3. विद्युत धारा ( Short Answer Type Question )
3. विद्युत धारा
1. किसी धातु में मुक्त इलेक्ट्रॉन तथा मुक्त इलेक्ट्रॉनों के अनुगमन वेग से आप क्या समझते हैं ?
Ans ⇒ धातुओं में मुक्त इलेक्ट्रॉन – किसी पदार्थ के परमाणुओं में जो इलेक्ट्रॉन नाभिक के समीप की कक्षाओं में होता है वह नाभिक के धनावेश के द्वारा प्रबल आकर्षण बल से बँधे रहते हैं। किन्तु नाभिक से दूरी वाली कक्षाओं के इलेक्ट्रॉनों पर यह बल बहत होता है। इसलिए इनमें से अनेक इलेक्टॉन अपने परमाणुओं से अलग होकर पूरे पदार्थ से स्वतन्त्रतापूर्वक घूमते रहते हैं, जिन्हें मुक्त इलेक्ट्रॉन कहते हैं।
यही इलेक्ट्रॉन आवेश को पदार्थ के एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाता है। अतः किसी ठोस पदार्थ की विद्युत् चालकता उसमें मुक्त इलेक्ट्रॉनों की संख्या पर निर्भर करती है। जिन धातुओं में मुक्त इलेक्ट्रॉनों की संख्या अधिक होती है वह विद्युत का अच्छा चालक होती है। चाँदी, ताँबा, सोना, ऐल्युमिनियम इत्यादि विद्युत् का अच्छा चालक है। जिन धातुओं में मुक्त इलेक्ट्रॉनों की संख्या कम या शून्य होती है उसमें विद्युत् का प्रवाह नहीं होता है तथा वे विद्युत् अचालक कहलाते हैं।
अनुगमन वेग – जब किसी चालक के सिरों पर विभवान्तर आरोपित किया जाता है तो वे इलेक्ट्रॉन को त्वरित गति न देकर तार की लम्बाई की दिशा में एक अल्प नियत वेग दे पाता है, इलेक्ट्रॉन के उस निश्चित वेग को अनुगमन वेग कहते हैं। इसे vd द्वारा प्रदर्शित किया जाता है।।
2. विद्युतधारा तथा अनुगमन वेग में क्या सम्बन्ध है ? वर्णन करें।
Ans ⇒ विद्युतधारा तथा अनुगमन वेग में सम्बन्ध – किसी चालक में प्रवाहित धारा की प्रबलता चालक के किसी अनुप्रस्थ परिच्छेद में प्रति संकेण्ड गुजरने वाली विद्युत् आवेशों के परिमाण से मापी जाती है। माना कि किसी धातु के तार के सिरों पर कोई विभवान्तर आरोपित करने से उसमें F प्रबलता का विद्युतीय क्षेत्र स्थापित हो जाता है तो धातु के मुक्त इलेक्ट्रॉन इससे विपरीत दिशा में vd अनुगमन वेग से चलने लगते हैं। तार के किसी परिच्छेद से t सेकेण्ड गुजरने वाले मुक्त इलेक्ट्रॉनों द्वारा प्रवाहित आवेश q होने पर उस तार में विद्युत्धारा की प्रबलता, i = q/t ।
माना कि तार के अनुप्रस्थ परिच्छेद का क्षेत्रफल A, उसके प्रति इकाई आयतन में मुक्त इलेक्ट्रॉनों की संख्या n तथा इलेक्ट्रॉन का अनुगमन वेग vd है, तो इकाई सेकेण्ड में तार के अनुप्रस्थ परिच्छेद में से गुजरने वाली इलेक्ट्रॉनों की संख्या, n = Avd। इस प्रकार t से. में तार के अनुप्रस्थ परिच्छेद से गुजरने वाले इलेक्ट्रॉनों की संख्या = (nAvd)t। 1 इलेक्ट्रॉन पर आवेश e है तो t से. में तार के अनुप्रस्थ परिच्छेद से गुजरने वाले आवेश का परिमाण q = (nAvd)t x e
3. धारा घनत्व से आप क्या समझते हैं ? धारा घनत्व तथा अनुगमन वेग में सम्बन्ध स्थापित करें।
Ans ⇒ धारा घनत्व – किसी चालक तार के प्रति इकाई अनुप्रस्थ परिच्छेद के क्षेत्रफल में से गुजरने वाली धारा चालक का धारा घनत्व कहलाता है। इसे J द्वारा प्रदर्शित किया जाता है। अतः इसका मात्रक ऐम्पियर/मी.² तथा विमा सूत्र [IL–²] है।
धारा घनत्व तथा अनुगमन वेग में सम्बन्ध – हम जानते हैं कि i = neAvd।
4. प्रतिरोध पर तापक्रम का क्या प्रभाव होता है ? प्रतिरोध तापक्रम गुणांक क्या है ?
Ans ⇒ प्रतिरोध पर तापक्रम का प्रभाव – तापक्रम बढ़ने से धातु का प्रतिरोध बढ़ता है, क्योंकि तापक्रम के बढ़ने से धातु के धनायनों का कम्पन आयाम बढ़ जाता है और वह मुक्त इलेक्ट्रॉनों के मार्ग को अधिक अवरुद्ध कर देता है।
माना कि °C पर ताप का प्रतिरोध R0 तथा t°C पर तार का प्रतिरोध R1 है तो R1 = R0(I + αt) जहाँ α एक नियतांक है, जिसे धातु की तार का प्रतिरोध तापक्रम गुणांक कहते हैं।
तार के प्रतिरोध में आंशिक वृद्धि ।
अतः प्रति एकांक तापक्रम वृद्धि के कारण चालक के प्रतिरोध में जो आंशिक वृद्धि होती है, उसे चालक का तापक्रम गुणांक कहते हैं।
5. किसी पदार्थ के विशिष्ट प्रतिरोध से आप क्या समझते हैं ? इसका S.I. मात्रक लिखें।
Ans ⇒ विशिष्ट प्रतिरोध – किसी तार के पदार्थ का विशिष्ट प्रतिरोध उसके एकांक परिच्छेद क्षेत्रफल वाले एकांक लम्बाई के तार का प्रतिरोध है।
माना कि किसी तार के पदार्थ का प्रतिरोध R, प्रतिच्छेद का क्षेत्रफल A, लम्बाई 1 है, तो जहाँ ρ उस पदार्थ का विशिष्ट प्रतिरोध है।
जब 1 = I और A = 1 जो ρ = R।
किसी तापक्रम और समान लम्बाई एवं क्षेत्रफल के अनुप्रस्थ परिच्छेद के तारों का प्रतिरोध भिन्न-भिन्न होता है। अतः विशिष्ट प्रतिरोध चालक पदार्थ का लाक्षणिक गुण है। विशिष्ट प्रतिरोध का S.I. मात्रक ओम मीटर (π – m) है।
इसका विमीय सूत्र [ML3T-31-2] है।
6. किसी पदार्थ की विशिष्ट विद्युतीय चालकता क्या है ?
Ans ⇒ विशिष्ट चालकता – किसी पदार्थ के विशिष्ट प्रतिरोध के व्युत्क्रम को उस पदार्थ की विशिष्ट चालकता कहते हैं। इसे प्रायः द्वारा प्रदर्शित किया जाता है।
S.I. में इसका मात्रक ओम-1 मीटर-1 = महो/मीटर = साइमेन/मीटर है।
7. पदार्थ की प्रतिरोधकता पर ताप का क्या प्रभाव है ? ताप बढ़ने से पदार्थ की विद्युत् चालकता क्यों घटती है ?
Ans ⇒ प्रतिरोधकता और श्रांतिकाल आपस में निम्न रूप से सम्बन्धित है –
.
जिसके अनुसार प्रतिरोधकता श्रान्तिकाल के व्युत्क्रमानुपाती होती है। l लम्बाई तथा A अनुप्रस्थ काट के क्षेत्रफल के तार का प्रतिरोध
.
किसी दिए गए तार के लिए l, A तथा n नियतांक हैं, अतः प्रतिरोध
.
श्रान्तिकाल इलेक्ट्रॉनों के लैटिस आयनों धातु के धनात्मक आयन के साथ दो लगातार संघट्टों के बीच का औसत समय होता है। यदि इलेक्ट्रॉन का माध्य मुक्त पथ (दो लगातार संघट्टों के मध्य औसत दूरी) λ है तथा वर्ग
ताप बढ़ने के साथ इलेक्ट्रॉन की वर्ग माध्य मूल चाल बढ़ जाती है (vrms ∝ T) तथा माध्यम मुक्त पथ घट जाता है (लैटिस के दोलन का आयाम बढ़ जाता है) इसलिए लैटिस से इलेक्ट्रॉनों के संघट्ट आदि सहजता से होने लगते हैं। इसके परिणामस्वरूप ताप बढ़ने से तार की प्रतिरोधकता और इसलिए प्रतिरोध बढ़ जाता है। दूसरे शब्दों में, ताप बढ़ने से चालक की चालकता घट जाती है।
8. इलेक्ट्रॉनों का अनुगमन वेग से क्या तात्पर्य है ? व्याख्या कीजिए।
Ans ⇒ ठोस चालक में आयनों का एक नियमित विन्यास ही है और मुक्त इलेक्ट्रॉन किसी एक परमाणु से बंधे नहीं होते हैं। मुक्त इलेक्ट्रॉन पदार्थ के सम्पूर्ण आयतन में इधर-इधर घूम सकते हैं।
आयन जो इलेक्ट्रॉनों से अत्यधिक भारी होते हैं, निश्चित स्थिति के परितः दोलन करते हैं, आयनों की माध्य से एक नियमित आवर्ती प्रारूप (Regular Periodic Pattern) बनता है, जिसे लैटिस कहते हैं। मुक्त इलेक्ट्रॉन लैटिस स्थितियों पर आयनों से टकराते हैं या पारस्परिक बलों से प्रभावित होते हैं। प्रत्येक ऐसी घटना पर इलेक्ट्रॉन की चाल एवं दिशा अव्यवस्थित रूप से बढ़ जाती है। इसके परिणामस्वरूप इलेक्ट्रॉन टेढ़े-मेढ़े पथ (Zig-Zag Path) पर गति करता है।
इलेक्ट्रॉन का अनुगमन 1 हो, तो अनुगमन वेग Vd = 1/t
अनुगमन वेग वह औसत घटक है, जिससे इलेक्ट्रॉन विद्युत् क्षेत्र के विपरीत दिशा में अनुगमन करते हैं।
मान लीजिए τ लगातार संघट्टों के बीच इलेक्ट्रॉन का माध्य मुक्त समय (mean free time) है तथा विद्युत् क्षेत्र E के कारण उसमें उत्पन्न त्वरण a है।
इससे स्पष्ट होता है कि इलेक्ट्रॉन का अनुगमन वेग विद्युत क्षेत्र के अनुक्रमानुपाती होता है।
9. सेल के आन्तरिक प्रतिरोध का व्यंजक प्राप्त करें।
10. तापक्रम के साथ कुचालक और अर्द्धचालक की प्रतिरोधकता में बदलाव के लिए संबंध स्थापित करें।
11. प्रतिरोधों के समूहीकरण में समतुल्य प्रतिरोध के लिए व्यंजक प्राप्त करें।
Ans ⇒ प्रतिरोध का समूहीकरण दो तरह से किया जाता है –
(i) श्रेणीक्रम में (ii) समानान्तर क्रम में।
(i) श्रेणीक्रम में – दो प्रतिरोधक श्रेणीक्रम में कहा जाता है, यदि उनमें से केवल एक अंत्य बिन्दु संयोजित होता है। यदि एक तीसरा प्रतिरोधक दोनों के श्रेणी संयोजन से जोड़ा जाता है तो तीनों को श्रेणीक्रम में संयोजित कहते हैं।
मान लिया कि R1, R2 तथा R3 तीन प्रतिरोध श्रेणीक्रम में जुड़े हैं तथा 1 धारा इससे प्रवाहित हो रही है।
इस तरह के संयोजन में प्रत्येक प्रतिरोध से धारा समान रूप से प्रवाहित होती है लेकिन विभवान्तर अलग-अलग होता है।
यदि V1, V2 तथा V3 क्रमशः R1, R2, R3, के बीच विभवान्तर हो तो
V1 = IR1, V2 = IR2, V3 = IR3
यदि समतुल्य विभव V हो तो
V = V1 + V2 + V3
IR = IR1 + IR2 + IR3
R = R1 + R2 + R3
यदि n बराबर प्रतिरोध श्रेणीक्रम में जुड़े हों, तो समतुल्य प्रतिरोध
Rs = nR
(ii) समानान्तर क्रम में – दो या दो से अधिक पार्श्व में संयोजित कहे जाते हैं यदि सभी प्रतिरोधकों के एक सिरे आपस में जुड़े हों और उसी दूसरे सिरे भी आपस में संबंधित हों।
मान लिया कि R1, R2 तथा R3 तीन प्रतिरोध श्रेणीक्रम में जुड़े हैं। इस तरह के संयोजन में विभवान्तर समान रहता है किन्तु धारा अलग-अलग होती हैं। मानलिया कि धारा I1, I2 तथा I3 है और विभवान्तर V है।
12. विद्युतीय कार्य, ऊर्जा तथा शक्ति से क्या समझते हैं ?
Ans ⇒ विद्युतीय कार्य – किसी चालक के एक सिरे से दूसरे सिरे तक Q आवेश को ले जाने में किया गया कार्य W = VQ होता है। जहाँ V = विभव कार्य करने की क्षमता को ऊर्जा कहते हैं। इसका मात्रक जूल होता है। q जूल = 1 वोल्ट × कूलम्ब
विद्युतीय शक्ति – कार्य करने की दर को शक्ति कहते हैं। यदि किसी परिपथ में एक जूल प्रति सेकेण्ड कार्य होता है तो परिपथ की शक्ति एक वाट होती है।
शक्ति के बड़े मात्रक – 1 किलोवाट = 103 वाट
1 मेगावाट = 106 वाट
1 अश्वशक्ति = 746 वाट ।
13. एक विभवमापी विभवांतर और धारा दोनों माप सकता है, कैसे ? समझावें।
Ans ⇒ विभवमापी एक ऐसा यंत्र है जो किसी सेल का वि० वा० बल या धारावाही चालक के दो छोरों के बीच का विभवांतर, बिना उससे धारा खींचे, मापता है। यह इस सिद्धान्त पर काम करता है कि किसी वि० वा० बल या विभवांतर को किसी दूसरे वि० वा० बल या विभवांतर से संतुलित किया जा सकता है। विभवमापी में एक वाहक सेल का वि० वा० बल एक लंबे समरूप तार पर वितरित रहता है। इसके दो बिंदुओं के बीच के विभवांतर को मापनेवाले वि० वा० बल या विभवांतर के आर-पार लगाया जाता है। जॉकी को खिसकाया जाता है ताकि दोनों एक-दूसरे को संतुलित करे। उस समय गैलवेनोमीटर में धारा का मान शून्य होता है। यदि 1 – संतुलित लंबाई, r = तार की एकांक लंबाई का प्रतिरोध, i = विभवमापी तार में धारा, तो मापे जानेवाले वि० वा० बल (विभवांतर) e = lri फिर जिस धारा को मापना है उसके परिपथ में एक मानक प्रतिरोधक का मान कम होना चाहिए ताकि परिपथ में धारा का मान परिवर्तित माना जाए। प्रतिरोध s के आर-पार विभवांतर को मानक कैडमियम सेल के वि० वा० बल से तुलना की जाती है। यदि s के आर-पार विभवांतर V हो और 11 संतुलित लंबाई हो तो V = l1ri ।
यदि कैडमियम सेल के वि० वा० बल के लिए संतुलित लंबाई I2 हो तो 1.018 = l2ri
14. किर्कहॉफ के नियमों को लिखें तथा समझावें।
Ans ⇒ किर्कहॉफ के निम्नलिखित दो नियम हैं-
(a) संधि नियम (प्रथम नियम) – किसी खुले परिपथ में या किसी विद्युतीय परिपथ के किसी भी संधि पर मिलने वाली समस्त धाराओं का बीजगणितीय योग शून्य होता है। इसे बिन्दु नियम भी कहा जाता है।
माना कि I1 तथा I2 धाराएँ O बिंदु पर AO तथा BO दिशा में और I3, I4 तथा I5 धाराएँ O बिंदु से OC, OD तथा OE दिशाओं में बाहर निकल रही हैं।
O संधि पर पहुँचने वाली धारा को धनात्मक तथा O संधि से बाहर निकलने वाली धाराओं को ऋणात्मक, तो प्रथम नियम को O संधि पर चित्रानुसार लागू करने पर हम पाते हैं कि
I1 + I2 + (-I3) + (-I4) + (-I5) = O
या, I1 + I2 – I3 – I4 – I5 = O
(b) लूप नियम (द्वितीय नियम) – किसी बंद परिपथ में लूप के विभिन्न भागों की धाराओं तथा प्रतिरोधों के गुणनफल का बीजगणितीय योग उस लूप के विद्युत लूप के विद्युत वाहक बल के बराबर होता है।
माना कि ABCA एक बंद परिपथ या लूप है। इसके AB, BC तथा AC भुजाओं में क्रमशः धाराओं का मान I1, I2, तथा I3, है, जिसका प्रतिरोध R1, R2, और R3 है। BC भुजा में E विद्युत वाहक बल से एक बैटरी जुड़ा है । द्वितीय नियम को लागू करने पर हम पाते हैं कि I1R1 + I2R2 – I3R3 = E होता है।
15. समझाएँ कि किसी सेल को वि. वा. बल वोल्टमीटर क्यों नहीं माप सकता है ?
Ans ⇒ किसी सेल से जुड़े वोल्टमीटर का पाठ्यांक उस सेल का विद्युत् वाहक बल नहीं देता है, क्योंकि उच्च प्रतिरोध वोल्टमीटर भी कुछ-न-कुछ धारा खींचता है। अतः वोल्टमीटर किसी सेल का वि. वा. बल नहीं माप सकता है। ज्ञात वि. वा. बल के मानक सेल के साथ तुलना कर किसी सेल का वि. वा. बल विभवमापी द्वारा निर्धारित किया जा सकता है।
16. एक तार धारा बहती है। क्या यह आवेशित हो जाता है ? अपने उत्तर का कारण दें।
Ans ⇒ तार आवेशित नहीं होती है। स्वतंत्र इलेक्ट्रॉन को निश्चित दिशा में बहने के कारण तार में धारा उत्पन्न होती है। किन्तु तार में प्रोटॉनों की संख्या किसी क्षण इलेक्ट्रॉनों की संख्या के बराबर होता है। इलेक्ट्रॉनों पर आवेश प्रोटॉन पर के आवेश के बराबर एवं विपरीत प्रकृति के होने से तार में परिणामी आवेश शून्य होता है।
17. अतिचालकता क्या है ? इसके दो उपयोग लिखें।
Ans ⇒ क्रान्तिक ताप पर चालक का प्रतिरोध समाप्त होना अतिचालकता की घटना है। विद्युत शक्ति को अतिचालक के तार से बिना ऊर्जा क्षय के अधिक दूरी तक संचारित किया जाता है। अतिचालक से बहुत तेजी से चलने वाला कम्प्यूटर बनाया जा सकता है।
18. दो विद्युत क्षेत्र रेखाएँ क्यों एक-दूसरे को काट नहीं सकती है? क्या दो समविभव सतह काट सकती हैं ?
Ans ⇒ दो विद्युत क्षेत्र रेखाएँ कभी भी एक-दूसरे को काट नहीं सकती है क्योंकि यदि काटती तो प्रतिच्छेद बिन्दु पर दो स्पर्श रेखाएँ होंगी जो कि एक बिन्दु पर विद्युत क्षेत्र के दो मान संभव नहीं है। दो समविभव सतह एक-दूसरे को नहीं काट सकती हैं।
19. धारावाही चालक में वैद्युत क्षेत्र की तीव्रता एवं समविभवी तल को परिभाषित करें।
Ans ⇒ वैद्युत क्षेत्र के किसी बिन्दु पर वैद्युत क्षेत्र की तीव्रता के उस बिन्दु पर रखे इकाई पर धनावेश आवेश पर लगने वाला बल है
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समविभवी तल : वैसा तल जिसके सभी बिन्दुओं पर विभव का मान समान हो अर्थात् समविभवती तल के किन्हीं दो बिन्दुओं के बीच विभवांतर शून्य होता है।
20. प्रतिरोधकता का व्यंजक किसी चालक के लिए लिखें तथा व्यंजक के प्रत्येक अवयव को समझाइए।
जहाँ ρ = प्रतिरोधकता (resistivity)
R = चालक का प्रतिरोध (resistance)
A = चालक का अनुप्रस्थ काट का क्षेत्रफल (area)
t = चालक की लम्बाई (length)