6. तुमुल कोलाहल कलह में ( लघु उत्तरीय प्रश्न एवं दीर्घ उत्तरीय प्रश्न )
1. ‘हृदय की बात’ का क्या कार्य है ?
उत्तर ⇒ घनघोर कोलाहल, अशांति और कलह के बीच हृदय की बात का कार्य मस्तिष्क को शांति पहुँचाना, उसे आराम देना है। मस्तिष्क जब विचारों के कोलाहल से घिर जाता है तो हृदय की बात उसे आराम देती है। हृदय कोमल भावनाओं का प्रतीक है जो मस्तिष्क को विचारों के कोलाहल से दूर करता है।
2. बरसात को ‘सरस’ कहने का क्या अभिप्राय है ?
उत्तर ⇒ हम जानते हैं कि बरसात में पानी आकाश से धरती पर गिरकर उसे रसभरी बनाती है। इसके पहले धरती गर्मी की प्रचंडता के कारण पानी के लिए तरसती रहती है। धरती जब पानी से भर जाती है तो पूरी धरती हरी-भरी रसभरी हो जाती है इसलिए बरसात को सरस (रस के साथ) कहा जाता है। यहाँ दूसरा अर्थ यह ध्वनित होता है कि धरती पर जीवन का नया संचार हो जाता है जिससे धरती सरस हो जाती है।
3. ‘सजल जलजात’ का क्या अर्थ है ?
उत्तर ⇒ शब्द के अर्थ का दृष्टि से ‘सजल जलजात’ का अर्थ जल में खिला हुआ कमल है। कवि का आशय जीवन के मार्मिक क्षणों में मैं सदा कमल की तरह खिलने वाला हूँ से है।
4. कविता में उषा की किस भूमिका का उल्लेख है ?
उत्तर ⇒ छायावादी कवि जयशंकर प्रसाद द्वारा रचित ‘तमल कोलाहल कलह में’ शीर्षक कविता में उषाकाल की एक महत्वपूर्ण भूमिका का उल्लेख किया गया है। उषाकाल अंधकार का नाश करता है। उषाकाल के पूर्व सम्पूर्ण विश्व अंधकार में डुबा रहता है। उषाकाल होते ही सूर्य की रोशनी अंधकाररूपी जगत में आने लगती है। सारा विश्व प्रकाशमय हो जाता है। सभी जीव-जंतु अपनी गतिविधियाँ प्रारम्भ कर देते हैं। जगत् में एक आशा एवं विश्वास का वातावरण प्रस्तुत हो जाता है। उषा की भूमिका का वर्णन कवि ने अपनी कविता में किया है।
5. चातकी किसके लिए तरसती है ?
उत्तर ⇒ चातकी एक पक्षी है जो स्वाति की बूंद के लिए तरसती है। चातकी केवल स्वाति का जल ग्रहण करती है। वह सालोभर स्वाति के जल की प्रतीक्षा करती रहती है और जब स्वाति की बूंद आकाश से गिरता है तभी वह जल ग्रहण करती है। इस कविता में यह उदाहरण सांकेतिक है। दु:खी व्यक्ति सुख प्राप्ति की आशा में चातकी के समान उम्मीद बाँधे रहते हैं। कवि के अनुसार, एक-न-एक दिन उनके दु:खों का अंत होता है।
6. कविता का केन्द्रीय भाव क्या है ? संक्षेप में लिखिए।
उत्तर ⇒ प्रस्तुत कविता ‘तुमुल कोलाहल कलह में’ शीर्षक कविता आधुनिक काल के सर्वश्रेष्ठ कवि जयशंकर प्रसाद द्वारा विरचित है। प्रस्तुत कविता में कवि ने जीवन रहस्य को सरल और सांकेतिक भाषा में सहज ही अभिव्यक्त किया है।
कवि कहना चाहता है कि रे मन, इस तूफानी रणक्षेत्र जैसे कोलाहलपूर्ण जीवन में मैं हृदय की आवाज के समान हूँ। कवि के अनुसार भीषण कोलाहल कलह विक्षोभ है तथा शान्त हृदय के भीतर छिपी हुई निजी बात आशा है।
कवि कहता है कि जब नित्य चंचल रहनेवाली चेतना (जीवन के कार्य-व्यापार से) विकल …होकर नींद के पल खोजती है और थककर अचेतन-सी होने लगती है, उस समय मैं नींद के लिए विकल शरीर को मादक और स्पर्शी सुख मलयानिल के मंद झोंके के रूप में आनन्द
के रस की बरसात करता हूँ।
कवि के अनुसार जब मन चिर-विषाद में विलीन है, व्यथा का अन्धकार घना बना हुआ है, तब मैं उसके लिए उषा-सी ज्योति रेखा हूँ, पुष्प के समान खिला हुआ प्रात:काल हूँ। अर्थात् कवि को दु:ख में भी सुख की अरुण किरणें फूटती दीख पड़ती है।
कवि के अनुसार जीवन मरुभूमि की धधकती ज्वाला के समान है जहाँ चातकी जल के कण प्राप्ति हेतु तरसती है। इस दुर्गम, विषम और ज्वालामय जीवन में मैं (श्रद्धा) मरुस्थल की वर्षा के समान परम सुख का स्वाद चखानेवाली हूँ। अर्थात् आशा की प्राप्ति से जीवन
में मधु-रस की वर्षा होने लगती है।
कवि को अभागा मानव-जीवन पवन की परिधि में सिर झुकाये हुए रुका हुआ-सा प्रतीत होता है। इस प्रकार जिनका सम्पूर्ण जीवन-झुलस रहा हो ऐसे दु:ख-दग्ध लोगों को आशा वसन्त की रात के समान जीवन को सरस बनाकर फूल-सा खिला देती है।
कवि अनुभव करता है कि जीवन आँसुओं का सरोवर है, उसमें निराशारूपी बादलों की छाया पड़ रही है। उस हाहाकारी सरोवर में आशा ऐसा सजल कमल है जिस पर भौंरे मँडराते हैं और जो मकरन्द से परिपूर्ण है। आशा एक ऐसा चमत्कार है जिससे स्वप्न भी सत्य हो जाता है।
7. कविता में “विषाद’ और ‘व्यथा’ का उल्लेख है, यह किस कारण से है? अपनी कल्पना से उत्तर दीजिए।
उत्तर ⇒ ‘तुमुल कोलाहल कलह में’ शीर्षक कविता के द्वितीय पद में ‘विषाद’ और है। कवि के अनुसार संसार की वर्तमान स्थिति कोलाहलपूर्ण है। कवि संसार की वतमान कालाहलपूण स्थिात स क्षुब्ध है। इससे मनुष्य का मन चिर-विषाद मन में घटन महसूस होने लगती है। कवि अंधकाररूपी वन में व्यथा (दु:ख) का अनुभव करता है। सचमुच, वर्तमान संसार में सर्वत्र विषाद एवं ‘व्यथा’ ही परिलक्षित होती है।
8. इस कविता में स्त्री को प्रेम और सौंदर्य का स्रोत बताया गया है। आप अपने पारिवारिक जीवन के अनुभवों के आधार पर इस कथन की परीक्षा कीजिए।
उत्तर ⇒ प्रसादजी के काव्यों में प्रेम और सौन्दर्य का चित्रण किया गया है। ‘तमल कोलाहल कलह में’ शीर्षक कविता में कवि ने स्त्री को प्रेम और सौंदर्य का स्रोत बताया है। कवि का कथन सही है। जब पुरुष सांसारिक उलझनों से उबकर घर आता है तो स्त्री शीतल पवन का रूप धारण कर जीवन को शीतलता प्रदान करती है। व्यथा एवं विषाद में स्त्री पुरुष की सहायता करती है।
S.N | हिन्दी ( HINDI ) – 100 अंक [ पद्य खण्ड ] |
1. | कड़बक |
2. | सूरदास |
3. | तुलसीदास |
4. | छप्पय |
5. | कवित्त |
6. | तुमुल कोलाहल कलह में |
7. | पुत्र वियोग |
8. | उषा |
9. | जन -जन का चेहरा एक |
10. | अधिनायक |
11. | प्यारे नन्हें बेटे को |
12. | हार-जीत |
13. | गाँव का घर |