Class 12th History ( कक्षा-12 इतिहास लघु उत्तरीय प्रश्न ) PART- 3
Q.51. दिगम्बर एवं श्वेताम्बर कौन थे ?
Ans ⇒ जैन धर्म दो सम्प्रदाय बन गए। एक दिगम्बर और दूसरा श्वेताम्बर। दिगम्बर वस्त्र नहीं धारण करते हैं जबकि श्वेताम्बर उजले वस्त्र धारण करते हैं। दिगम्बर जैन आचरण पालन में कठोर होते है, जबकि श्वेतताम्बर जैन उदार होते है। श्वेताम्बर 11 अंगों का प्रमुख धर्म मानते है और दिगम्बर अपने 24 पुराणों को दिगम्बर सम्प्रदाय यह मानता है कि स्त्री शरीर से कैवल्य ज्ञान संभव नहीं है और कैवल्य ज्ञान प्राप्त होने पर साधकों को भोजन की आवश्यकता नहीं पड़ती। किन्तु श्वेताम्बर सम्प्रदाय ऐसा नहीं मानते। श्वेताम्बर सम्प्रदाय के अनुसार महावीर का निर्वाण के 609 वर्ष बाद (ई० सन् 83) रथविलुर में भवभूति द्वारा बौद्धिक मत दिगम्बर की स्थापना हुई थी ।
Q.52. इलाहाबाद स्तंभ के ऐतिहासिक महत्त्व का मूल्यांकन कीजिए।
Ans ⇒ इलाहाबाद का स्तंभ (Allahabad’s inscription) – इलाहाबाद के स्तंभ लेख से गुप्त काल के विषय में जानकारी प्राप्त होती है। इसमें समुदाय की विजयों और चरित्र अंकित है। हरिषेणं नामक कवि ने संस्कृत में इसे लिखा। उस काल की राजनैतिक, सामाजिक व आर्थिक अवस्था, भाषा व साहित्य की उन्नति एवं उसकी नौ विजयों का वर्णन है।
Q.53. ऐहोल अभिलेख का ऐतिहासिक महत्त्व क्या है ?
Ans.इस अभिलेख में चालुक्य राजा पुलकेशिन द्वितीय के दरबारी कवि रति कीर्ति ने संस्कृत में उसके पराक्रम का विवरण लिखा है जिसके अनुसार गुजरात के लाट; मैसूर के गंगा आदि राजाओं को हराया गया था। दक्षिणा के चेर, चोल और पांड्य शासकों को भी हराया गया था। सन् 620 में उसने हर्ष को नर्मदा नदी के तट पर हराया। जब पुलकेशिन द्वितीय ने पल्लव शासक नरसिंह वर्मन से टक्कर ली, तो फिर उसके पश्चात् 642 ई. में लड़ता हुआ युद्ध क्षेत्र में उसके हाथों मारा गया।
Q.54. दिल्ली के लौह स्तंभ अभिलेख का क्या महत्व है ?
Ans ⇒ दिल्ली में कुतुब मीनार के पास लौह स्तंभ पर किसी चंद्र नामक राजा का अभिलेख खुदा हुआ मिला है। यह अभिलेख चंद्रगुप्त विक्रमादित्य के नाम से अब जोड़ा जाता है। इस अभिलेख, पता चलता है कि चंद्र ने पश्चिमोत्तर दिशा में और बंगाल में निरंतर विजय प्राप्त की और अपने वश की कीर्ति को चार चाँद लगा दिये।
Q.55. जूनागढ़ शिलालेख के महत्त्व का उल्लेख कीजिए।
Ans ⇒ जूनागढ़ का शिलालेख, गुजरात में जूनागढ़ के समीप मिला था। उस समय की प्रचलित ल” नाती की. मी लियत में वह शिलालेख लिखा हुआ था। इस शिलालेख मे अशोक के धाम , के रास्ता और एर्थियन नैतिक नियमों एवं शासन सम्बन्धी नियमों का विवरण मिला है। लोगों की जानकारी के लिए शिलालेख को जनसाधारण की भाषा पालि में खुदवाया था।
Q.56. पेरीप्लस और एर्थियन पदों के अर्थ की व्याख्या कीजिए।
Ans ⇒ पेरिप्लस एक यूनानी शब्द है जिसका शाब्दिक अर्थ है-समुद्री रास्ता और भी एक यूनानी नाम है जिसका प्रयोग यूनानी लाल सागर के लिए करते थे।
Q.57. कुषाण कौन थे ?
Ans ⇒ चीन की मूगनू नामक जाति से हारकर यूची जाति दक्षिण की ओर स्थान पर में निकल पड़ी। वह आकर आमू नदी के तट पर बस गई। यूची जाति के पाँच कबीलों में सेवाण . नामक कबीला कैडफिसेज प्रथम के नेतृत्व में शक्तिशाली बन गया। उसने मध्य एशिया से” सिंधु नदी के तट तक अपना साम्राज्य फैला दिया। उसने उस क्षेत्र के पार्थियन शासकों का नामोनि मिटा दिया।
Q.58. सातवाहन कौन थे ?
Ans ⇒ मौर्य के साम्राज्य के बिखराव के बाद सातवाहनों ने दक्कन में एक शक्तिशाली रालय स्थापित किया। इस वंश का सबसे अच्छा शासक दोनों ही सर्वोच्च वंशों का दावा करता है। एक तरफ वह स्वयं को एक ब्राह्मण वर्ण का व्यक्ति मानता है और दूसरी ओर वह स्वयं को क्षत्रिय लोगों को नाश करने वाला बताता है। वह इस बात का भी दावा करता है कि चारों वर्गों के मध्य अतर वर्णीय विवाह नहीं होते थे लेकिन कुछ समय बाद ये साक्ष्यों द्वारा प्रमाणित हो जाता है कि सातवाहनों ने शके राजा रुद्रदमन से वैवाहिक संबंध जोड़ें थे। सातवाहन समाज में संभवतः मातरीगोत्र का अधिक सम्मान था। इस समाज में स्त्रियों को पिता के स्थान पर पति के गोत्र को माना जाता था। सातवाहनों के कई अभिलेख इतिहासकारों को प्राप्त हुए जिन पर उनके पारिवारिक और वैवाहिक रिश्तों का खाका तैयार किया है।
Q.59. शक कौन थे ?
Ans ⇒ शक मध्य एशिया के मूल निवासी थे जो उपमहाद्वीप में उत्तर पश्चिमी हिस्सों से सर्वप्रथम आये और धीरे-धीरे यहीं स्थायी रूप से बस गये। ये लोग प्रारंभ में ब्राह्मणों द्वारा म्लेच्छ (असभ्य – अथवा विदेशी से आने वाले आक्रमणकारी) समझ गये। धीरे-धीरे इन्होंने भारत में उत्पन्न हुए धर्मों जैसे बौद्ध धर्म या वैष्णव मत को अपना लिया। स्थानीय लोगों के साथ वैवाहिक संबंध स्थापित किये और उत्तर पश्चिम के साथ-साथ पश्चिमी भारत के कुछ क्षेत्रों में शासन किया।
Q.60. हर्ष चरित पर दो वाक्यं लिखिए।
Ans ⇒ हर्ष चरित संस्कृति में लिखी गई कन्नौज के शासक हर्षवर्द्धन की जीवनी है, इसके लेखकं बाणभट्ट (लगभग सातवीं शताब्दी ई०) हर्षवर्द्धन के राज कवि थे।
Q.61. बौद्ध संगीतियाँ क्यों बुलाई गई ? चतुर्थ बौद्ध संगति का क्या महत्त्व है ?
Ans ⇒ गौतम बुद्ध के महापरिनिर्वाण के पश्चात् समय-समय पर बौद्ध धर्म की व्याख्या हेतु अनेक बौद्ध सभाओं का आयोजन किया गया जिन्हें संगीति के नाम से जाना जाता है।
चतुर्थ बौद्ध संगीति : समय-प्रथम शताब्दी
स्थान-कुंडलवन (कश्मीर)
शासक-कनिष्क (कुषाण वंश)
आध्यक्षा-वसुमित्र, संगीति के उपाध्यक्ष अश्वघोष थे। महत्त्व-इस संगीति का आयोजन इस आशय से किया गया था कि बौद्धों के मतभेदों को दूर किया जा सके। इस संगीति में महासांधिको को बोलबाला रहा। त्रिपिटक पर प्रमाणिक भास्य ‘विभाषा शास्त्र’ की रचना इसी संगीति में हुई। इस संगीत के पश्चात् ही बौद्ध अनुयायी हीनयान तथा महायान दो समुदायों में विभाजित हो गये।
Q.62. महावीर के उपदेशों का वर्णन करें।
Ans ⇒ महावीर के उपदेश निम्नलिखित हैं –
(i) सत्य-सत्य बोलना, झूठ न बोलना।
(ii) अहिंसा-हिंसा न करना।
(iii) अस्तेय-चोरी न करना।
(iv) अपरिग्रह-सम्पत्ति का संग्रह न करना।
(v) ब्रह्मचर्य-इन्द्रियों को वश में करना।
महावीर ईश्वर में विश्वास नहीं करते थे परंतु आत्मा, कर्मफल तथा पुनर्जन्म को मानते था
Q63. जैनधर्म के प्रमुख सिद्धान्त कौन-से हैं ?
Ans ⇒ जैन-धर्म के चौबीसवें तीर्थंकर वर्धमान महावीर (540 ई० पू० 468 ई०पू०) के समय धर्म के सिद्धान्तों को पूर्णता प्राप्त हुई। यह धर्म मानता है कि संसार की सभी वस्तुओं में जीव अहिंसा का सिद्धान्त इस धर्म का मूल आधार है। मनुष्य अपने कर्मों के कारण जन्म, मृत्यु एवं पर्जन्म के चक्र में बंधा है। संन्यास एवं तपस्या के द्वारा मनुष्य कर्म के चक्र से मुक्ति प्राप्त करता है। जैनियों का विश्वास है कि शरीर को कष्ट पहुँचाकर ही निर्वाण की प्राप्ति हो सकती है। इस धर्म के पाँच सिद्धान्त हैं-अहिंसा, सत्य, अस्तेय, (चोरी नहीं करना), असंग्रह (सम्पत्ति जमा नहीं करना) तथा ब्रह्मचर्य। इन्हें पंच महाव्रत कहा जाता है।
Q.64. पिटक कितने हैं ? उनके नाम और विशेषताएँ लिखें।
Ans. पिटक तीन हैं-सुत्तपिटक, विनयपिटक एवं अभिधम्मपिटक। इससे इन्हें त्रिपिटिक के नाम से पुकारा जाता है। गौतम बुद्ध के निर्वाण के बाद इनकी रचना की गई। सुत्तपिटक में बुद्ध के उपदेश संकलित किए गए हैं। विनयपिटक में बौद्ध संघ के नियमों का उल्लेख है। अभिधम्मपिटक में बौद्ध दर्शन का विवेचन है।
Q.65. बौद्ध धर्म और जैन धर्म की शिक्षाओं में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
Ans ⇒ बौद्ध धर्म और जैन धर्म की शिक्षाओं में निम्न अंतर हैं
S.N | बौद्ध धर्म | जैन धर्म |
1. | बौद्ध धर्म ईश्वर के अस्तित्व के विषय में मौन है। | जैन धर्म ईश्वर के अस्तित्व को बिल्कुल नहीं मानता। |
2. | पूजा-पाठ, भजन-कीर्तन, कर्म के समक्ष व्यर्थ है। | प्रार्थना कुछ भी नहीं है, तप. और व्रत ही मोक्ष प्राप्ति के साधन हैं। |
3. | अहिंसा सबसे बड़ा धर्म है। यज्ञ आदि में इनका विश्वास न हैं। | अहिंसा पर अत्यधिक बल देते हैं, जड़ पदार्थों में जीवन का आभास। |
4. | मोक्ष प्राप्ति के लिए अच्छे कर्म और पवित्र जीवन पर बल देता है। | मोक्ष प्राप्ति के लिए त्रिरत्न पर बल देता है। पवित्र जीवन पर बल देता है। (क) सम्यक ज्ञान, (ख) सम्यक कर्म तथा (ग) अहिंसा। |
5. | संघ को धर्म का प्रचार माध्यम बनाता है, मठों में अध्ययन-अध्यापन का कार्य होता है। | 5. इनके संघ नहीं होते, परन्तु धर्म-प्रचार के लिए प्रचारक होते हैं। |
6. | बौद्ध धर्म का विस्तार देश-विदेश दोनों स्थानों पर हुआ। एशिया के कई देश इसकी छाया में आ गये थे। | जैन धर्म केवल भारत में ही फूला-फला, विदेशों में नहीं। |
Q.66. आप ‘जातक’ के सम्बन्ध में क्या जानते हैं ?
Ans ⇒ जातक कथाओं में महात्मा गौतम बुद्ध के पूर्व जन्मों की कथाएँ संकलित हैं। ये कथाएँ पालि भाषा में हैं। इनमें तत्कालीन धार्मिक, सामाजिक और आर्थिक चित्रण मिलते हैं। जातकों का बौद्ध साहित्य में विशेष महत्व है। इन कहानियों से हमें पता चलता है कि महात्मा बुद्ध जाति प्रथा एवं ब्राह्मणों को उच्च स्थान दिये जाने के विरुद्ध थे और क्षत्रियों को ब्राह्मणों से अच्छा मानते थे। काशी, कौशल तथा मगध राज्यों की प्रसिद्ध घटनाओं का विवरण भी जातक कथाओं में मिलता है। जातक कथाएँ अपना धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व रखती हैं।
Q.67. कृष्ण देवराय की मुख्य उपलब्धियों के बारे में बताएँ।
Ans ⇒ 1. कृष्ण देवराय बीजापुर और गोलकुंडा के शासकों को पराजित करने में सफल रहा।
2. उसने उड़ीसा पर भी आक्रमण किया तथा वहाँ के शासक को भी हराया।
3. उसने न केवल रायचूर दोआब पर विजय प्राप्त की बल्कि अपनी सेनाओं के साथ बहमनी राज्य के अंदर भी प्रवेश कर गया।
4. पश्चिमी समद्र तट पर सभी स्थानीय राज्यों के साथ उसका व्यवहार बहुत ही मैत्रीपूर्ण था। अपने इन स्थानीय राज्यों के साथ व्यापारिक सम्बन्ध बनाकर अपने राज्य को बनाया।
5. वह एक कुशल प्रशासक भी था। उसने अपने राज्य के उत्थान के लिए कई का उसने सिंचाई के लिए बाँध बनवाये, जिससे राज्य की कृषि-दशा में सुधार आया।
6. उसने नये मंदिरों का निर्माण करवाया और पुराने मंदिर की मरम्मत करवाई। उस दरबार में विद्वानों और गुणी लोगों को प्रश्रय दे रखा था।
Q.68. आयंगर व्यवस्था के विषय में आप क्या जानते हैं ?
Ans ⇒ विजयनगर राज्य ने प्रचलित स्थानीय प्रशासन में परिवर्तन कर आयंगर व्यवस्था की प्रत्येक ग्राम को स्वतंत्र प्रशासनिक इकाई के रूप में गठित कर प्रशासन 12 व्यक्तियों के को दिया गया। यह समूह आयगार कहलाता था। ये व्यक्ति राजकीय अधिकारी थे इनका पद आनुबंशिक था। वेतन के रूप में लगान और कर मुक्त भूमि दी जाती थी। आयगार ग्राम प्रशासन की देखभाल करते एवं शांति-व्यवस्था बनाए रखते थे।
Q.69. पानीपत की पहली लड़ाई (1526) भारत के इतिहास में एक निर्णायक लडाई समझी जाती है, विवेचन कीजिए।
Ans ⇒ 1. इस लड़ाई में लोदियों की कमर टूट गई। दिल्ली और आगरा तक का सारा प्रदेश बाबर के अधीन हो गया।
2. इब्राहीम लोदी द्वारा आगरा में एकत्र खजाना अधिकार में आ जाने से बाहर की सारी आर्थिक कठिनाइयाँ दूर हो गईं।
3. जौनपुर तक का समृद्ध क्षेत्र भी बाबर के सामने प्रशस्त था।
4. पानीपत की लड़ाई ने उत्तर भारत का आधिपत्य के लिए संघर्ष के एक नये युग का सूत्रपात किया।
Q.70. बाबर के बाबरनामा पर नोट लिखें।
Ans ⇒ बाबर एक वीर योद्धा ही नहीं, अपितु एक विद्वान साहित्यकार भी था। उसकी रचनाओं में सबसे उत्तम उसकी आत्मकथा ‘बाबरनामा’ या ‘तुज्क-ए-बाबरी’ है। श्रीमती बैबरिज के अनुसार, “बाबर की आत्मकथा एक ऐसा अमूल्य भण्डार है जिसे सेंट अगस्टॉइ तथा रूसो के स्वीकृति वचन और गिब्बन तथा न्यूटन की आत्म कथाओं के समकक्ष रखा जा सकता है।” बाबर ने अपनी आत्मकथा को अपनी मातृ-भाषा तुर्की में लिखा था। फारसी में इसका अनुवाद गुलबदन ने किया। अंग्रेजी में श्रीमती बैवरिज तथा हिन्दी में केशव कुमार ठाकुर के अनुवाद बहुत प्रसिद्ध हैं।
विषय – बाबरनामा में बाबर. के जीवन की महत्वपूर्ण घटनाओं का वर्णन है। इसमें. फरगान, समरकन्द, बाबर की काबुल विजय, भारत के उत्तर-पश्चिम प्रदेश तथा पानीपत, खनवाह, चन्देरी और घाघरा आदि के प्रसिद्ध भारतीय युद्धों का भी वर्णन है। बाबर के जीवन में स्थिरता का अभाव था। अतः बाबर की आत्मकथा में केवल 18 वर्ष की घटनायें ही मिलती हैं।
भाषा-शैली – बाबरनामा की भाषा तुर्की है। इसमें अरबी-फारसी के शब्दों की अधिकता है। बाबर की भाषा सरल, स्वाभाविक तथा प्रवाहमयी है। उसकी वर्णन-शैली भी साधारण और स्पष्ट है। उसे जब अधिक समय मिला तो उसने विस्तार में लिखा है और जब कम समय मिला तो संक्षेप में वर्णन किया है।
विशेषताएँ- 1. बाबर ने सरल और स्पष्ट वर्णन किया है। उसने अपनी भूलों और कमजोरिया को भी नहीं छुपाया।
2. बाबर को प्रकृति से बड़ा अनुराग था। बाबरनामा में प्राकृतिक दृश्यों का सन्दर वर्णन किया गया है।
3. बाबरनामा के वर्णन सजीव और रोचक हैं।
4. बाबरनामा में तत्कालान भारत का प्रामाणिक इतिहास है।
महत्त्व – बाबरनामा साहित्यिक तथा ऐतिहासिक दोनों दृष्टियों से एक महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ है। इस ग्रन्थ में मध्य एशियाई राजनीति, तैमूरों के इतिहास, मंगोलों और चुगताइयों के आपसी सम्बन्ध, बाबर की तत्कालीन कठिनाइयाँ, ईरानी, उजबेग शक्ति के उत्थान और संघर्ष तथा बाबर के संघर्षमय जीवन की जानकारी मिलती है। इसी प्रकार यह ग्रन्थ तत्कालीन भारत और मध्य एशिया की सांस्कृतिक राजनैतिक जानकारी के लिए एक महत्त्वपूर्ण स्रोत है।
Q.71. अकबर की धार्मिक नीति की समीक्षा करें।
Ans ⇒ अकबर की धार्मिक नीति की विवेचना निम्नलिखित है –
(i) आरम्भ में अकबर एक कट्टरपंथी मुसलमान था परंतु बैरम खाँ, अब्दुल रहीम खानखाना, फैजी, अबुल फजल, बीरबल जैसे उदार विचारों वाले लोगों के सम्पर्क से उसका दृष्टिकोण बदल गया। हिंदू रानियों का भी उस पर प्रभाव पड़ा। अब वह अन्य धर्मों के प्रति उदार हो गया था।
(ii) 1575 ई. में उसने इबादतखाना बनवाया, जिसमें विभिन्न धर्मों के विद्वानों को अपने-अपने विचार प्रकट करने की पूर्ण स्वतंत्रता थी। अक्सर बहस करते समय मौलवी गाली-गलौच पर उतर जाते थे। अतः अकबर को इस्लाम धर्म में रुचि कम हो गई।
(iii) वह स्वयं तिलक लगाने लगा और गौ की पूजा करने लगा। अत: कट्टरपंथी मुसलमान उसे काफिर कहने लगे थे।
(iv) 1579 ई. में उसने अपने नाम का खतवा पढवा कर अपने आप को धर्म का प्रमुख घोषित कर दिया। इससे उलेमाओं का प्रभाव कम हो गया।
(v) अंत में उसने सभी धर्मों का सार लेकर नया धर्म चलाया, जिसे दीन-ए-इलाही के नाम से जाना जाता है। अपने धर्म को उसने किसी पर थोपने का प्रयास नहीं किया।
(vi) उसने रामायण, महाभारत आदि कई हिन्दु ग्रंथों का भी फारसी में अनुवाद करवाया। वह धर्म को राजनीतिक से दूर रखता था।
(vii) फतेहपुर सीकरी में एक महल, जोधाबाई का महल में भारतीय संस्कृति की स्पष्ट झलक देखते हैं।
Q.72. अकबर को ‘राष्ट्रीय शासक’ क्यों कहा जाता है ?
Ans ⇒ अनेक विद्वान और व्यक्ति जलालुद्दीन अकबर (1556-1605) को मुगल बादशाहों में महानतम मानते हैं क्योंकि उसने न केवल अपने साम्राज्य का विस्तार ही किया बल्कि इसे अपने समय का विशालतम, दृढ़तम और सबसे समृद्ध राज्य बनाकर सुदृढ़ भी किया। अकबर हिंदुकुश पर्वत तक अपने साम्राज्य की सीमाओं के विस्तार में सफल हुआ और इसने ईरान के सफानियों और तरान (मध्य एशिया) के उजबेकों की विस्तारवादी योजनाओं पर लगाम लगाए रखी। अकबर के बाद जहाँगीर (1605-27) शाहजहाँ (1628-58) और औरंगजेब (1658-1707) के रूप में भिन्न-भिन्न व्यक्तित्व वाले तीन बहुत योग्य उत्तराधिकारी हुए। इनके अधीन क्षेत्रीय विस्तार जारी रहा यद्यपि इसकी गति काफी धीमी रही। तीन शासकों ने शासन के विविध यंत्रों को बनाए रखा और उन्हें सुदृढ़ किया। अत: अकबर राष्ट्रीय शासक था।
Q.73. मुगलकालीन केन्द्रीय प्रशासन की मुख्य विशेषताओं का वर्णन करें।
Ans ⇒ मुगलकालीन केन्द्रीय प्रशासन की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित प्रकार थी –
(i) वकील- इसे बजीर भी कहा जाता था। यह केन्द्रीय सरकार के समस्त विभागों का अध्यक्ष था। अकबर ने बैरम खाँ के पश्चात् इस पद का अंत कर दिया।
(ii) दीवान या वित्तमंत्री- आर्थिक विषयों में यह बादशाह का प्रतिनिधि था।
(iii) मीरबखणी- यह सेना संबंधी सभी कार्य देखता था। यह सेना, मनसबदार एवं घोड़ों संबंधी व्यवस्था देखता था।
(iv) प्रधान काजी- यह प्रांत, जिला एवं नगर के काजियों की नियुक्ति करता था। फौजदारी मुकदमों को देखता था।
(v) पांतीय शासन – सुबेदार प्रांत अथवा सूबे का प्रमुख होता था। दीवान सूबे में वित्त व्यवस्था देखता था। कोतवाल सूबे की आंतरिक सुरक्षा देखता था।
(vi) जिला शासन- प्रत्येक प्रांत जिलों में विभक्त था। फौजदार जिले का प्रमुख अधिकारी था।
Q.74. शेरशाह सूरी के भू-राजस्व का वर्णन कीजिए।
Ans ⇒ 1. शेरशाह ने भूमि पर लगान की दर निश्चित करने के लिए कृषि योग्य तीन भागों में बाँटा। अच्छी, खराब और साधारण स्तर की भूमि। तीनों प्रकार की भूमि की निश्चित करके उनके औसत पर लगान निश्चित किया जाता था।
2. लगान उपज के अनुसार निश्चित किया जाता था। साधारण उपज वाली भमि की का एक-तिहाई भाग लगान के रूप में देना होता था। लगान अनाज या धन के रूप में तथा सरकारी कोष में जमा किया जा सकता था।
3. फसल नष्ट होने पर किसानों का लगान माफ कर दिया जाता था। उन्हें राजकोष से आ सहायता भी दी जाती थी। सैनिकों को आदेश था कि वे कूच के समय फसल न खराब करें। अनिवार्य परिस्थितियों के कारण सैनिकों द्वारा खड़ी फसल को नुकसान पहुँचता था तो राज्य उसकी क्षतिपूर्ति करता था।
4. सरकार और किसानों के बीच पट्टे होते थे। इन पट्टों पर भूमि का क्षेत्रफल, भमिकी श्रेणी तथा लगान की दर लिखी होती थी। किसान उस पर हस्ताक्षर करता था। इस पट्टे से किसान . के अधिकार सुरक्षित हो जाते थे।
Q.75. अकबर के व्यक्तित्व पर टिप्पणी दें।
Ans ⇒ अकबर इतिहास में महान् की उपाधि से विभूषित हैं और इसकी महानता का मुख्य कारण है-इसका विराट व्यक्तित्व। साम्राज्य की सुदृढ़ता, साम्राज्य में शांति स्थापना तथा मानवीय भावनाओं से उत्प्रेरित अकबर ने न सिर्फ गैर मुसलमानों को राहत दिया, राजपूतों के साथ वैवाहिक सम्बन्ध स्थापित किया बल्कि एक कुशल प्रशासनिक व्यवस्था भी प्रदान किया। धार्मिक सामंजस्य के प्रतीक के रूप में उसका दीन-ए-इलाही प्रशंसनीय है।