनाइटेड गोअन पार्टी ने किया। 1967 की जनवरी में केंद्र सरकार ने गोवा में एक विशेष जनमत सर्वेक्षण कराया। इसमें गोवा के लोगों से पूछा गया कि आप लोग महाराष्ट्र में शामिल होना चाहते हैं अथवा अलग बने रहना चाहते हैं। भारत में यही एकमात्र अवसर था जब किसी मसले पर सरकार ने जनता की इच्छा को जानने के लिए जनमत संग्रह जैसी प्रक्रिया अपनायी थी। अधिकांश लोगों ने महाराष्ट्र से अलग रहने के पक्ष में मत डालो। इस तरह गोवा संघशासित प्रदेश बना रहा। अंत: 1987 में गोवा भारत संघ का एक राज्य बना।
Q.186. कारगिल की लड़ाई पर टिप्पणी लिखिए।
Ans ⇒ कारगिल की लड़ाई- 1. 1999 के शुरुआती महीनों में भारतीय क्षेत्र की नियंत्रण सीमा रेखा के कई ठिकानों जैसे द्रास, माश्कोह, काकसर और बतालिक पर अपने को मुजाहिदीन बताने वालों ने कब्जा कर लिया था। पाकिस्तान सेना की इसमें मिलीभगत भाँप कर भारतीय सेना इस कब्जे के खिलाफ हरकत में आई। इससे दोनों देशों के बीच संघर्ष छिड़ गया। इसे ‘कारगिल की लड़ाई के नाम से जाना जाता है।
2. 1999 के मई-जून में यह लड़ाई जारी रही। 26 जुलाई 1999 तक भारत अपने अधिकतर ठिकानों पर पुनः अधिकार कर चुका था। कारगिल की लड़ाई ने पूरे विश्व का ध्यान खींचा था क्योंकि इससे ठीक एक साल पहले दोनों देश परमाणु हथियार बनाने की अपनी क्षमता का प्रदर्शन कर चुके थे।
3. जो भी हो यह लड़ाई सिर्फ कारगिल के क्षेत्र तक की सीमित रही। पाकिस्तान में इस लड़ाई को लेकर बहुत विवाद मचा। कहा गया कि सेना के प्रमुख ने प्रधानमंत्री को इस मामले में अँधेरे में रखा था। इस लड़ाई के तुरंत बाद पाकिस्तान की हुकूमत पर जनरल परवेज मुशर्रफ की अगुआई में पाकिस्तान सेना ने नियंत्रण कर लिया।
Q.187. भारत और विश्व शांति पर टिप्पणी लिखिए।
Ans ⇒ भारत की विदेश नीति का प्रमुख उद्देश्य विश्व में शांति की स्थापना करना है। जवाहर लाल नेहरू ने 1949 में कहा था कि, “भारतीय विदेश नीति का मुख्य उद्देश्य पंचशील शांतिपर्ण सह अस्तित्व, निरस्त्रीकरण, मानव अधिकारों का समर्थन आदि हैं। भारत ने 1947 से 1989 तक विश्व की दो महाशक्तियों के बीच शीत युद्ध समाप्त करवाने के लिए हमेशा प्रयत्न किया। उपनिवेशों के स्वतंत्र आंदोलन का समर्थन किया। भारत हमेशा से विश्व शांति के प्रयास करता रहता है।
भारत ने संयुक्त राष्ट्र द्वारा की जानेवाली शांति स्थापना के लिए सैनिक कार्यवाही में अपना सहयोग दिया है। भारत ने इस उद्देश्य के लिए कई देशों में अपनी सेनाएँ भेजी हैं। उदाहरण के लिए, . 1950 में कोरिया के युद्ध में भारत ने चिकित्सा शिष्टमंडल भेजा था। इसी प्रकार कांगो में (1960-64), साप्रस (1964) मिश्र तथा गाजा में (1956) तथा अन्य राज्यों में भी संयुक्त राष्ट्र की प्रार्थना पर शांति स्थापना के लिए सैनिक टुकडियाँ भेजी हैं।
Q.188.सामाजिक अधिकारों से आप क्या समझते हैं ?
Ans ⇒ इनमें मुख्य रूप से ये अधिकार शामिल हैं –
(i) विवाह करने और घर बसाने का अधिकार।
(ii) कुटुम्ब समाज की प्राथमिक इकाई है, जिसे राज्य और समाज का पूर्ण संरक्षण मिले।
(iii) शिक्षा का अधिकार-कम-से-कम प्राथमिक स्तर पर शिक्षा निःशुल्क होगी। शिक्षा का लक्ष्य मानव व्यक्तित्व का पूर्ण विकास और मानव अधिकारों के प्रति सम्मान की भावना जगाना है।
Q.189.मानव अधिकारों में सांस्कृतिक अधिकारों का उल्लेख कीजिए।
Ans ⇒ प्रत्येक मनुष्य को समाज में सांस्कृतिक जीवन में मुख्य रूप से भाग लेने, कलाओं का आनंद लेने और वैज्ञानिक प्रगति के फायदों में हिस्सा प्राप्त करने का अधिकार है।
घोषणा-पत्र के अंत में यह भी कहा गया है कि “प्रत्येक व्यक्ति का उस समुदाय के प्रति कर्तव्य है जिसमें उसके व्यक्तित्व का पूर्ण विकास संभव है”नैतिकता सार्वजनिक व्यवस्था और जनकल्याण की दृष्टि से इन स्वतंत्रताओं के प्रयोग पर मर्यादाएँ लगाई जाएंगी।
Q. 190. वैश्विक तापवृद्धि विश्व में किस प्रकार खतरा उत्पन्न करता है ?
Ans ⇒ वैश्विक ताप वृद्धि विश्व के अनेक भागों में भौगोलिक खतरों को उत्पन्न करता है।
उदाहरण-वैश्विक तापवृद्धि से अगर समुद्रतल 1.5-2.0 मीटर ऊँचा उठता है तो बांग्लादेश का 20 प्रतिशत हिस्सा डूब जाएगा; कमोबेश पूरा मालदीव सागर में समा जाएगा और थाइलैंड की 50 फीसदी आबादी को खतरा पहुँचेगा।
Q. 191. काका कालेलकर की अध्यक्षता में नियुक्त गठित आयोग संविधान की किस धारा के अंतर्गत नियुक्त किया गया ? इस आयोग की सिफारिशों को क्यों नहीं स्वीकृत किया गया ?
Ans ⇒ काका कालेलकर आयोग की नियुक्ति (Appointment of Kaka Kalelkar Cimmission) – भारतीय संविधान की धारा 340 (1) के अंतर्गत भारतीय राष्ट्रपति ने काका कालेलकर की अध्यक्षता में 1953 में आयोग गठित किया। इस आयोग का गठन सामाजिक तथा शैक्षणिक दृष्टि से पिछड़े वर्गों की स्थिति को सुधारने हेतु और उन कठिनाइयों को दूर करने के लिए आवश्यक दिशा में कदम उठाने हेतु, सुझाव देने हेतु की गई थी।
काका कालेलकर की सिफ़ारिशो की अस्वीकृति (Non-acceptance of suggestion of KakaKalelkar Commission) – काका कालेलकर आयोग ने मार्च 1955 में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की। इस आयोजन ने 2399 जातियों को पिछड़ी जातियों की श्रेणी में रखा परंतु इस आयोग की सिफारिश को स्वीकार नहीं किया गया क्योंकि इस आयोग ने उनके विकास के लिए किसी रियायत की सिफारिश नहीं की थी, क्योंकि कालेलकर स्वयं लोक सेवाओं में किसी भी समुदाय के लिए रियायत के विरुद्ध इस आधार पर था कि ‘सेवाएँ नौकरों के लिए नहीं परंतु समाज के लिए है।’ (Services are not for the servants but for the services of the entire society)
Q.192. ज्योतिराव फूले पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
Ans ⇒ ज्योतिराव फूले (1827-1890) – ज्योतिराव गोविंदराव फूले को ज्योतिबा फूले के नाम से जाना जाता था। ये पश्चिमी भारत के एक महान् समाज सुधारक थे। ये निम्न माली जाति से संबंध रखते थे। इनके पूर्वज फूल-मालाओं का व्यापार करते थे। ये बाल्यकाल से ही चिंतनशील थे एवं इनकी शिक्षा स्कॉटिश मिशन स्कूल में हुई थी। जयोतिबा फूले तत्कालीन भारतीय समाज की कुरीतियों को दूर करने हेतु जीवन भर संघर्ष करते रहे एवं नारी को समाज में उच्च स्थान दिलाने हेतु आजीवन प्रयत्नशील रहे। इनकी 28 नवंबर, 1890 को मृत्यु हो गई।
Q.193. महिला सशक्तिकरण की राष्ट्रीय नीति 2001 के मुख्य उद्देश्यों का उल्लेख करें।
Ans ⇒ 2001 में भारत सरकार ने महिला सशक्तिकरण के लिए एक राष्ट्रीय नीति घोषित की। इस नीति के मुख्य उद्देश्य अग्रलिखित हैं -1. सकारात्मक आर्थिक और सामाजिक नीतियों द्वारा ऐसा वातावरण तैयार करना जिसमें महिलाओं का अपनी पूर्व क्षमता को पहचानने का मौका मिले और उनका पूर्ण विकास हो।
2. महिलाओं द्वारा पुरुषों की भाँति राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और नागरिक सभी क्षेत्रों में समान स्तर पर भी मानवीय अधिकारों और मौलिक स्वतंत्रताओं का कानूनी और वास्तविक उपभोग।
3. स्वास्थ्य देखभाल, प्रत्येक स्तर पर उन्नत शिक्षा, जीविका एवं व्यावसायिक मार्गदर्शन रोजगार, समान पारिश्रमिक, व्यावसायिक स्वास्थ्य एवं सुरक्षा, सामाजिक सुरक्षा और सार्वजनिक पदों आदि में महिलाओं को समान सुविधाएँ।
4. न्याय व्यवस्था को मजबूत बनाकर महिलाओं के विरुद्ध सभी प्रकार के भेदभाव का उन्मूलन राष्ट्रीय नी ति के अनुसार, केंद्रीय तथा राज्य मंत्रालयों को केंद्रीय, राज्य स्तरीय महिला एवं शिशु कल्याण विभागों और राष्ट्रीय एवं राज्य महिला आयोगों के साथ सहभागिता के माध्यम से विचार-विमर्श करके
नीति को ठोस कार्यवाही में परिणत करने के लिए समयबद्ध कार्य योजना बनानी होगी।
Q.194. किन्हीं पाँच मानव अधिकारों के नाम लिखिए।
Ans ⇒ मानव अधिकारों के घोषणा-पत्र में 20 मानव अधिकारों की सूची सम्मिलित है जिनमें से कुछ महत्वपुर्ण अधिकार निम्नलिखित हैं –
1. जीवन की सुरक्षा व स्वतंत्रता का अधिकार।
2. दासता व बंधुआ मजदूरी से स्वतंत्रता का अधिकार।
3. स्वतंत्र न्यायपालिका से न्याय प्राप्त करने की स्वतंत्रता का अधिकार।
4. विवाह करने व पारिवारिक जीवन का अधिकार।
5. कहीं भी आने-जाने व घूमने-फिरने की स्वतंत्रता का अधिकार।