7. प्रत्यावर्ती धारा ( Short Answer Type Question )
7. प्रत्यावर्ती धारा
Q. 1. प्रत्यावर्ती धारा क्या है ? इसके तात्कालिक मान को लिखें।
Ans ⇒ प्रत्यावर्ती धारा वह धारा है जिसका मान और दिशा समय के साथ आवर्त रूप में बदलते रहते हैं। यह धारा दिष्टधारा से भिन्न होती है क्योंकि दिष्टधारा की दिशा नहीं बदलती है जबकि प्रत्यावर्ती धारा की दिशा आवर्त रूप से बदलती रहती है।
इसके तात्कालिक मान का समीकरण
I0 = I0 sin ωt से निरूपित किया जाता है।
जहाँ I0 = शिखर मान, I = तात्कालिक मान है।
Q.2. प्रत्यावर्ती धारा के एक पूर्ण चक्कर के लिए Iav = O। इसे साबित करें।
Ans ⇒ प्रत्यावर्ती धारा के पूर्ण चक्कर के लिए औसत मान
Q.3. प्रत्यावर्ती धारा के माध्यमान या औसत मान से क्या समझते हैं ? प्रत्यावर्ती धारा के औसतमान तथा शिखरमान के बीच संबंध स्थापित कीजिए।
Ans ⇒ औसत मान – वह स्थायी धारा जो किसी परिपथ से गुजरने के बाद आधे चक्र में ठीक उतना ही आवेश को प्रवाहित करता है जितना आवेश प्रत्यावर्ती धारा उतने ही समय में तथा उसी परिपथ से होकर प्रवाहित करता है। इसे Ia या Im से सूचित किया जाता है।
प्रत्यावर्ती धारा के माध्यमान और शिखरमान से संबंध :
मान लिया कि प्रत्यावर्ती धारा का क्षणिक मान I = I0 sinωt …(i)
परिपथ में प्रवाहित किया जाता है।
मान लिया कि dt समय में dq आवेश प्रवाहित होता है, तो,
अतः प्रत्यावर्ती धारा का औसतमान शिखरमान का 0.636 गुना होता है।
Q.4. प्रत्यावर्ती धारा के वर्ग-माध्य मूल मान या आभासी मान तथा शिखर मान के बीच संबंध स्थापित करें।
Ans ⇒ मान लिया कि प्रत्यावत्ती धारा का क्षणिक मान I = I0 sinωt …(i)
परिपथ में प्रवाहित किया जाता है।
मान लिया कि dt समय में R प्रतिरोध से होकर dH ऊष्मा उत्पन्न होता है। अतः
अतः प्रत्यावत्ती धारा का आभासी मान शिखर मान का 0.707 गुना होता है।
Q.5. चोक कुण्डली क्या है ? क्यों इसे प्रत्यावर्ती धारा परिपथ में धारा को सीमित करने के लिए प्राथमिकता दी जाती है ? इसकी क्या उपयोगिताएँ हैं ?
Ans ⇒ चोक कण्डली – उच्च प्रेरकत्व तथा नगण्य प्रतिरोध के कुण्डली को चोक कुण्डली कहा जाता है, जिसका व्यवहार बिना किसी विद्युत ऊर्जा के नष्ट किये ही किसी धारा की शक्ति को कम करने के लिए किया जाता है क्योंकि इससे शक्ति का उपयोग शून्य के बराबर होता है ।
शून्य शक्ति के उपयोग का कारण है कि चोक कुण्डली के लिए धारा तथा वोल्टता के बीच कला कोण π/2(90°) होता है।
चोक कुण्डली के शक्ति गुणांक, है। कम आवृत्ति के प्रत्यावर्ती धारा परिपथ में चोक कुण्डली का व्यवहार किया जाता है, जिसका क्रोड नरम लोहे का बना होता है। कुण्डली प्रेरकत्व, L का मान अधिक है तथा आवृत्ति के बहुत कम होने के कारण प्रतिघात (Lω) का मान बहुत अधिक है। अधिक आवृत्ति के प्रत्यावर्ती धारा परिपथ में चोक कुण्डली का व्यवहार केवल वायु क्रोड में होता है, क्योंकि आवृत्ति के अधिक होने से प्रेरकत्व L का मान कम है तथा प्रतिघात (Lω) अधिक है। यह मरकरी ट्यूब, लैम्प तथा रेडियो परिपथ में व्यवहार किया जाता है।
Q.6. वाटहीन धारा से आप क्या समझते हैं ?
Ans ⇒ वाटहीन धारा – हम जानते हैं कि प्रत्यावर्ती धारा परिपथ के औसत शक्ति Pav = EvIv cosφ जहाँ φ विद्युत वाहक बल तथा धारा के वर्ग–माध्य-मूल मान के बीच कला कोण है।
माना कि EvIv से φ कला कोण द्वारा चित्रानुसार आगे है। यह माना जा सकता है कि Ivcosφ तथा Ivcosφ दो अवयवों के सदिश योग Iv है। इस प्रत्येक अवयव के कारण व्यय शक्ति की निम्न प्रकार गणना की जा सकती है।
(i) Ev तथा Ivcosφ के बीच के कला कोण का शून्य के बराबर होने पर Ivcosφ अवयव के कारण परिपथ में व्यय औसत शक्ति,
P’av = Ev(Ivcosφ) cos0° = EvIvcosφ
(ii) Ev तथा Iv cosφ के बीच कला कोण का π/2 के बराबर होने पर, Ivcosφ अवयव के कारण परिपथ में व्यय औसत शक्ति, P’av = Ev (Ivcosφ) cosπ/2 = 0 (शून्य)।
इस प्रकार प्रत्यावर्ती परिपथ के Ivcosφ अवयव के कारण ही प्रत्यावर्ती धारा परिपथ में औसत शक्ति व्यय होती है और प्रत्यावर्ती धारा परिपथ में Ivcosφ अवयव का कोई भागीदारी शक्ति के व्यय में नहीं होती है। Ivcosφ अवयव के शक्ति के व्यय में भागीदारी नहीं होने के कारण उसे प्रत्यावत्ती धारा का वाटहीन अवयव या प्रत्यावर्ती धारा का वाटहीन धारा कहते हैं,
Q.7. ट्रांसफॉर्मर का क्रोड परतदार क्यों होता है ?
Ans ⇒ ट्रांसफॉर्मर का क्रोड परतदार होता है, क्योंकि क्रोड में लौह क्षय होता है। भँवर धाराओं के प्रेरित होने से ट्रांसफॉर्मर के क्रोड में विद्युत शक्ति की हानि होती है, जिसे लौह क्षय कहा जाता है। क्रोड को परतदार होने स लौह क्षय का मान कूम जाता है, इसलिए क्रोड परतदार होता है।
Q.8. प्रेरणिक प्रतिघाते क्या होता है ?
Ans ⇒ किसी प्रेरक द्वारा परिपथ में प्रत्यावर्ती धारा प्रवाह में प्रभावी पतिरोध को प्रेरणिक या प्रेरक प्रतिघात (Inductive reactance) कहते है।
Q.9. ट्रांसफार्मर क्या है ? परिणमन अनुपात से क्या तात्पर्य है ?
Ans ⇒ ट्रांसफार्मर – ट्रांसफार्मर का कार्य, उच्च धारा पर निम्न प्रत्यावती वोल्टता को निम्न धारा पर उच्च वोल्टता में तथा निम्न धारा पर उच्च प्रत्यावर्ती वोल्टता को अधिक धारा पर निम्न वोल्टता में परिवर्तित करना है। Input voltage और Output voltage के अनुपात को परिणमन अनुपात कहते हैं।
Q.10. किन कारणों से ट्रांसफार्मर की दक्षता घटती है ?
Ans ⇒ ट्रांसफार्मर में निम्नलिखित पाँच कारणों से ऊर्जा का क्षय होता है तथा उन्हें निम्नलिखित प्रकार से दूर किया जाता है –
(i) फलक्स क्षय : प्राथमिक तथा द्वितीयक कुण्डलियों का युग्मन ठीक नहीं होता है और प्राथमिक कुण्डली में उत्पन्न चुम्बकीय फ्लक्स सभी द्वितीयक कुण्डली से संबद्ध नहीं होते हैं तथा कुछ क्रोड से न जाकर वायु होकर जाती है।
(ii) ताम्र क्षय : प्राथमिक तथा द्वितीयक कुण्डलियों में ताँबे के तार के लपेटों प्रतिरोध के कारण जूल-ऊष्मन प्रभाव से कुछ विद्युतीय ऊर्जा का ताप ऊर्जा में परिवर्तन होता है जिससे कि शक्ति क्षय होती है।
(iii) लौह – क्षय : ट्रांसफार्मर के लोहे के क्रोड में भँवर धाराओं के प्रेरण से भी ऊष्मा के रूप में शक्ति क्षय होती है, जिसे लौह-क्षय कहते हैं। लोहे के क्रोड को पूरतदार बना देने पर लौह-क्षय घटता है।
(iv) शैथिल्य क्षय : कुण्डलियों से प्रत्यावर्ती धाराओं के प्रवाहित होने से लोहे के क्रोड बार-बार चुम्बकित तथा अचुम्बकित होते हैं। इसलिए प्रत्येक चुम्बकन चक्र में कुछ ऊर्जा शैथिल्य के कारण क्षय होती है, जिसे शैथिल्य क्षय कहते हैं। इसे कम करने के लिए सिलिकन लोहे का क्रोड उपयुक्त होता है।
Q.11. भंवर धाराएं क्या हैं ?
Ans ⇒ यदि किसी भी धातु के टुकड़े को चुम्बकीय क्षेत्र में घुमाते हैं या किसी असमान चुम्बकीय क्षेत्र में उसे चलाते हैं या किसी अन्य प्रकार से उसमें गुजरने वाली बल रेखाओं की संख्या में परिवर्तन करते हैं तो उस धात चालक के सम्पूर्ण आयतन में प्रेरित धाराएँ उत्पन्न हो जाती हैं। ये धाराएँ धात के टुकड़े की गति (अथवा चुम्बकीय फ्लक्स परिवर्तन) का विरोध करती है। ये धाराएँ एक बन्द घेरे के रूप में होती हैं जिनका तल चुम्बकीय बल रेखाओं की दिशा के लम्बवत होता है। इन्हें भँवर धाराएँ कहते हैं।
Q.12. स्टाटेर क्या हैं ? इसका उपयोग समझावें।
Ans ⇒ यह एक उच्च प्रतिरोध है जिसे दिष्ट धारा मोटर की कुण्डली के साथ श्रेणीक्रम में लगाया जाता है, जिससे मोटर स्टार्ट करते समय प्रारम्भ में जब मोटर में विरोधी विद्युत वाहक बल शून्य होता है, जब मोटर की कण्डली से होकर अति उच्च धारा नहीं प्रवाहित हो सके, अन्यथा कुण्डली के जलने का भय रहता है। यह प्रतिरोध मोटर के स्टार्ट होते समय कुण्डली के साथ श्रेणीक्रम में जुड़ा रहता है तथा जब मोटर अपनी अधिकतम चाल से चलने लगती है (अर्थात् जब कुण्डली के घूमने का कोणीय वेग अधिकतम हो जाता है) तब स्वतः ही इसका सम्बन्ध कुण्डली से हट जाता है। इसके लिए ऐसा प्रबन्ध किया जाता है क जब मोटर की कुण्डली अधिकतम चाल से घुमने लगती है तो प्रतिरोध के साथ जुड़ी नर्म लोहे की पत्ती एक विद्युत चुम्बक से आकर्षित हो जाती है तथा कुण्डली के साथ प्रतिरोध का संबंध टूट जाता है।
Q.13. डायनेमों तथा विद्युत मोटर में क्या अन्तर है ?
Ans ⇒ डायनेमो (जनित्र) तथा विद्युत मोटर में निम्नलिखित अन्तर हैं –
S.L | डायनेमो | विद्युत मोटर |
1. | डायनेमो यांत्रिक ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में बदलता है। | मोटर विद्युत ऊर्जा को यांत्रिक ऊर्जा से बदलती है। |
2. | डायनेमो विद्युत चुम्बकीय प्रेरण के सिद्धान्त पर कार्य करता है। | मोटर धारा के चुम्बकीय प्रभाव पर कार्य करती है। यह चुम्बकीय क्षेत्र में धारावाही चालक पर लगने वाले बल के सिद्धान्त पर कार्य करती है। |
3. | इसमें चुम्बकीय क्षेत्र में कुण्डली को घुमाकर प्रेरित विद्युत वाहक बल उत्पन्न किया जाता है। | इसमें चुम्बकीय क्षेत्र में स्थित कुण्डली में धारा प्रवाहित करते हैं जिससे कुण्डली घूमने लगती है। |
Q. 14. प्रत्यावर्ती धारा तथा दिष्ट (सीधी) धारा में अन्तर स्पष्ट करें।
Ans ⇒ प्रत्यावर्ती धारा तथा दिष्ट (सीधी) धारा में निम्नलिखित अन्तर है –
S.L | प्रत्यावर्ती धारा | दिष्ट (सीधी) धारा |
1. | धारा परिपथ में दोनों दिशाओं में प्रवाहित होती है। | दिष्ट (सीधी) धारा परिपथ में सदा ही दिशा में प्रवाहित होती है। |
2. | इसके विद्युत वाहक बल को ट्रांसफॉर्मर द्वारा घटाया जा सकता है। | इसके विद्युत वाहक बल को किसी अन्य प्रतिरोध की मदद से घटाया जा सकता है। |
3. | इससे विद्युत अपघटन की क्रिया नहीं हो सकती है। | इससे विद्युत अपघटन की क्रिया होती है। |
4. | इससे कलई नहीं की जा सकती है। | कलई करने में इस धारा का उपयोग होता है। |
5. | उच्च वोल्टता पर दूर स्थानों में इसे भेजा जा सकता है। | इसे दूर स्थानों तक नहीं भेजा जा सकता है। |
6. | धारा के स्पर्श से झटका अधिक घातक होता है। | धारा के स्पर्श से झटका का खतरा अधिक नहीं रहता है। |
Q.15. परिपथ में प्रतिरोध, प्रतिबाधा और प्रतिघात में अंतर कीजिए।
Ans ⇒
S.L | प्रतिरोध | प्रतिबाधा | प्रतिघात |
1. | धारा प्रवाह में लगाये विरोध को प्रतिरोध से परिभाषित करते हैं। | एक परिपथ द्वारा उसमें लगे प्रतिरोध, प्रेरक और धारित्र द्वारा उत्पन्न बाधा को प्रतिबाधा कहते हैं। | धारा प्रवाह में धारित्र या प्रेरक द्वारा उत्पन्न विरोध को प्रतिघात कहते हैं। |
2. | यह धारा के स्रोत की आवृत्ति से स्वतंत्र है | यह धारा स्रोत की आवृत्ति पर निर्भर है। | यह धारा स्रोत की आवृत्ति पर निर्भर है। |
3. | इसे ओम में मापते हैं। | इसे ओम में मापते हैं। | इसे ओम में मापते हैं। |
Q.16. वि० वा० बल तथा विभवांतर में बीच क्या अंतर है ?
Ans ⇒ वि० वा० बल तथा विभवांतर में निम्नलिखित अंतर है –
S.L | वि० वा० बल | विभवांतर |
1. | यह सेल का परिपथ खुला रहने पर विभव के अंतर को बतलाता है। | यह सेल का परिपथ बंद रहने पर विभव के अंतर को बतलाता है। |
2. | यह प्रतिरोध पर निर्भर नहीं करता है। | यह प्रतिरोध के समानुपाती होता है। |
3. | यह परिपथ के बंद नहीं रहने पर exist करता है। | यह परिपथ के बन्द रखने पर exist करता है। |
4. | यह विभवांतर से बड़ा होता है। | यह वि० वा० बल से छोटा होता है। |
5. | इसे वोल्ट में मापा जाता है। | इसे भी वोल्ट (volt) में मापा जाता है। |