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Class 12th History Model Paper 2022 Bihar Board PDF Download class 12th history model paper 2022


1. सोलह महाजनपदों में सबसे शक्तिशाली महाजनपद कौन था ?

(A) मगध
(B) अवन्ती
(C) कौशल
(D) गांधार

 Answer ⇒ A

2. बिम्बिसार का संबंध किस वंश से है ?

(A) हर्यक वंश से
(B) गुप्त वंश से
(C) मौर्य वंश से
(D) इनमें से कोई नहीं

 Answer ⇒ A

3. गुरुनानक का संबंध किस धर्म से है ?

(A) सिख
(B) इस्लाम
(C) बहाई
(D) यहूदी

 Answer ⇒ A

4. द्वितीय विश्वयुद्ध किस वर्ष प्रारम्भ हुआ ?

(A) 1937 ई०
(B) 1939 ई०
(C) 1942 ई०
(D) 1945 ई०

 Answer ⇒ B

5. हड़प्पा सभ्यता किस युग की सभ्यता है ?

(A) पूर्व पाषाण युग
(B) नव पाषाण युग
(C) लौह युग
(D) कांस्य युग

 Answer ⇒ D

6. भारत तक समुद्री मार्ग की खोज की गई थी ।

(A) डचों द्वारा
(B) अंग्रेजों द्वारा
(C) पुर्तगालियों द्वारा
(D) फ्रांसिसियों द्वारा

 Answer ⇒ C

7. रूस में भारत विद्या का जनक किसे कहा जाता है ?

(A) निकोली कोण्टी
(B) अफनासी. निकितन
(C) जी० एस० लिविदेव
(D) डेमिंगौस पेइस

 Answer ⇒ C

8. स्वतंत्र भारत के प्रथम गृहमंत्री कौन थे ?

(A) बल्लभभाई पटेल
(B) राजगोपालाचारी
(C) राजेन्द्र प्रसाद
(D) मौलाना आजाद

 Answer ⇒ A

9. पानीपत का प्रथम युद्ध कब हुआ ?

(A) 21 अप्रैल, 1529.
(B) 21 अप्रैल, 1526
(C) 20 अप्रैल, 1527
(D) 15 अप्रैल, 1528

 Answer ⇒ A

10. तमिल क्षेत्र से संबंधित मणिक्वचक्कार की दो विशेषताएँ थीं

(A) कांस्य मूर्तिकार, शैव अनुयायी भक्तिगीत गायक
(B) शैव अनुयायी तथा तमिल में भक्तिगीत के रचनाकार
(C) तमिल भक्ति गान तथा नृत्यकार
(D) उपर्युक्त में से कोई नहीं

 Answer ⇒ B

11. हीनयानी पुस्तकें किस भाषा में है ?

(A) संस्कृत
(B) पाली
(C) प्राकृत
(D) बौद्ध

 Answer ⇒ B

12. धर्मग्रन्थ सुतपिटक किस धर्म से सम्बन्धित है ?

(A) जैन
(B) बौद्ध
(C) हिन्दु
(D) शैव

 Answer ⇒ B

13. बुद्ध का बचपन का नाम क्या था ?

(A) वर्द्धमान
(B) सिद्धार्थ
(C) देवदत्त
(D) राहुल

 Answer ⇒ B

14. जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर कौन थे ?

(A) ऋषभदेव
(B) आदिनाथ
(C) पार्श्वनाथ
(D) महावीर स्वामी

 Answer ⇒ D

15. महाभारत के आदिपर्व के किस अध्याय में भीष्म द्वारा 8 प्रकार केविवाहों का वर्णन किया गया है ?

(A) प्रथम
(B) 52वें
(C) 102वें
(D) 100वें

 Answer ⇒ C

16. नाथमुनि का सम्बन्ध है

(A) जैन धर्म
(B) बौद्ध धर्म
(C) शैव धर्म
(D) वैष्णव धर्म

 Answer ⇒ D

17. कालिदास, भवभूमि, सुबन्धु एवं वाणभट्ट आदि किस धर्म के अनुयायी थे ?

(A) बौद्ध धर्म
(B) जैन धर्म
(C) शैव धर्म
(D) वैष्णव धर्म

 Answer ⇒ C

18. अप्पार, सुन्दरमूर्ति एवं नन्दन का सम्बन्ध किस धर्म से है ?

(A) बौद्ध धर्म
(B) जैन धर्म
(C) शैव मत
(D) वैष्णव धर्म

 Answer ⇒ C

19. भवभूति के ‘मालती माधव’ में किस संप्रदाय का उल्लेख है ?

(A) काश्मीर शैव
(B) लिंगायत
(C) कपालिक
(D) पाशुपत

 Answer ⇒ C

20. वाणभट्ट ने ‘कादम्बरी’ ग्रंथ में किस संप्रदाय का उल्लेख किया है ?

(A) काश्मीर शैव
(B) लिंगायत
(C) कपालिक
(D) पाशुपत

 Answer ⇒ D

21. महात्मा बुद्ध को ज्ञान की प्राप्ति कहाँ हुई ?

(A) लुम्बनी
(B) बोधगया
(C) सारनाथ
(D) कुशीनगर

 Answer ⇒ B

22. श्वेताम्बर एवं दिगम्बर का सम्बन्ध किस धर्म से है ?

(A) हिन्दू
(B) बौद्ध
(C) शैव
(D) जैन

 Answer ⇒ D

23. वीर शैव (लिंगायत) आन्दोलन का जनक कौन हैं ?

(A) कबीर
(B) गुरु नानक
(C) बास बन्ना
(D) कराइकाल

 Answer ⇒ C

24. बौद्ध परम्परा में अशोक ने कितने स्तूप बनवाए ?

(A) 100
(B) 50,000
(C) 64,000
(D) 84,000

 Answer ⇒ B

25. किस शासक को प्रियदर्शी कहा गया है ?

(A) अशोक
(B) समुद्रगुप्त
(C) चन्द्रगुप्त मौर्य
(D) अकबर

 Answer ⇒ A

26. तृतीय बौद्ध संगीति का आयोजन कहाँ हुआ ?

(A) राजगृह
(B) पाटलीपुत्र
(C) कश्मीर
(D) कौशाम्बी

 Answer ⇒ B

27. हरिहर एवं बुक्का ने कब विजयनगर साम्राज्य की स्थापना की ?

(A) 1326 ई० को
(B) 1336 ई. को
(C) 1345 ई. को
(D) 1526 ई० को

 Answer ⇒ B

28. महाभारत में वर्ण व्यवस्था का उल्लेख मिलता है

(A) आदि पर्व में
(B) भीष्म पर्व में
(C) शान्ति पर्व में
(D) इन सभी में

 Answer ⇒ C

29. भारत में रेलवे की शुरूआत कब हुई ?

(A) 1753 ई.
(B) 1973 ई०
(C) 1853 ई०
(D) इनमें से कोई नहीं

 Answer ⇒ C

30. हमानामा किसने लिखा ?

(A) हुमायूँ
(B) गुलबदन बेगम
(C) अकबर
(D) अबुल फजल

 Answer ⇒ B

31. रेहला पुस्तक किसके द्वारा लिखा गया ?

(A) अलबरूनी
(B) मार्कोपोलो
(C) वर्नियर
(D) इब्नबतूता

 Answer ⇒ D

32. दीन-ए-इलाही था

(A) एक धर्म
(B) एक पुस्तक
(C) भू-राजस्व का प्रकार
(D) मुगलकालीन प्रशासनिक विभाग

 Answer ⇒ A

33. मुगल चित्रकला किसके समय अपने चरमोत्कर्ष पर पहुँची ?

(A) बाबर
(B) अकबर
(C) जहाँगीर
(D) शाहजहाँ

 Answer ⇒ C

34. गोपुरम से आप क्या समझते हैं ?

(A) मंदिर का प्रवेश द्वार
(B) गायों का बाड़ा
(C) भू-राजस्व
(D) नृत्य की शैली

 Answer ⇒ A

35. दिल्ली भारत की राजधानी कब बनी ?

(A) 1910
(B) 1911
(C) 1912
(D) 1913

 Answer ⇒ B

36. महात्मा गाँधी के राजनीतिक गुरु कौन थे ?

(A) फिरोजशाही मेहता
(B) एम० जी० रानाडे
(C) गोपालकृष्ण गोखले
(D) बालगंगाधर तिलक

 Answer ⇒ C

37. भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना किसने की ?

(A) महात्मा गाँधी
(B) बालगंगाधर तिलक
(C) ए० ओ० ह्यूम
(D) डॉ. भीमराव अम्बेडकर

 Answer ⇒ C

38. मध्ययुगीन यात्रियों का सरताज किस यात्री को कहा जाता है ?

(A) अलबरूनी
(B) मार्को पोलो
(C) बर्नियर
(D) इब्नबतूता

 Answer ⇒ B

39. शिकार के समय रास्ते में पड़ने वाले गाँव में भू-राजस्व सम्बन्धी जानकारी किस सम्राट ने सर्वप्रथम प्राप्त की ?

(A) अकबर
(B) हुमायूँ
(C) जहाँगीर
(D) शाहजहाँ

 Answer ⇒ A

40. तम्बाकू पर किस शासक ने प्रतिबन्ध लगाया ?

(A) अकबर
(B) बाबर
(C) जहाँगीर
(D) शाहजहाँ

 Answer ⇒ C

41. साम्राज्यवादी इतिहासकार हैं

(A) अब्दुल कादिर बदायूँनी
(B) डब्ल्यू० एच० मोरलैण्ड
(C) आर० पी० त्रिपाठी
(D) आर० एस० शर्मा

 Answer ⇒ B

42. भारत में तम्बाकू का पौधा लगाया गया

(A) अंग्रेजों द्वारा इंग्लैण्ड से
(B) हूणों द्वारा
(C) पुर्तगालियों द्वारा पुर्तगाल से
(D) अरबों द्वारा

 Answer ⇒ C

43. 1895 ई. के स्वराज विधेयक किसके निर्देशन में तैयार किया गया ?

(A) सुभाषचन्द्र बोस
(B) अम्बेडकर
(C) बाल गंगाधर तिलक
(D) जवाहरलाल नेहरू

 Answer ⇒ C

44. भारत की राजधानी कलकत्ता से दिल्ली स्थानांतरित हुई थी

(A) 1909 ई० में
(B) 1910 ई० में
(C) 1911 ई० में
(D) 1912 ई० में

 Answer ⇒ C

45. कलकत्ता में सर्वोच्च न्यायालय की स्थापना की गई

(A) 1885 ई० में
(B) 1773 ई० में
(C) 1771 ई० में
(D) 1673 ई० में

 Answer ⇒ B

46. संविधान सभा की संचालन समिति के अध्यक्ष कौन थे ?

(A) डॉ. राजेन्द्र प्रसाद
(B) जवाहरलाल नेहरू
(C) भीमराव अम्बेडकर
(D) सरदार पटेल

 Answer ⇒ A

47. 1857 की क्रान्ति आरम्भ हुई

(A) 10 मई
(B) 13 मई
(C) 18 मई
(D) 26 मई

 Answer ⇒ A

48. गुप्त वंश का अंतिम शासक कौन था ?

(A) समुद्रगुप्त
(B) चन्द्रगुप्त द्वितीय
(C) भानूगुप्त
(D) इनमें से कोई नहीं

 Answer ⇒ C

49. हरिहर एवं बूका किस वंश के थे ?

(A) गुप्त वंश
(B) संगम वंश
(C) मौर्य वंश
(D) इनमें से कोई नहीं

 Answer ⇒ B

50. अकबर का जन्म कब हुआ था ?

(A) 1540
(B) 1541
(C) 1542
(D) 1543

 Answer ⇒ C

51. गाँधीजी की माता का नाम क्या था ?

(A) कस्तुरबा गाँधी
(B) पुतलीबाई
(C) सरोजनी नायडू
(D) इनमें से कोई नहीं

 Answer ⇒ B

52. किस रिपोर्ट का सम्बन्ध भारत में ईस्ट इण्डिया कम्पनी के क्रियाकलापों से है ?

(A) 11वीं रिपोर्ट
(B) 21वीं रिपोर्ट
(C) 5वीं रिपोर्ट
(D) इनमें से कोई नहीं

 Answer ⇒ C

53. 15 अगस्त, 1947 ई० को जब भारत स्वतंत्र हुआ, उस समय ब्रिटेन में किस पार्टी की सरकार थी ?

(A) लेबर पार्टी
(B) रिपब्लिक पार्टी
(C) लिबरल पार्टी
(D) डेमोक्रेटिक पार्टी

 Answer ⇒ A

54. सीधी कार्रवाई की धमकी किसने दी ?

(A) हिन्दू महासभा
(B) मुस्लिम लीग
(C) स्वराज दल
(D) कांग्रेस

 Answer ⇒ B

55. साम्प्रदायिक समस्या सुलझाने हेतु कौन-सा फॉर्मूला प्रस्तुत किया गया ?

(A) नेहरू फोर्मूला
(B) लीग फार्मूला
(C) राजगोपालाचारी फार्मूला
(D) टैगोर फार्मूला

 Answer ⇒ C

56. भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस की स्थापना कब हुई ?

(A) 1885 ई०
(B) 1881 ई०
(C) 1888 ई०
(D) 1890 ई०

 Answer ⇒ A

57. तृतीय कर्नाटक युद्ध (एंग्लो-फ्रेंच संघर्ष) की समाप्ति किस संधि से हुई ?

(A) पेरिस की संधि
(B) बेसीन की संधि
(C) ए-ला-शापेल की संधि
(D) सूरत की संधि

 Answer ⇒ A

58. ब्रिटिश सरकार की नीतियों से दु:खी होकर उपवास की घोषणा किसने की ?

(A) जवाहरलाल नेहरू
(B) महात्मा गाँधी
(C) बिनोवा भावे
(D) ज्योतिबा फुले

 Answer ⇒ B

59. मुस्लिम लीग द्वारा सीधी कार्रवाई दिवस मनाया गया।

(A) 16 अगस्त, 1942 ई०
(B) 16 अगस्त, 1944 ई०
(C) 16 अगस्त, 1946 ई०
(D) 16 अगस्त, 1947 ई०

 Answer ⇒ D

60. सविनय अवज्ञा आन्दोलन कब हुआ ?

(A) 1920 में
(B) 1930 में
(C) 1940 में
(D) 1945 में

 Answer ⇒ B

61. 1526 ई० में बाबरने किस वंश के शासक को परास्त कर मुगल साम्राज्य का नीवं डाली ?

(A) सैय्यद वंश
(B) लोदी वंश
(C) तुगलक वंश
(D) खिलजी वंश

 Answer ⇒ B

62. रैयतवाड़ी बन्दोबस्त के जनक थे –

(A) मार्टिन बर्ड
(B) बुकानन
(C) मुनरो एवं रीड
(D) इनमें से सभी

 Answer ⇒ C

63. प्राचीन भारत में ‘धम्म’ की शुरुआत किस शासक ने की थी ?

(A) चन्द्रगुप्त मौर्य
(B) चन्द्रगुप्त-II
(C) अशोक
(D) कनिष्क

 Answer ⇒ C

64. भारत का नेपोलियन’ किस शासक को कहा जाता है ?

(A) अशोक
(B) समुद्रगुप्त
(C) अकबर
(D) चन्द्रगुप्त मौर्य

 Answer ⇒ B

65. महाभारत किसने लिखा ?

(A) वाल्मीकि
(B) मनु
(C) कौटिल्य
(D) वेदव्यास

 Answer ⇒ D

66. ‘अर्थशास्त्र’ के लेखक कौन हैं ?

(A) मनु
(B) वाल्मीकि
(C) वेदव्यास
(D) कौटिल्य

 Answer ⇒ D

67. चौथी बौद्ध संगीति किस शासक के काल में हुआ था ?

(A) अशोक
(B) कालाशोक
(C) अजातशत्रु
(D) कनिष्क

 Answer ⇒ D

68. प्रयाग प्रशस्ति की रचना किसने की थी ?

(A) बाणभट्ट
(B) कालिदास
(C) हरिषेण
(D) तुलसीदास

 Answer ⇒ C

69. विजयनगर साम्राज्य की स्थापना किसने की ?

(A) देवराय I
(B) हरिहर एवं बुक्का
(C) कृष्णदेवराय
(D) सदाशिवराय

 Answer ⇒ B

70. महावीर ने पार्श्वनाथ के सिद्धांतों में नया सिद्धांत क्या जोड़ा ?

(A) अहिंसा
(B) ब्रह्मचर्य
(C) सत्य
(D) अपरिग्रह

 Answer ⇒ B

71. महाभारत की रचना किस भाषा में हुई ?

(A) संस्कृत
(B) पाली
(C) प्राकृतं
(D) हिन्दी

 Answer ⇒ D

72. गुप्त काल में कौन चीनी यात्री भारत आया था ?

(A) इत्सिंग
(B) फाह्यान
(C) ह्वेन सांग
(D) इनमें से कोई नहीं

 Answer ⇒ B

73. पाकिस्तान का प्रथम प्रधानमंत्री कौन था ?

(A) मुहम्मद अली जिन्ना
(B) लियाकत अली
(C) इकबाल अहमद
(D) मौलाना आजाद

 Answer ⇒ B

74. इंडिका के लेखक कौन हैं ?

(A) कौटिल्य
(B) मेगास्थनीज
(C) अलबरूनी
(D) इनमें से कोई नहीं

 Answer ⇒ D

75. भारत छोड़ो आन्दोलन के समय गाँधीजी के बारे में यह घोषणा किसने की कि “जब दुनिया में हम हर कहीं जीत रहे हैं, ऐसे वक्त में ‘ एक कमबख्त बुड्ढे के सामने कैसे झुक सकते हैं जो हमेशा हमारा दुश्मन रहा है” ?

(A) विंस्टन चर्चिल
(B) रेम्जे मेक्डोनल
(C) क्लीमेंट एटली
(D) पार्मस्टन

 Answer ⇒ A

76. मुस्लिम लीग की स्थापना किस वर्ष हुई ?

(A) 1885 ई०
(B) 1906 ई०
(C) 1915 ई०
(D) 1919 ई०

 Answer ⇒ B

77. लॉर्ड माउण्टबेटन ने भारत के वायसराय के रूप में कब पद ग्रहण किया ?

(A) 24 मार्च, 1947
(B) 3 जून, 1946
(C) 15 अगस्त, 1947
(D) 24 नवम्बर, 1949

 Answer ⇒ A

78. निम्न में से महिला सन्त थी

(A) मीरा
(B) अंडाल
(C) कराइकल
(D) इनमें से सभी

 Answer ⇒ B

79. भारत में आने वाला प्रथम पुर्तगाली कौन था ?

(A) कोलम्बस
(B) रियो डी
(C) वास्कोडिगामा
(D) इनमें से कोई नहीं

 Answer ⇒ C

80. ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह कहाँ है ?

(A) दिल्ली
(B) आगरा
(C) जयपुर
(D) अजमेर

 Answer ⇒ D

81. 1857 की क्रान्ति के दौरान सागर एवं आस-पास के क्षेत्र में किसने अंग्रेजो को परेशान किया ?

(A) बख्तवली
(B) मर्दन सिंह
(C) बोधन दौआ
(D) इनमें से सभी ने

 Answer ⇒ D

82. 3 फरवरी, 1858 को सागर में विद्रोह का दमन किसने किया ?

(A) हैवलाक
(B) ह्यूरोज
(C) आउट्रम
(D) लखनऊ

 Answer ⇒ B

83. ह्यूरोंज ने किस नगर के सामरिक महत्व को अत्यधिक माना है एवं उसे जबलपुर से भी अधिक महत्वपूर्ण बताया है ?

(A) झाँसी
(B) कानपुर
(C) सागर
(D) लखनऊ

 Answer ⇒ C

84. झोकन बाग हत्याकाण्ड 8 जून को कहाँ पर हुआ ?

(A) झाँसी
(B) कानपुर
(C) सागर
(D) लखनऊ

 Answer ⇒ A

85. बीबीधर कत्लेआम 17 जुलाई को कहाँ पर हुआ ?

(A) झाँसी
(B) कानपुर
(C) सागर
(D) लखनऊ

 Answer ⇒ B

86. बुन्देलखण्ड के किस स्थान पर ह्यूरोज के दमन चक्र के समय विद्रोही नेता ताँत्या टोपे, रानी लक्ष्मीबाई, राव साहब, बख्तवली, मर्दन सिंह एवं अलीबहादुर द्वितीय आदि एकत्रित हुए थे ।

(A) झाँसी
(B) सागर
(C) कालपी
(D) ललितपुर

 Answer ⇒ C

87. तात्या टोपे ने अंग्रेजों को अत्यधिक छकाया। उसे किस स्थान पर . 18 अप्रैल, 1859 को फाँसी दी गई ?

(A) झाँसी
(B) शिवपुरी
(C) कानपुर
(D) दिल्ली

 Answer ⇒ B

88. ‘द ग्रेट रिवोल्ट’ नामक पुस्तक किसने लिखी है ?

(A) पट्टाभिसीतामैया
(B) अशोक मेहता
(C) जेम्सं आउट्रम
(D) राबर्ट्स

 Answer ⇒ B

89. क्रान्ति के दमन के बाद कौन क्रान्तिकारी नेता नेपाल गया ?

(A) नाना साहब
(B) बेगम हजरत महल
(C) ‘A’ और ‘B’ दोनों
(D) इनमें से कोई नहीं

 Answer ⇒ C

90. महात्मा गाँधी का जन्म हुआ –

(A) 2 अक्टूबर, 1869 गुजरात
(B) 2 अक्टूबर, 1966 कोलकाता
(C) 2 अक्टूबर, 1869 राजस्थान
(D) इनमें से कोई नहीं

 Answer ⇒ A

91. महात्मा गाँधी के राजनीतिक गुरु थे –

(A) फिरोजशाह
(B) लाजपत राय
(C) गोपाल कृष्ण गोखले
(D) हेनरी

 Answer ⇒ C

92. महात्मा गाँधी दक्षिण अफ्रीका से भारत वापस आये –

(A) 1914 में
(B) 1909 में
(C) 1915 में
(D) 1890 में

 Answer ⇒ C

93. चम्पारण सत्याग्रह का सम्बन्ध किस राज्य से है ?

(A) बिहार
(B) उत्तर प्रदेश
(C) मध्य प्रदेश
(D) महाराष्ट्र

 Answer ⇒ A

94. चौरी-चौरा काण्ड कब हुआ ?

(A) 5 फरवरी, 1922
(B) 16 फरवरी, 1922
(C) 20 मार्च, 1922
(D) 8 अप्रैल, 1922

 Answer ⇒ A

95. 1920 में किस महान नेता की मृत्यु हुई ?

(A) महात्मा गाँधी
(B) फिरोजशाह
(C) बालगंगाधर तिलक
(D) इनमें से कोई नहीं

 Answer ⇒ C

96. ‘करो या मरो’ का नारा दिया

(A) गाँधीजी
(B) तिलक
(C) गोखले
(D) सुभाषचन्द्र

 Answer ⇒ A

97. “दिल्ली चलो’ का नारा दिया .

(A) सुभाषचन्द्र बोस
(B) गाँधीजी
(C) लाला लाजपतराय
(D) गोपाल कृष्ण गोखले

 Answer ⇒ A

98. ‘सर’ की उपाधि किसने वापस की थी ?

(A) महात्मा गाँधी
(B) बालगंगाधर तिलक
(C) रवीन्द्र नाथ टैगोर
(D) जवाहरलाल नेहरू

 Answer ⇒ C

99. नमक कानून किसने तोड़ा ?

(A) मोतीलाल नेहरू
(B) महात्मा गाँधी
(C) मंदन मोहन मालवीय
(D) चन्द्रशेखर आजाद

 Answer ⇒ B

100. फ्रांसिस बुकानन कौन था ?

(A) सैनिक
(B) गायक
(C) अभियन्ता
(D) सर्वेक्षक

 Answer ⇒ D

खण्ड-ब (गैर-वस्तुनिष्ठ प्रश्न)

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न संख्या 1 से 30 तक लघु उत्तरीय हैं। इनमें से किन्हीं 15 प्रश्नों के उत्तर दें। प्रत्येक प्रश्न के लिए 2 अंक निर्धारित है। अधिकतम 50 शब्दों में दें।

1. सिन्धु घाटी सभ्यता को हड़प्पा संस्कृति क्यों कहते हैं ?

2. महाजनपद से आप क्या समझते हैं ?

3. महाभारत कालीन भारतीय स्त्रियों की स्थिति पर टिप्पणी लिखिए।

4. गौतम बुद्ध के जीवन एवं उपदेशों का वर्णन करें।

5. बौद्ध संगीतियाँ क्यों बुलाई गई ? चतुर्थ बौद्ध संगति का क्या महत्त्व है ?

6. सिकन्दर भारत पर आक्रमण क्यों करना चाहता था ?

7. चन्द्रगुप्त द्वितीय विक्रमादित्य की उपलब्धियों का वर्णन करें।

8. मनसबदारी व्यवस्था की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन करें।

9. अकबर की धार्मिक नीति की समीक्षा करें।

10. मुगलकालीन केन्द्रीय प्रशासन की मुख्य विशेषताओं का वर्णन करें।

11. सुलह-ए-कुल से आप क्या समझते हैं ?

12. विजय नगर साम्राज्य की स्थापना किसने और कैसे की ?

13. यूरोपीय व्यापारिक कम्पनियों ने भारत में नगरीकरण को कैसे बढ़ावा दिया ?

14. 1857 के विद्रोह का तात्कालिक कारण क्या था ?

15. गाँधीजी 1917 में चम्पारण क्यों गये ? वहाँ उन्होंने क्या किया?

16. साइमन कमीशन परं एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखें।

17. माउण्टबेटन प्लान क्या था ?

18. संविधान सभा का गठन कैसे हुआ ?

19. भारत छोड़ो आंदोलन की व्याख्या करें।

20. संघ सूची, राज्य सूची तथा समवर्ती सूची का संक्षिप्त वर्णन करें।

21. भारत विभाजन के बाद सांप्रदायिक दंगे क्यों भड़के ?

22. डॉ. राजेन्द्र प्रसाद पर संक्षिप्त नोट लिखिए।

23. महालवाड़ी व्यवस्था के दोष बताइए।

24. अंतरिम सरकार की असफलता का क्या कारण था ?

25. काँग्रेस के लाहौर अधिवेशन का महत्वपूर्ण पक्ष क्या था ?

26. जवाहरलाल नेहरू का अति संक्षिप्त परिचय दीजिए।

27. 1931 ई. के गाँधी इरविन समझौता का क्या परिणाम निकला ?

28. संविधान सभा का गठन कैसे हुआ ? संविधपान सभा में उठाए गए महत्त्वपूर्ण मुद्दों का उल्लेख करें।

29. कांग्रेस ने क्रिप्स प्रस्तावों को क्यों अस्वीकार कर दिया ?

30. महात्मा गाँधी की तुलना अब्राहम लिंकन से क्यों की जाती है…?

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न संख्या 31 से 38 तक दीर्घ उत्तरीय प्रश्न हैं। इनमें से किन्हीं 4 प्रश्नों का उत्सर दें। प्रत्येक प्रश्न के लिए 5 अंक निर्धारित हैं। अधिकतम -100 शब्दों में उत्तर दें।

31. हड़प्पा सभ्यता के पतन के प्रमुख कारणों का वर्णन कीजिए।

32. अशोक ने बौद्ध धर्म के प्रसार में क्या योगदान दिया ?

33. चन्द्रगुप्त मौर्य की जीवनी एवं उपलब्धियों की विवेचना करें।

34. कनिष्क प्रथम की जीवनी एवं उपलब्धियों का विवरण दें।

35. भक्ति आन्दोलन के प्रमुख परिणामों (प्रभावों) का वर्णन करें।

36. अलाउद्दीन खिलजी के प्रशासनिक सुधारों की आलोचनात्मक विवेचना करें।

37. प्लासी युद्ध के कारणों एवं परिणामों का वर्णन करें।

38. 1857 ई. के विद्रोह के कारणों की विवेचना करें।

खण्ड-ब (गैर वस्तुनिष्ठ प्रश्न)

लघु उत्तरीय प्रश्न

1. सर्वप्रथम दयाराम साहनी और माधो स्वरूप वत्स ने 1921 में पंजाब के माण्टगोमरी जिले में हड़प्पा का पता लगाया। तत्पश्चात् राखालदास बनर्जी ने 1922 ई. में हड़प्पा से लगभग 660 किमी की दूरी पर सिन्धु प्रदेश के लरकाना जिले में मोहनजोदड़ो नामक स्थान की खुदाई करके इस सभ्यता की खोज की। जब मोहनजोदड़ो और हड़प्पा में खुदाई की गयी तो दोनों स्थलों पर एक-जैसी वस्तुएँ ही प्राप्त हुईं। अतः सर जॉन मार्शल तथा कतिपय अन्य विद्वानों ने इसे सिन्धु सभ्यता का नाम दिया, किन्तु बाद में जब रोपड़, रंगपुर, कालीबंगा, लोथल. धौलावीरा, बनमाली, बेट द्वारिका में हड़प्पा से मिलती-जुलती वस्तुएँ प्राप्त हुई तो इसे हड़प्पा सभ्यता कहना अधिक उपयुक्त समझा गया क्योंकि अधिकांश स्थान सिन्धु और उसकी सहायक नदियों के क्षेत्र से बाहर थे।

2. “लगभग एक सहस्र ईस्वी पूर्व से पाँच सौ ईस्वी पूर्व तक के युग को भारतीय इतिहास में जनपद या महाजनपद युग कहा जा सकता है।” जिस प्रदेश में एक जन स्थायी रूप से बस गया, वही उसका जनपद (राज्य) हो गया। प्रारम्भ में जनपद में किसी एक वर्ग विशेष के मनुष्य ही रहते थे। अत: उनका जीवन एक ही जातीय, राजनीतिक एवं सांस्कृतिक परम्परा के ऊपर संगठित था, परंतु कालांतर में अन्य वर्ग एवं जातियों के लोग भी आकर उनके जनपदों में बसने लगे। इससे सांस्कृतिक आदान-प्रदान तो हुआ, परंतु बहुत समय तक राजसत्ता एकमात्र आदि जन के प्रतिनिधियों के हाथ में रही। प्रत्येक जनपद में बहुसंख्यक गाँव और नगर होते थे। काशिकाकार ने लिखा है कि ग्रामों का समुदाय ही जनपद है। धीरे-धीरे जनपदों की संख्या कम होने लगी। छोटे जनपद बड़े जनपदों में परिवर्तित होने लगे। इस भाँति देश में महाजनपद काल का उदय हुआ। महात्मा बुद्ध के आविर्भाव के पूर्व भारतवर्ष 16 महाजनपदों में विभक्त था। बौद्ध ग्रंथ अंगुत्तरनिकाय में इनके नाम निम्न प्रकार मिलते हैं-1. अंग, 2: मगध, 3. काशी, 4. कोशल, 5. वज्जि, 6. मल्ल, 7. चेदि, 8. वत्स, 9. कुरु, 10. पांचाल, 11. मत्स्य, 12. शूरसेन, 13. अस्सक, 14. अवन्ति, 15. गांधार, 16. कम्बोज।

3. महाभारतकालीन स्त्रियाँ (Women of Mahabharat-age)
(a) महाभारत काल में घरेलू तथा संन्यासिनियों दोनों तरह की स्त्रियों का विवरण प्राप्त है। रामायण में अत्रि मुनि की पत्नी अनुसूइया का उल्लेख प्राप्त है। इसी ग्रंथ में ‘शबरी’ एक अन्य चर्चित साध्वी है। शबरी महान कृषि मातंग की शिष्या थी तथा पंपा झील के किनारे उसकी कुटिया होती थी। घरेलू स्त्रियों में कौशल्या, सुमित्रा, कैकेयी तथा सीता एवं दासी के रूप में मंथरा का उल्लेख मिलता है।

(b) महाभारत में अनेक महिलाओं का उल्लेख प्राप्त होता है। उदाहरणार्थ सुलभा एक महान विदुषी थी। उपयुक्त वर पाने के लिए उसने संन्यास ले लिया तथा ज्ञान आदान-प्रदान के लिए वह सर्वत्र घूमती रही। गांधारी, कुंती एवं द्रौपदी – आदि घरेलू महिलाओं के सुविदित उदाहरण हैं।

(c) राजा ऋतध्वज की सहचरी ‘मंदालसा’ पुराणों की चर्चित नारियों में एक हैं। वह एक ही साथ विदुशी, संत, नारी तथा कर्त्तव्यशील पत्नी थी। पुराणों की एक और संत नारी महान ऋषि प्रजापति कर्दम की पत्नी और भारतीय दर्शन की संख्या पद्धति के प्रजेता कपिल मुनि की माँ ‘देवहुति’ है। एक घरेलू जीवन व्यतीत करने वाली नारी होने के बावजूद भी अपने ज्ञानी पति एवं पुत्र के साथ शास्त्रार्थ एवं आध्यात्मिक विषयों पर विचारों का आदान-प्रदान इस क्षेत्र में अद्वितीय प्राप्तियों का प्रतीक है।

4. गौतम बुद्ध बौद्ध धर्म के प्रवर्तक थे। उनका जन्म 563 ई० पू० में शाक्य नामक क्षत्रिय कुल में कपिलवस्तु के निकट नेपाल की तराई में अवस्थित लुम्बिनी में हुआ था। उनके पिता शुद्धोदन कपिलवस्तु के निर्वाचित रांजा और गणतांत्रिक शाक्यों के प्रधान थे। इनके बचपन का नाम सिद्धार्थ था।
बचपन से ही गौतम चिन्तनशील व्यक्ति थे। इनका मन सांसारिक भोग विलास में नहीं लगता था। इनका विवाह यशोधरा से हुआ था तथा इनको एक पुत्र भी था, जिसका नाम राहुल था। एक बार इन्होंने एक वृद्ध, एक रोगी एवं एक मृत व्यक्ति को देखा। इन दृश्यों ने इनके मन में वैराग्य उत्पन्न कर दिया। 29 वर्ष की उम्र में इन्होंने घर छोड़ दिया, जिसे महाभिनिष्क्रमण कहा जाता है। ये ज्ञान की प्राप्ति के लिए जगह-जगह भटकते रहे। अन्त में 35 वर्ष की उम्र में बोधगया में एक पीपल के वृक्ष के नीचे उन्हें ज्ञान प्राप्त हुआ। तब से वे बुद्ध अर्थात् प्राज्ञावान कहलाने लगे। उन्होंने अपना पहला धार्मिक प्रवचन वाराणसी के निकट सारनाथ में दिया जिसे धर्मचक्र प्रवर्तन कहते हैं। वे लगभग 45 वर्षों तक अपने धर्म का प्रचार करते रहे एवं समकालीन सभी वर्ग के लोग उनके शिष्य बने। 483 ई० पू० में पूर्वी उत्तर प्रदेश में कुशीनगर नामक स्थान पर उनकी मृत्यु हुई। इस घटना को महापरिनिर्वाण कहते हैं।
गौतम बुद्ध व्यावहारिक सुधारक थे। वे आत्मा एवं परमात्मा से सम्बन्धित निरर्थक वाद-विवादों से दूर रहे तथा उन्होंने दोनों के अस्तित्व से इनकार किया। उन्होंने कहा कि संसार दुःखमय है और इस दु:ख के कारण तृष्णा है। यदि काम, लालसा, इच्छा एवं तृष्णा पर विजय प्राप्त कर ली जाये तो निर्वाण प्राप्त हो जायेगा, जिसका अर्थ है कि जन्म एवं मृत्यु के चक्र से मुक्ति मिल जायेगी।
गौतम बुद्ध ने निर्वाण की प्राप्ति का साधन अष्टांगिक मार्ग को माना है। ये आठ साधन हैं-सम्यक् दृष्टि, सम्यक् संकल्प, सम्यक् वाक्, सम्यक् कर्म, सम्यक् आजीव, सम्यक् व्यायाम, सम्यक् स्मृति और सम्यक् समाधि। उन्होंने कहा कि न तो अत्यधिक विलाप करना चाहिए और न अत्यधिक संयम ही बरतना चाहिए। वे मध्यम मार्ग के प्रशंसक थे। उन्होंने सामाजिक आचरण के कुछ नियम निर्धारित किये थे जैसे-पराये धन का लोभ नहीं करना चाहिए, हिंसा नहीं करनी चाहिए, नशे का सेवन नहीं करना चाहिए, झूठ नहीं बोलना चाहिए तथा दुराचार से दूर रहना चाहिए।

5. गौतम बुद्ध के महापरिनिर्वाण के पश्चात् समय-समय पर बौद्ध धर्म की व्याख्या हेतु अनेक बौद्ध सभाओं का आयोजन किया गया जिन्हें संगीति के नाम से जाना जाता है।

चतर्थ बौद्ध संगीति :  समय – प्रथम शताब्दी
                                स्थान – कुंडलवन (कश्मीर)
                                शासक – कनिष्क (कुषाण वंश)
                               अध्यक्ष – वसुमित्र
                               उपाध्यक्ष – अश्वघोष

महत्त्व – इस संगीति का आयोजन इस आशय से किया गया था कि बौद्धों के मतभेदों को दूर किया जा सके। इस संगीति में महासांधिकों को बोलबाला रहा। त्रिपिटक पर प्रमाणिक भास्य ‘विभाषा शास्त्र’ की रचना इसी संगीति में हुई। इस संगीत के पश्चात् ही बौद्ध अनुयायी हीनयान तथा महायान दो समुदायों में ‘ विभाजित हो गये।

6. भारत पर सिकन्दर के आक्रमण का उद्देश्य –
(i) भारत पर सिकन्दर का आक्रमण उसकी विश्व योजना का एक भाग था। समस्त यूनान पर अधिकार करने के बाद दूसरे साम्राज्य पर उसकी विजयों ने उसकी लालसा को बढ़ाया।
(ii) भारत की आर्थिक सम्पन्नताओं की उसे जानकारी रही होगी और सम्भवतः धन प्राप्ति की लालसा में उसने आक्रमण का निश्चय किया था।
(iii) पश्चिमोत्तर भारत के राज्यों की पारस्परिक शत्रुता तथा तक्षशिला के शासक अम्भी द्वारा पोरस के विरुद्ध सहायता की याचना ने सिकन्दर को भारत पर आक्रमण के लिए प्रोत्साहित किया।
(iv) भौगोलिक ज्ञान की आकांक्षा ने उसे भारत पर आक्रमण को प्रोत्साहित किया।

7. चंद्रगुप्त विक्रमादित्य (चंद्रगुप्त द्वितीय), समुद्रगुप्त का पुत्र था। उसने 380 ई० से 410 ई० तक शासन किया।
सबसे पहले उसने बंगाल पर अपनी विजय पताका फहराई। इसके पश्चात् वल्कीक जाति और अति गणराज्य पर विजय प्राप्त की। उसकी सबसे महत्वपूर्ण सफलताएँ थीं – मालवा, काठियावाड़ और गुजरात। शकों को हराकर उसने विक्रमादित्य की पद्वी धारण की। संस्कृत का महान कालिदास उसी के दरबार में रहता था। उसके शासन काल में प्रजा सुखी और समृद्ध तथा सुव्यवस्थित थी।

8. अकबर ने वैज्ञानिक दृष्टिकोण से मनसबदारी व्यवस्था का प्रवर्तन किया। यह दशमलव प्रणाली पर आधारित था। मनसबदार को दो पद जात एवं सवार प्रदान किए जाते थे। ब्लाकमैन के अनुसार, एक मनसबदार को अपने जितने सैनिक रखने पड़ते थे वह जात का सूचक था। वह जितने घुड़सवार रखता था वह सवार का सूचक था।
40 से 500 तक का मनसबदार ‘मनसबदार’ कहलाता था। 500 से 2500 का मनसबदार अमीर कहलाता था। 2500 से अधिक का मनसबदार अमीर एक उम्दा कहलाता था। मनसबदारों को वेतन में नकद रकम मिलता था। कभी-कभी वेतन में जागीर भी दी जाती थी। इस प्रकार मनसबदारी व्यवस्था मुगल सेना का प्रमुख आधार बन गयी। उसने मुगल साम्राज्य का विस्तार एवं सुव्यवस्था की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

9. अकबर की धार्मिक नीति की विवेचना निम्नलिखित है –

(i) आरम्भ में अकबर एक कट्टरपंथी मुसलमान था परंतु बैरम खाँ, अब्दुल रहीम खानखाना, फैजी, अबुल फजल, बीरबल जैसे उदार विचारों वाले लोगों के सम्पर्क से उसका दृष्टिकोण बदल गया। हिंदू रानियों का भी उस पर प्रभाव पड़ा। अब वह अन्य धर्मों के प्रति उदार हो गया था।
(ii) 1575 ई. में उसने इबादतखाना बनवाया, जिसमें विभिन्न धर्मों के विद्वानों को अपने-अपने विचार प्रकट करने की पूर्ण स्वतंत्रता थी। अक्सर बहस करते समय मौलवी गाली-गलौच पर उतर जाते थे। अत: अकबर को इस्लाम धर्म में रुचि कमहो गई।
(iii) वह स्वयं तिलक लगाने लगा और गौ की पूजा करने लगा। अत: कट्टरपंथी मुसलमान उसे काफिर कहने लगे थे।
(iv) 1579 ई. में उसने अपने नाम का खुतवा पढ़वा कर अपने आप को धर्म का प्रमुख घोषित कर दिया। इससे उलेमाओं का प्रभाव कम हो गया।
(v) अंत में उसने सभी धर्मों का सार लेकर नया धर्म चलाया, जिसे दीन-ए-इलाही के नाम से जाना जाता है। अपने धर्म को उसने किसी पर थोपने का प्रयास नहीं किया।
(vi) उसने रामायण, महाभारत आदि कई हिन्दु ग्रंथों का भी फारसी में अनुवाद करवाया। वह धर्म को राजनीतिक से दूर रखता था।
(vii) फतेहपुर सीकरी में एक महल, जोधाबाई का महल में भारतीय संस्कृति की स्पष्ट झलक देखते हैं।

10. मुगलकालीन केन्द्रीय प्रशासन की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित प्रकार थी –
(i) वकील – इसे बजीर भी कहा जाता था। यह केन्द्रीय सरकार के समस्त विभागों का अध्यक्ष था। अकबर ने बैरम खाँ के पश्चात् इस पद का अंत कर दिया।
(ii) दीवान या वित्तमंत्री – आर्थिक विषयों में यह बादशाह का प्रतिनिधि था।
(iii) मीरबख्शी – यह सेना संबंधी सभी कार्य देखता था। यह सेना, मनसबदार एवं घोड़ों संबंधी व्यवस्था देखता था।
(iv) प्रधान काजी – यह प्रांत, जिला एवं नगर के काजियों की नियुक्ति करता था। फौजदारी मुकदमों को देखता था।
(v) प्रांतीय शासन – सुबेदार प्रांत अथवा सूबे का प्रमुख होता था। दीवान सूबे में वित्त व्यवस्था देखता था। कोतवाल सूबे की आंतरिक सुरक्षा देखता था।
(vi) जिला शासन – प्रत्येक प्रांत जिलों में विभक्त था। फौजदार जिले का प्रमुख अधिकारी था।

11. सुलह-ए-कल की नीति – मुगल साम्राज्य में भिन्न-भिन्न नृजातीय एवं धार्मिक संप्रदाय को माननेवाले निवासी थे। बादशाह का यह उत्तरदायित्व था कि वह इन सबके मध्य एकता, न्याय और शांति बनाए रखें। एक प्रबुद्ध शासक का यह दायित्व था कि वह विभेद की नीति त्याग कर शांति और सामंजस्य की नीति अपनाए। अबुल फजल इसे सुलह-ए-कल अर्थात् पूर्ण शांति की नीति बतलाता है। इसके अनुसार, सभी धर्मों और मतों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता थी, परंतु उन्हें एक-दूसरे पर आघात करने अथवा राज्य की शांति को भंग करने का अधिकार नहीं था। सुलह-ए-कल की नीति के अनुसार, अकबर ने धार्मिक, सामाजिक और सांस्कृतिक एकीकरण के लिए प्रयास किए गए। उसने अपने प्रशासन का उद्देश्य साम्राज्य में रहने वाले सभी लोगों का कल्याण करना एवं उन्हें न्याय तथा समान अवसर प्रदान करना बनाया।

12. विजयनगर राज्य की स्थापना यादव वंशी संगम के दो पुत्र-हरिहर और बुक्का राय ने की, जो वारंगल के राजा प्रताप रुदद्रेव के यहाँ नौकरी करते थे। उस समय उत्तरी भारत पर मुहम्मद तुगलक राज करता था। जब मुसलमानों ने दक्षिणी भारत को जीत लिया तो इन दोनों भाइयों को बंदी बनाकर दिल्ली लाया गया। मुसलमानों के अत्याचारों के कारण दक्षिणी भारत में अशांति फैल गई थी। अतः सुल्तान मुहम्मद तुगलक ने स्थिति पर नियंत्रण करने के लिए हरिहर और बुक्का राय को रायचूर दोआब का सामंत बनाकर भेजा। उनके गुरु माधव विद्यारण्य ने उन्हें हिन्दू जनता की रक्षा के लिए स्वतंत्र राज्य स्थापित करने की प्रेरणा दी। उन्होंने अपने गुरु के नाम पर तुंगभद्रा नदी के किनारे 1336 ई. में विद्यानगर अथवा विजयनगर की नींव रखी जो बाद में एक विशाल साम्राज्य बन गया।

13. मुगल साम्राज्य के पतन के कारण मुगल राजधानी वाले केन्द्र विखंडित होने लगे। नई क्षेत्रीय ताकतों का विकास होने लगा। ग्रामीण जनता शहरों की
और आने लगी। यूरोपीय कंपनियों ने अपनी सुविधा के लिए बिजली, सडक, यातायात बढ़ाए। इससे लोग इन क्षेत्रों में बसने लगे। इस प्रकार यूरोपीय कंपनियों ने नगरीकरण को बढ़ावा दिया।

14. 1857 के विद्रोह का तात्कालिक कारण कारतूसों में लगी सूअर और गाय की चर्बी थी। नयी स्वफील्ड बंदूकों में गोली भरने से पूर्व कारतूस को दाँत से छीलना पड़ता था। हिन्दू और मुसलमान दोनों ही गाय और सूअर की चर्बी को अपने-अपने धर्म के विरुद्ध समझते थे। अतः उनका भड़कना स्वाभाविक था।

26 फरवरी, 1857 ई० को बहरामपुर में 19वीं नेटिव एनफैण्ट्री ने नये कारतूस प्रयोग करने से मना कर दिया। 19 मार्च, 1857 ई० को चौंतीसवीं नेटिव एनफैण्ट्री के सिपाही मंगल पाण्डेय ने दो अंग्रेज अधिकारियों को मार डाला। बाद में उसे पकड़कर फाँसी दे दी गई। सिपाहियों का निर्णायक विद्रोह 10 मई, 1857 को मेरठ में शुरू हुआ।

15. 19वीं सदी के प्रारम्भ में गोरे बागान मालिकों ने किसानों से एक अनुबंध किया जिसके अनुसार किसानों को अपनी जमीन के 3/20वें हिस्से में नील की
खेती करना अनिवार्य था। इस ‘तिनकठिया’ पद्धति कहा जाता था। किसान इस अनुबंध से मुक्त होना चाहते थे। 1917 में चम्पारण के राजकुमार शुक्ल के अनुरोध पर गाँधीजी चम्पारण पहुँचे। गाँधीजी के प्रयासों से सरकार ने चम्पारण । के किसानों की जाँच हेतु एक आयोग नियुक्त किया। अंत में गाँधीजी की विजय हुई।

16. 1919 ई. के एक्ट के अनुसार यह निर्णय हुआ था कि प्रत्येक दस वर्षके बाद सुधारों का मूल्यांकन करने के लिए इंग्लैंड से एक कमीशन भारत आयेगा। इसलिए 1928 ई. में जॉन साइमन की अध्यक्षता में एक आयोग (Commission) भारत आया था। इस आयोग में एक भी भारतीय न था, जबकि इसका उद्देश्य भारत के हितों की देखभाल करना था। अतः भारतीयों ने इसका स्थान-स्थान पर बहिष्कार और जोरदार विरोध किया। जहाँ भी यह आयोग गया, वहाँ पर भारतीयों ने इसका काले झंडे दिखाकर ‘साइमन वापस जाओ’ के नारों के साथ बहिष्कार किया। अंग्रेजों ने प्रदर्शकारियों का दमन बड़ी क्रूरता से किया। जब यह आयोग लाहौर पहुँचा, तो लाला लाजपतराय ने प्रदर्शन कर रहे जुलूस का नेतृत्व किया। पुलिस के भीषण लाठी प्रहार में लालाजी को कई गहरी चोटें लगी जिनके फलस्वरूप बाद में उनकी मृत्यु हो गई। इसी तरह से लखनऊ में जुलूस का नेतृत्व पंडित जवाहरलाल नेहरू कर रहे थे। उन पर भी जब लाठी प्रहार होने लगा, तो गोविंद बल्लभ पंत ने तुरंत अपना सिर उनके सिर पर रख दिया जिसके फलस्वरूप पंतजी को पक्षाघात हो गया और जीवन भर वे अपनी । गर्दन सीधी रखकर न बैठ पाये।

17. 3 जून, 1947 को पेश की गई आजादी की कुंडली को थर्ड जून प्लान और बाद में माउंटबेटन प्लान के नाम से जाना गया। इसी दस्तावेज को भारत । स्वतंत्रता अधिनियम 1947 के रूप में ब्रिटेन के राज परिवार ने मान्यता दी। ब्रिटिश सरकार ने 20 फरवरी, 1947 के यह घोषणा की थी कि भारत को जून 1948 तक स्वतंत्र कर दिया जाएगा। ऐसे में भारत के तत्कालीनं वायसराय लॉर्ड माउंटबेटन पर जल्द ही किसी निर्णय पर पहुँचने का दबाव था। मुस्लिम लीग और काँग्रेस के नेताओं के साथ लंबे विचार विमर्श के बाद माउंटबेटेन ने 3 जून, 1947 को अपनी एक योजना पेश की। इस योजना में भारत को दो देशों में विभाजित करने की योजना का खाका पेश किया गया था। इस योजना में भारत-पाकिस्तान बँटवारे के लिए तीन बातों के मुख्य तौर पर शामिल किया गया। योजना का पहला बिंदु था कि भारत के बंटवारे के सिद्धांत को ब्रिटेन की संसद द्वारा स्वीकार किया जाएगा। दूसरा ‘बनने वाली सरकारों को डोमिनियम स्टेट (अर्ध स्वायत्त राज्य व्यवस्था) का दर्जा दिया जाएगा और तीसरा उसे ब्रिटिश राष्ट्रमंडल से अलग होने या शामिल रहने का फैसला करने का अधिकार मिलेगा।

18. संविधान निर्मात्री सभा का गठन ‘कैबिनेट मिशन’ की योजना के आधार पर हुआ था। कैबिनेट मिशन योजना में निश्चित किया गया था कि भारतीय संविधान के निर्माण हेतु ‘परोक्ष निर्वाचन’ के आधार पर एक संविधान सभा की स्थापना की जाये, जिसमें कुल 389 सदस्य हो जिसमें से 292 ब्रिटिश प्रान्तों के प्रतिनिधि, 4 चीफ कमीशनर श्रेणी के प्रतिनिधि और 93 देसी रियासतों के प्रतिनिधि हों।
वस्तुतः संविधान सभा का गठन तीन चरणों में पूरा हुआ। सर्वप्रथम ‘कैबिनेट मिशन योजना’ के अनुसार संविधान सभा के सदस्यों का निर्वाचन हुआ एवं कुल 389 सदस्यों की संख्या निश्चित की गई।
द्वितीय चरण का आरंभ 3 जून, 1947 को ‘विभाजन योजना’ से होता है जिसके अनुसार संविधान सभा का पुनर्गठन किया गया जिसमें 324 प्रतिनिधि होने थे।
तृतीय चरण देसी रियासतों से संबंधित था और उनके प्रतिनिधि संविधान सभा में अलग-अलग समय में सम्मिलित हुए। हैदराबाद ही एक ऐसी रियासत थी, जिसके प्रतिनिधि संविधान सभा में सम्मिलित नहीं हुए।

19. भारत छोड़ो आंदोलन का आरंभ 1942 ई. में हुआ। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में मील का पत्थर है। इसने कमजोर हो रही ब्रिटिश शक्ति को भारत छोड़ने पर मजबूर कर दिया। भारत छोड़ो आंदोलन के महत्वपूर्ण कारण निम्नलिखित थे –

(i) द्वितीय विश्वयुद्ध – द्वितीय विश्वयुद्ध के कारण बढ़ती महँगाई और जरूरी वस्तुओं की कमी से जनता की परेशानी। सरकार इन कमियों को दूर करने की जगह व्यर्थ में युद्ध में उलझी हुई थी जो कहीं से भी भारतीयों के हित में नहीं था।

(ii) क्रिप्स मिशन की असफलता – इस मिशन ने भारतीयों को पूर्ण स्वराज्य के बदले डोमिनियम स्टेटस देने की बात कह भारतीयों को निराश किया। 28 अगस्त, 1942 ई० में बंबई में करो या मरो के नारे के साथ गाँधीजी ने “भारत छोड़ो’ आंदोलन का बिगुल फूंका। जल्दी ही आंदोलन देश भर में फैल गया। प्रमुख नेता गिरफ्तार कर लिये गये परंतु आंदोलन थमा नहीं।
इस आंदोलन का महत्त्वपूर्ण परिणाम रहा कि इसमें समाज के सभी वर्गों की सहभागिता थी। इस आंदोलन के फलस्वरूप अधिराज्य की जगह पूर्ण स्वतंत्रता की माँग प्रबल हो गई। अब अंग्रेजों की नींव हिल चुकी थी और वे भारत छोड़ने की ओर अग्रसर होने लगे।

20. संघ सूची में वे विषय रखे जो राष्ट्रीय महत्त्व के हैं तथा जिनके बारे में देश भर में एक समान नीति होना आवश्यक है। जैसे – प्रतिरक्षा, विदेश नीति, डाक-तार व टेलीफोन, रेल मुद्रा, बीघा व विदेशी व्यापार इत्यादि। इस सूची में कुल 35 विषय है।

राज्य सूची में प्रादेशिक महत्त्व के विषय सम्मिलित किये गये थे जिन पर कानून बनाने का अधिकार राज्य सरकारों को दिया गया। राज्य सूची के प्रमुख विषय हैं-कृषि, पुलिस, जेल, चिकित्सा, स्वास्थ्य, सिंचाई व मालगुजारी इत्यादि। इन विषयों की संख्या 66 थी।
समवर्ती सूची में 47 विषय थे। इस सूची के विषयों पर केन्द्र तथा राज्यों दोनों कानून बना सकते हैं. किंतु किसी विषय पर यदि संसद और राज्य के विधान मंडल द्वारा बनाए गए कानूनों में विरोध होता है तो संसद द्वारा बनाए गए कानून ही मान्य होंगे। इस सूची के प्रमुख विषय हैं-बिजली, विवाह कानून, मूल्य नियंत्रण, समाचार-पत्र, छापेखाने, दीवानी कानून, हिंसा, वन, जनसंख्या नियंत्रण और परिवार नियोजन आदि।

21. भारत विभाजन में देश में होने वाले सांप्रदायिक दंगों का भी बहुत बड़ा हाथ था। पाकिस्तान की माँग मनवाने के लिए मुस्लिम लीग की ‘सीधी कार्यवाही’ के कारण सारा देश गृहयुद्ध की आग में जलने लगा था। हत्याएँ, लूटमार, आगजनी, बलात्कार जैसे शर्मनाक कार्य हर कुचे और हर बाजार में देखे जा -सकते थे। ये घटनाएँ दिन-प्रतिदिन बढ़ती ही चली जा रही थीं। इन घटनाओं के प्रति नेहरूजी को संकेत करते हुए लेडी माउंटबेटन ने कहा था, “सोचती हूँ कि हजारों मासूमों, बेगुनाहों का रक्त बहाने से क्या यह ज्यादा अच्छा नहीं कि मुस्लिम लीग की बात मान ली जाए।” दसरी ओर माउंटबेटन ने पटल का भी ये दंगे रोकने के लिए भारत-विभाजन पर राजी कर लिया। फलस्वरूप भारत का विभाजन कर दिया गया।

22. सविधान का निर्माण होने पर 26 नवम्बर, 1949 को डॉ. राजेन्द्र प्रसाद,अध्यक्ष संबिधान सभा, ने उस पर हस्ताक्षर करते हुए इन बिंदुओं पर दुःख प्रकट किया था।
(i) भारत का संविधान मूल रूप से अंग्रेजी भाषा में है।
(ii) इसमें किसी भी पद पर कोई भी शैक्षणिक योग्यता नहीं रखी गई है।
(iii) भारत में प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ही बनाए गये।

23. महालवाड़ी प्रणाली का सबसे बड़ा दोष यह था कि गाँव के बड़े लोग जैसे नम्बरदार आदि अपने विशेषाधिकारों का अपने स्वार्थ के लिए दुरूपयोग करते थे क्योंकि ग्राम सभा की ओर से इन्हीं लोगों ने सरकार से समझौता किया था। अतएव लगान के सम्बन्ध में भी सरकार इन्हीं से बात करती थी। अत: नम्बरदार एवं अन्य बड़े लोग सरकार एवं ग्रामीणों के मध्य मध्यस्थ का कार्य करते थे। मध्यस्थ गाँवों की बहुत सारी जमीन अपने कब्जे में कर लेते थे। गाँव के छोटे किसानों का सरपंच लोग क्रूरता से दमन करते थे। वास्तविक रूप से छोटे किसानों को बहुत मामूली-सा मुआवजा दिया जाता था और शेष सम्पूर्ण उपज बड़े-बड़े मालिकों के पास चली जाती थी।

24. अंतरिम सरकार की असफलता – अंतरिम सरकार में काँग्रेस और मुस्लिम लीग दोनों दलों को साथ-साथ कार्य करने का अवसर मिला; परंतु लीग काँग्रेस के हर कार्य में कोई-न-कोई रोड़ा अटका देती थी। फलस्वरूप देश में रचनात्मक कार्य किये जाने की बजाय सांप्रदायिकता पर आधारित रक्तपात और लूटमार के बेहूदा कार्य हुए। ऐसे परिणामों को देखकर काँग्रेस ने यह पूरी तरह निर्णय कर लिया कि लीग के साथ मिलकर कार्य करने से देश का विकास संभव नहीं है। अतः उन्होंने ‘एक आवश्यक बुराई’ के रूप में भारत विभाजन स्वीकार कर लिया।

25. सरकार से निराश होने के बाद लाहौर अधिवेशन (दिसम्बर, 1929) का वातावरण अत्यन्त उत्तेजनापूर्ण था। इस अधिवेशन के अध्यक्ष पं. जवाहरलाल नेहरू थे। सभी के दिलों में खुले संघर्ष की भावना बलवती हो रही थी। काँग्रेस ने यह घोषणा की कि वर्तमान स्थिति में गोलमेज सम्मेलन में सम्मिलित होने का कोई लाभदायक परिणाम नहीं होगा। काँग्रेस ने पूर्ण स्वराज की घोषणा की और 31 दिसम्बर, 1929 ई. की अर्द्ध रात्रि में स्वराज झण्डा फहराया। उसने देश में सरकार के खिलाफ सविनय अवज्ञा आन्दोलन चलाने का भी निश्चय किया। आगामी चुनावों में भाग न लेने का निश्चय किया गया और सभाओं, सरकारों, समितियों आदि स्थानों से त्यागपत्र देने की घोषणा की गयी। अखिल भारतीय काँग्रेस कमेटी को सविनय अवज्ञा आन्दोलन प्रारम्भ करने का अधिकार सौंपा गया।

26. पंडित जवाहरलाल नेहरू का जन्म 14 नवम्बर, 1889 ई. को इलाहाबाद में हुआ था। इनके पिता का नाम मोतीलाल नेहरू था। इन्होंने 1947 ई. के आस-पास भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन के सर्वोच्च नेता के रूप में उभरे और उन्होंने स्वतंत्र भारत के प्रथम प्रधानमंत्री के ख्याति प्राप्त करते हुए 1964 ई० तक देश की सेवा की।

27. गाँधी इरविन समझौता (1931 ई.) के निम्नलिखित परिणाम हुए –
(i) सरकार द्वारा सभी राजनैतिक कैदियों की रिहाई। 
(ii) आंदोलन के दौरान जब्त की गई व्यक्तिगत संपत्ति को सरकार द्वारा वापस करना।
(iii) दमनकारी नीति बंद करना।
(iv) भारतीयों को नमक बनाने की छूट देना।
(v) गाँधीजी द्वारा सविनय अवज्ञा आंदोलन वापस लेना, चाहिए।

28. जिस समय भारत में संविधान के निर्माण के विषय में विचार-विमर्श हो । रहा था, उस समय देश में एक राजनीतिक अस्थिरता तथा अविश्वास का वातावरण था। 1946 के उस माहौल के प्रमुख भारतीय नेता इस बात से अवगत थे कि भारत की जनता स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए अब दृढ़ प्रतिज्ञ है तथा अंग्रेजों को शीघ्र ही भारत को आजाद करना होगा। पंडित जवाहरलाल नेहरू के शब्दों में, “ब्रिटेन दो से पाँच वर्षों में भारत छोड़ देगा।”
ब्रिटिश सरकार भी 1 जनवरी, 1946 को नववर्ष के अवसर पर राज्य सचिव द्वारा दिए गए वक्तव्य तथा कैबिनेट मिशन की घोषणा द्वारा अपना विचार स्पष्ट कर चकी थी। समझौते के लिए उपयुक्त था परन्तु फिर भी भयंकर रक्तपात के पश्चात् ही 15 अगस्त, 1947 को स्वतंत्रता प्राप्त की जा सकी।
ब्रिटिश साम्राज्यवाद तथा भारतीय राष्ट्रवाद का संधर्ष तो 1946 के आरंभ तक समाप्तप्रायः होकर पृष्ठभूमि में चला गया था। अब इस संघर्ष का स्थान ब्रिटिश सरकार, काँग्रेस तथा मुस्लिम लीग के वैचारिक मतभेदों तथा भविष्य सम्बन्धी विचार ने ले लिया था। काँग्रेस तथा मुस्लिम लीग दोनों प्रमुख राजनीतिक दल साम्प्रदायिक तथा पारस्परिक सामंजस्य बैठाने से असफल होते जा रहे थे।
साम्राज्यवाद के पीछे हटने के बाद नये भारत की दिशा क्या होगा ? इस संदर्भ में काँग्रेस की माँग थी कि सर्वप्रथम एक केन्द्रीय इकाई को सत्ता सौंप दी जाए। काँग्रेस मानती थी कि विभाजन यदि आवश्यक है तो उसका निर्णय स्वतंत्रता के पश्चात् होना चाहिए। जिन्ना की जिद थी ‘पहले विभाजन, तब आजादी।

29. सन् 1942 ई० के प्रारम्भ में ही ब्रिटिश सरकार को द्वितीय महायुद्ध प्रयासों में भारतीयों के सक्रिय सहयोग की बुरी तरह आवश्यकता महसूस हुई। ऐसा । सहयोग पाने के लिए उसने कैबिनेट मंत्री सर सटैफोर्ड क्रिप्स के नेतृत्व में मार्च, 1942 ई. में एक मिशन भारत भेजा।
सर स्टैफोर्ड क्रिप्स पहले मजदूर दल (लेबर पार्टी) के उग्र सदस्य और भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन के पक्के समर्थक थे।
क्रिप्स ने घोषणा की कि भारत में ब्रिटिश नीति का उद्देश्य यहाँ, “जितनी. जल्दी सम्भव हो स्वशासन की स्थापना करना था” फिर भी उसकी एवं कांग्रेसी नेताओं की लम्बी बातचीत टूट गई। ब्रिटिश ने नेताओं की यह माँग मानने से इनकार कर दिया कि शासन सत्ता तुरन्त. भारतीयों को सौंप दी जाय। वे इस वायदे से सन्तुष्ट नहीं थे कि भविष्य में भारतीयों को सत्ता सौंप दी जायेगी और फिलहाल वायसराय के हाथों में ही निरंकुश सत्ता बनी रहनी चाहिए।

30. अमेरिकी राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन ने दासों को मुक्त कराने के लिए जीवन भर संघर्ष किया। अमेरिका में दासों के साथ अमानवीय व्यवहार किया जाता था। उन्हें तरह-तरह की यातनायें दी जाती थी एवं उनसे बेगार लिया जाता था। इसमें अधिकांश अश्वेत लोग थे। लिंकन जी को यह सहन नहीं था, उन्होंने संघर्ष करके दासों को दासता के बन्धन से मुक्त कराया। इसी प्रकार महात्मा गाँधी ने भी दक्षिण अफ्रीका में अश्वेतों के लिए संघर्ष किया। दक्षिण अफ्रीका में भी अश्वेतों की स्थिति दयनीय थी। भारत में भी महात्मा गाँधी जी ने दलितों एवं गरीबों के लिए आजीवन संघर्ष किया। लिंकन की भाँति गाँधीजी भी मानवता के सच्चे पुजारी थे।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

31. हड़प्पा सभ्यता के पतन के मुख्य कारणों की चर्चा निम्नलिखित रूप से की जा सकती है –

(i) विदेशी आक्रमण – मोहनजोदड़ो से मिले साक्ष्यों (नरकंकालों के अवशेष, यत्र-तत्र बिखरी अस्थियाँ, आभूषण इत्यादि) के आधार पर कुछ विद्वानों ने सुझाव दिया कि इस नगर का विनाश आक्रमणकारियों ने किया। इन आक्रमणकारियों ने हड़प्पाई राज्य को नष्ट कर दिया। ऋग्वेद का सहारा लेकर ह्वीलर इन आक्रमणकारियों को आर्य मानते हैं एवं हड़प्पाई किलों को नष्ट करने के लिए इंद्र (पुरंदर) को उत्तरदायी मानते हैं। ह्वीलर महोदय ने इस तर्क को आधुनिक विद्वान स्वीकार नहीं करते हैं।

(ii) प्राकृतिक कारण – हड़प्पा सभ्यता के पतन के लिए प्राकृतिक कारणों को भी उत्तरदायी माना गया है। प्राकृतिक कारणों जैसे बड़े पैमाने पर आग का लगना, बाढ़ का प्रकोप, नदियों की जलधारा में परिवर्तन, विवर्तनिक हलचलों, जलवायवी परिवर्तनों, भूमि की आर्द्रता में कमी तथा शुष्कता में विस्तार एवं बड़े स्तर पर जंगलों की कटाई ने सभ्यता पर प्रतिकूल प्रभाव डाला। बड़े पैमाने पर मलेरिया अथवा प्लेग जैसी महामारी में जनसंख्या का बड़ा भाग नष्ट हो गया। इनमें कुछ कारण कुछ विशेष स्थलों के पतन के कारण बन सकते हैं, परन्तु इनसे संपूर्ण सभ्यता नष्ट नहीं हुई।

(iii) प्रशासनिक शिथिलता – ऐसा प्रतीत होता है कि विकसित हड़प्पा संभ्यता के अंतिम चरण तक आते-आते प्रशासनिक संयंत्र ढीला और कमजोर पड़ गया एवं राज्य का अंत हो गया। इसी के परिणामस्वरूप नगर-निर्माण योजना और भौतिक जीवन में प्रयुक्त वस्तुओं के स्वरूप में परिवर्तन आ गया। शहरीपन का स्थान देहातीपन ने ले लिया।

(iv) आर्थिक कारण – हड़प्पा सभ्यता के पतन का सबसे प्रमुख कारण आर्थिक था। कृषि उत्पादन में कमी आई तथा उद्योग-धंधों एवं व्यापार में भी गिरावट आई। सभ्यता के अंतिम चरण में राजनीतिक एवं अन्य कारणों से अंतरदेशीय एवं विदेशी व्यापार समाप्त हो गया जो सिंधु अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार था। आर्थिक निष्क्रियता ने भी अर्थव्यवस्था को दुर्बल बना दिया। लंबे समय तक प्रयुक्त उपकरणों में कोई तकनीकी परिवर्तन नहीं किया गया। फलतः, वे अपनी उपयोगिता खो बैठे। इन कारणों से विकसित हड़प्पा नगरों का स्थान उत्तरकालीन हड़प्पा बस्तियों ने ले लिया।

32. अशोक के बौद्ध-धर्म के प्रसार में निम्नलिखित योगदान दिया –
(i) अशोक ने कलिंग युद्ध के बाद 265 ई० पू० में बौद्ध धर्म ग्रहण किया था। उसने अपने पुत्र महेन्द्र, पुत्री संघमित्रा तथा स्वयं को इस धर्म के प्रचार में लगा दिया था।
(ii) उसने सम्राट होकर भी भिक्षुओं जैसा जीवन बिताया। उसने अहिंसा को अपनाकर शिकार करना, माँस खाना छोड़ दिया था। उसने राजकीय वधशाला में पशु-वध पर रोक लगा दी थी। जनता राजा के आदर्शों पर चलती थी।

(iii) उसने बौद्ध धर्म के नियम स्तम्भों, शिलालेखों आदि पर खुदवाकर ऐसे स्थानों पर लगवा दिये थे कि जहाँ से जनता देखकर उन्हें पढ़ सके और तत्पश्चात् अमल करे।
(iv) उसने लगभग 84000 बौद्ध विहारों और 48000 स्तूपों का निर्माण कराया। यह मुख्य-मुख्य नगरों में स्थापित किये।

(v) उसने कई धार्मिक नाटकों का आयोजन किया जिनमें बौद्ध धर्म पर आचरण । करने पर स्वर्ग की प्राप्ति दिखाई गई थी। अत: बौद्ध धर्म को ग्रहण करने के लिये । जनता प्रेरित हुई।

(vi) बौद्ध धर्म के मतभेदों को दूर करने के लिये अशोक ने 252 ई० पू० में एक विशाल सभा का आयोजन किया था, जिससे लोग इस धर्म की ओरआकर्षित हुए। सम्राट अशोक स्वयं बौद्ध तीर्थों-सारनाथ, कपिलवस्तु एवं कुशीनगर गया। रास्ते में उसने बौद्ध धर्म का प्रचार किया। उसने धर्म महापात्रों की नियुक्ति की, जो देखते थे कि लोग इस धर्म का पालन कर रहे हैं या नहीं।

(vii) जन साधारण तक बौद्ध धर्म की शिक्षाओं को पहुँचाने के लिये पालि भाषा में शिलालेख और बौद्ध साहित्य का अनुवाद कराया था। उसने बौद्ध धर्म का प्रचार करने के लिए कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, गंधार चीन, जापान, सीरिया श्रीलंका व मिश्र आदि देश में भिक्षु भेजे।

(viii) सम्राट ने सम्पूर्ण राजकीय तंत्र बौद्ध धर्म के प्रचार में लगा दिया। सार्वजनिक समारोहों को रोककर उनके स्थान पर बौद्ध उत्सव मनाने प्रारंभ कर दिये। उसने नाचने-गाने तथा मद्यपान पर रोक लगा दी थी तथा लोगों को नैतिक जीवन व्यतीत करने की प्रेरणा दी।

33. चन्द्रगुप्त का जन्म 345 ई. पू. में भोरिय वंश के क्षत्रिय कुल में हुआ था जो सूर्य वंशी शाल्यों की एक शाखा थी और जो नेपाल की तराई में पिप्पलिबिन के प्रजातन्त्र राज्य में शासन करते थे। चन्द्रगुप्त का पिता इन्हीं भोरियों का प्रधान था। दुर्भाग्यवश एक शक्तिशाली राजा ने उनकी हत्या करवा दी और । राज्य भी छीन लिया। चन्द्रगुप्त की माता उन दिनों गर्भवती थी। इस आपत्ति काल में वह अपने सम्बन्धियों के साथ भाग गई और अज्ञात रूप से पाटलिपुत्र  में निवास करने लगी। यहाँ पर अपनी जीविका चलाने तथा अपने राजवंश को गुप्त रखने के लिए यह लोग मयूर-पालकों का कार्य करने लगे इस प्रकार चन्द्रगुप्त… का प्रारम्भिक जीवन मयूर-पालकों के मध्य व्यतीत था।
जब चन्द्रगुप्त बड़ा हुआ तब उसने मगध के राजा के यहाँ नौकरी कर ली और उनकी सेना में भर्ती हो गया। चन्द्रगुप्त बड़ा ही योग्य तथा प्रतिभावान व्यक्ति था। अपनी योग्यता के बल से यह मगध की सेना का सेनापति बन गया। परन्तु कुछ कारणों से मगध का राजा अप्रसन्न हो गया और उसे मृत्यु-दण्ड की आज्ञा दे दी। इन दिनों मगध में नन्द वंश शासन कर रहा था अपने प्राण की रक्षा करने के लिए चन्द्रगुप्त मगध राज्य से भाग गया और उसने नन्द को विनष्ट करने का संकल्प कर लिया।
चाणक्य तथा चन्द्रगुप्त दोनों के उद्देश्य एक ही थे। यह दोनों व्यक्ति नन्द वंश का विनाश करना चाहते थे परन्तु दोनों ही के पास साधनं का आभाव था। संयोगवश इन दोनों ने एक दूसरे की आवश्यकता की पूर्ति कर दी। चाणक्य को एक वीर साहसी तथा महत्वाकांक्षी नवयुवक की आवश्यकता थी जिसकी पूर्ति चन्द्रगुप्त ने कर दी और चन्द्रगुप्त को एक विद्वान अनुभवी कुटनीतिज्ञ की तथा सेना एकत्रित करने के लिए धन की आवश्यकता थी जिसकी पूर्ति चाणक्य ने कर दी। फलत: इन दोनों में मैत्री तथा गठबन्धन हो गया।
अब अपने उद्देश्य की पूर्ति की तैयारी करने के लिए दोनों मित्र विन्ध्यांचल के वनों की ओर चले गये। चाणक्य ने अपना सारा धन चन्द्रगुप्त को दे दिया। इस धन की सहायता से अपने भाड़े की एक सेना तैयार की और इस सेना की सहायता से मगध पर आक्रमण कर दिया परन्तु नन्दों की शक्तिशाली सेना ने उन्हें परास्त कर दिया और मगध से भाग खड़े हुए। अब इन दोनों मित्रों ने अपने प्राणों की रक्षा के लिए फिर पंजाब की ओर प्रस्थान कर दिया। अब इन लोगों ने इस बात का अनुभव किया कि मगध राज्य के केन्द्र पर प्रहार कर उन्होंने बहुत बड़ी भूल की थी। वास्तव में उन्हें इस राज्य के एक किनारे पर उसके सुदूरस्थ प्रदेश पर आक्रमण करना चाहिए था, जहाँ केन्द्रीय सरकार का प्रभाव कम और उसके विरुद्ध असन्तोष अधिक रहता था। इन दिनों यूनानी विजेता सिकन्दर महान पंजाब में ही था और वहाँ के छोटे-छोटे राज्यों को समाप्त कर रहा था। चन्द्रगुप्त ने नन्दों के विरुद्ध सिकन्दर की सहायता लेने का विचार किया अतएव वह सिकन्दर से मिला और कुछ दिनों तक उसके शिविर में रहा। परन्तु चन्द्रगुप्त के स्वतंत्र विचारों के कारण सिकन्दर अप्रसन्न हो गया और उसको वधकर देने की आज्ञा प्रदान की।
चन्द्रगुप्त अपने प्राण बचाकर भाग खड़ा हुआ। अब उसने मगध राज्य के विनाश के साथ-साथ यूनानियों को भी अपने देश से मार भगाने का निश्चय कर लिया । और अपने मित्र चाणक्य की सहायता से अपने. इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए योजनाएँ बनाने लगा।

चन्द्रगुप्त की विजय – सिकन्दर के भारत से चले जाने के उपरान्त भारतियों ने यूनानियों के विरुद्ध आन्दोलन आरम्भ कर दिया। चन्द्रगुप्त के लिए यह स्वर्ण अवसर था और इससे उसने पूरा लाभ उठाने का प्रयत्न किया। उसके क्रांतिकारियों का नेतृत्व ग्रहण किया और यूनानियों को पंजाब से भगाना आरम्भ किया। यूनानी सरदार युडेमान अन्य यूनानियों के साथ भारत छोड़कर भाग गया और जो यूनानी सैनिक भारत में रह गए थे वे तलवार के घाट उतार दिए गए। इस प्रकार चन्द्रगुप्त ने सम्पूर्ण पंजाब पर अपना प्रभुत्व स्थापित कर दिया।
पंजाब पर अपना प्रभुत्व स्थापित कर लेने के उपरान्त चन्द्रगुप्त ने मगध राज्य पर आक्रमण करने के लिए पूर्व की ओर प्रस्थान कर दिया। वह अपनी । विशाल सेना के साथ मगध-साम्राज्य की पश्चिमी सीमा पर टूट पड़ा। मगध नरेश के चन्द्रगुप्त की सेना की प्रगति को रोकने के सभी प्रयत्न निष्फल सिद्ध हुए। । चन्द्रगुप्त की सेना आगे बढ़ती गई और मगध राज्य की राजधानी पाटलिपुत्र के सन्निकट पहुँच गई और उसका घेरा डाल दिया। अन्त में नन्द राजा घनानन्द की पराजय हुई और अपने परिवार के साथ वह युद्ध में मारा गया। अब चन्द्रगुप्त पाटलिपुत्र में सिंहासन पर बैठ गया और चाणक्य ने 302 ई० पू० में उसका राज्याभिषेक कर दिया।
उत्तर भारत पर अपना प्रभुत्व स्थापित कर लेने के उपरान्त चन्द्रगुप्त ने दक्षिण भारत पर भी अपनी विजय पताका फहराने का निश्चय किया। सर्वप्रथम । उसने सौराष्ट्र पर अपना प्रभुत्व स्थापित कर लिया। उसके बाद लगभग 303 ई० पू० में उसने मालवा पर अधिकार स्थापित कर लिया और पुष्यगुप्त वंश को वहाँ का प्रबन्ध करने के लिए नियुक्त कर दिया जिसने सुदर्शन झील का निर्माण करवाया था। इस प्रकार काठियावाड़ तथा मालवा पर चन्द्रगुप्त का प्रभुत्व स्थापित हो गया। इतिहासकारों की धारणा है कि सम्भवतः मैसूर की सीमा तक चन्द्रगुप्त का साम्राज्य फैला था।
चन्द्रगुप्त का अन्तिम संघर्ष सिकन्दर के सेनापति सेल्यूकस निकेटर के साथ हुआ। सिकन्दर की मृत्यु के उपरान्त सेल्यूकस उसके साम्राज्य के पूर्वी भाग का अधिकारी बना था। उसने 305 ई. पू. में भारत पर आक्रमण कर दिया। चन्द्रगुप्त ने पश्चिमोत्तर प्रदेश की सुरक्षा की व्यवस्था पहले से ही कर ली थी। उसकी सेना ने सिन्धु नदी के उस पार ही सेल्यूकस के सेना का सामना किया। युद्ध में सेल्यूकस की पराजय हो गई और विवश होकर उसे चन्द्रगुप्त के साथ सन्धि करनी पड़ी। सेल्यूकस ने अपनी कन्या का विवाह चन्द्रगुप्त के साथ कर दिया और वर्तमान अफगानिस्तान तथा दिलीचिस्तान के सम्पूर्ण प्रदेश चन्द्रगुप्त को द दिया। उसने मेगास्थनीज नामक एक राजदूत भी चन्द्रगुप्त की राजधानी पाटलिपुत्र में भेजा चन्द्रगुप्त ने भी 500 हाथी सेल्यूकस को भेंट किए। चन्द्रगुप्त मौर्य और सेल्यूकस के संघर्ष के सम्बन्ध में डॉ. राय चौधरी ने अपनी पुस्तक प्राचीन भारत की राजनीतिक में लिखा है, यह देखा जाएगा कि प्राचीन लेखकों से हमें सेल्यूकस और चन्द्रगुप्त के वास्तविक संघर्ष का विस्तृत उल्लेख नहीं मिलता है। वे केवल परिणामों को बतलाते हैं। इसमें सन्देह नहीं कि आक्रमणकारी अधिक आगे बढ़ सका और एक सन्धि कर ली जो वैवाहिक सम्बन्ध द्वारा सुदृढ़ बना दी गई।
उपर्युक्त विजयों के फलस्वरूप चन्द्रगुप्त का साम्राज्य पश्चिम में हिन्दुकुश पर्वत से पूर्व में बंगाल तक और उत्तर में हिमालय पर्वत से दक्षिण में कृष्णा नदी तक फैल गया। परन्तु कश्मीर, कलिंग तथा दक्षिण के कुछ भाग में उनके साम्राज्य के अन्दर न थे। इस प्रकार चन्द्रगुप्त ने अपने बाहुबल तथा अपने मंत्री चाणक्य के बुद्धि बल से भारत की राजनीतिक एकता सम्पन्न की।
चन्द्रगुप्त न केवल एक महान विजेता वरन एक कुशल शासक भी था। जिस शासन व्यवस्था का उसने निर्माण किया वह इतनी उत्तम सिद्ध हुई कि भावी शासकों के लिए वह आदर्श बन गई और थोड़े बहुत आवश्यक परिवर्तन के साथ निरन्तर चलती रही।

34. कडफिसस द्वितीय ने 64-78 ई. के मध्य शासन किया। इसके पश्चात् सत्ता कनिष्क ग्रुप के शासकों के हाथों में आयी। कनिष्क प्रथम इस शाखा का सबसे महान शासक हुआ। वह एक साम्राज्य निर्माता, महान योद्धा, कला, धर्म एवं संस्कृति का संरक्षक माना जाता है। बौद्ध धर्म के इतिहास में कनिष्क को विशिष्ट स्थान दिया गया है। अशोक के ही समान कनिष्क ने भी बौद्धध म को राज्याश्रम दिया। उनके प्रयासों से महायान बौद्धधर्म का मध्य एशिया में प्रसार हुआ।

कनिष्क की तिथि – कनिष्क के राज्यारोहण की तिथि विवादग्रस्त है। भिन्न-भिन्न समय पर विभिन्न विद्वानों ने अलग-अलग तिथियाँ सुझायी हैं। अनेक विद्वान मानते हैं कि कनिष्क ने ही अपने राज्यारोहन के साथ 78 ई० में शक संवत आरम्भ किया। फ्लीट महोदय कनिष्क को विक्रम संवत् का संस्थापक (58 ई० , पू०) मानते हैं। अन्य विद्वानों ने कनिष्क के राज्यारोहण की तिथि क्रमश 125 ई०, 144 ई०, 248 ई०, 278 ई. माना है, परन्तु अधिकांश आधुनिक विद्वान यह स्वीकार करते हैं कि कनिष्क 78 ई० में गद्दी पर बैठा। उसने 23 या 24 वर्षों तक शासन किया (101-102 ई०)। उसके राज्यारोहण से ही शक संवत आरम्भ हुआ, जिसे भारत सरकार द्वारा भी व्यवहार में लाया जाता है।

कनिष्क की उपलब्धियाँ (Achievements of Kanishka)
साम्राज्य का विस्तार – कनिष्क एक महान योद्धा एवं साम्राज्य निर्माता के रूप में विख्यात है। उसने कुषाण राज्य का भारत में और अधिक विस्तार किया। कनिष्क के अभिलेखों उसके सिक्कों के प्राप्ति स्थानों एवं कतिपय साहित्यिक ग्रन्थों से उसके सैनिक अभियानों एवं साम्राज्य के विस्तार की जानकारी मिलती है। जिस समय कनिष्क गद्दी पर बैठा उस समय कुषाण साम्राज्य में अफगानिस्तान सिंध का भाग, बैक्ट्रिया एवं पार्थिया भी सम्मिलित थे। भारत में अपने राज्य का विस्तार उसने मगध तक किया। कल्हन की राजतरंगिणी से ज्ञात होता है कि उसने कश्मीर पर अधिकार कर कनिष्कपुर नगर (आधुनिक श्रीनगर के निकट काजीपुर) की स्थापना की। तिब्बती साहित्य में यह वर्णित है कि उसने अपनी सेना के साथ साकेत अयोध्या तक आक्रमण किया एवं साकेत के राजा को युद्ध में पराजित किया।
चीनी साहित्य (कल्पनामडितिका का चीनी अनुवाद), अश्वघोष की रचनाओं और श्री धर्मपिटक सम्प्रदायनिदान से विदित होता है कि उसने मगध की राजधानी पाटलिपुत्र पर आक्रमण किया तथा वहाँ से वह प्रसिद्ध बौद्ध-विद्वान अश्वघोष और बुद्ध का भिक्षा-पात्र लेकर अपनी राजधानी पुरुषपुर या पेशावर (पाकिस्तान) लौट गया। उसने संभवतः उज्जैन के क्षत्रपों से भी युद्ध कर उन्हें पराजित किया तथा मालवा पर अधिकार कर लिया। कनिष्क ने भारत के बाहर मध्य एशिया में भी युद्ध किया। काशनगर, यारकंद और खोतान पर आधिपत्य जमाने के लिए उसे चीनी सम्राट हो-तो के महत्त्वाकांक्षी सेनापति पान-चाओ से दो बार युद्ध करना पड़ा। पहली बार युद्ध में कनिष्क पराजित हुआ, लेकिन दूसरी (पानचाओ की मृत्यु के पश्चात्) वह चीनी सम्राट पर विजय प्राप्त कर सका। उसने सम्भवतः पार्थिया के राजा को भी युद्ध में पराजित किया। ‘इस प्रकार मौर्य साम्राज्य के पश्चात् पहली बार एक विशाल साम्राज्य की स्थापना हुई जिसमें गंगा, सिन्धु और ऑक्सस की घाटियाँ सम्मिलित थीं।
कनिष्क की विजयों के परिणामस्वरूप कुषाण साम्राज्य अराल समुद्र से लेकर गंगा की घाटी तक फैल गया।

प्रशासनिक व्यवस्था – साम्राज्य-विस्तार के साथ ही कनिष्क ने प्रशासनिक व्यवस्था की तरफ भी ध्यान दिया। विजित क्षेत्रों पर अपना प्रभाव जमाने के लिए उसने गौरवपूर्ण उपाधियाँ धारण की। चीनी एवं रोमन सम्राटों की ही तरह उसने देवपुत्र (Son of Heaven) और कैसर (Cassar) की उपाधियाँ धारण की। उस समय में साम्राज्य की दो राजधानियाँ थीं-पुरुषपुर और मथुरा। कनिष्क ने प्रशासनिक सुविधा के लिए क्षेत्रीय प्रशासनिक व्यवस्था को लागू किया। सारनाथ से प्राप्त अभिलेख से ज्ञात होता है कि बनारस में खर-पल्लन एवं वनस्पर कनिष्क के महाक्षत्रप एवं क्षत्रप के रूप में शासन करते थे। पश्चिमोत्तर भाग में सेनानायक लाल वेसपति एवं लियाक क्षत्रपों के रूप में शासन करते थे।

धार्मिक नीति – कनिष्क की महानता इस बात में भी निहित है कि विदेशी होते हुए भी उसने भारतीय धर्म में गहरी अभिरुचि ली। बौद्धधर्म से वह विशेष रूप से प्रभावित था। बौद्ध ग्रन्थों में कनिष्क को एक उत्साही बौद्ध के रूप में चित्रित किया गया। भारतीय इतिहास में बौद्ध धर्म को संरक्षण देने वाले शासकों में अशोक के पश्चात कनिष्क का ही नाम सबसे अधिक विख्यात है। अश्वघोष और मातृचेट जैसे बौद्धों के आकार उसने बौद्धधर्म स्वीकार कर लिया। बौद्ध विद्वान पार्श्व की सलाह पर उसने कश्मीर कुछ विद्वानों के अनुसार जालंधर में बौद्धों की चौथा महासंगीत का आयोजन किया। इस महासभा की अध्यक्षता वसुमित्र ने की। इस सभा का उद्देश्य विभिन्न बौद्ध विद्वानों में प्रचलित मतभेदों को. दूर करना था। सभा करीब छह मास तक चली जिसमें लगभग 500 विद्वानों ने भाग लिया। अश्वघोष उस सभा का उपाध्यक्ष था। इस सभा में बौद्ध धर्म ग्रन्थों पर विस्तृत टीकाएँ लिखवायी गयीं तथा महाविभाग (बौद्ध-ज्ञानकोष) तैयार किया गया। इस परिषद ने महायान-बौद्धधर्म को मान्यता दी। फलस्वरूप इस समय से महायान की प्रमुख बौद्ध धर्म बन गया। कनिष्क ने अशोक की ही तरह बौद्धधर्म (महायान शाखा) के प्रसार के लिए अनेक कदम उठाये। उसने अनेक बौद्ध विहारों, चैत्यों एवं स्तूपों का निर्माण करवाया। उसने पेशावर (पुरुषपुर) में एक बहुत ही भव्य स्तूप का निर्माण करवाया। बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए चीन एवं मध्य एशिया में धर्म-प्रचारक भी भेजे गये। यद्यपि कनिष्क स्वयं बौद्धधर्म को माननेवाला था, परन्तु उसने धार्मिक सहिष्णुता की नीति अपनायी। इसका प्रमाण उसके सिक्कों पर अनुकृत बुद्ध के अतिरिक्त सूर्य, शिव, अग्नि, हेराक्लीज-जैसे भारतीय यूनानी एवं ईरानी देवताओं की आकृतियाँ हैं। कुछ ताम्र सिक्कों में उसे वेदि पर बलिदान चढ़ते हुए भी दिखलाया गया है। इससे स्पष्ट हो जाता है कि कनिष्क अपने राज्य में प्रचलित सभी धर्मों के प्रति सहिष्णु था।

कला एवं साहित्य को संरक्षण – कनिष्क की उदारता से कुषाणकाल में कला एवं साहित्य की भी प्रगति हुई। स्थापत्य और मूर्तिकला का विकास हुआ।
कनिष्क ने पुरुषपुर में एक विशाल स्तूप का निर्माण करवाया जिसकी प्रशंसा चीनी यात्री ह्वेनसांग भी करता है। कश्मीर में उसने कनिष्क पर नगर की स्थापना की। तक्षशिला का नया नगर सिरसुख भी कनिष्क के समय में ही बनी। कनिष्कयुगीन स्थापत्य का एक सुन्दर नमूना मथुरा का देवकुल और नाम मन्दिर हैं। महायान बौद्धधर्म के विकास ने मूर्तिकला को भी प्रभावित किया। गांधार और मथुरा की विशिष्ट शैलियों में बुद्ध की सुन्दर मूर्तियाँ बनायी गयीं। कुषाण (कनिष्क) कालीन सिक्के भी कला की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण हैं।
कनिष्क ने विद्वानों को समुचित सम्मान प्रदान किया। उसके दरबार में पार्श्व, वसुमित्र, नागार्जुन जैसे प्रसिद्ध बौद्ध विद्वान एवं दार्शनिक थे।

35. भक्ति आंदोलन का प्रभाव (Effect of Bhakti Movement ) – संतों तथा सुधारकों के प्रयासों से जो भक्ति आंदोलन का आरम्भ हुआ उनसे मध्य भारत के सामाजिक एवं धार्मिक जीवन में एक नवीन शक्ति एवं गतिशीलता का संचार हुआ। प्रो. रानाडे के अनुसार भक्ति आंदोलन के परिणामों में साहित्य-रचना का आरम्भ, इस्लाम के साथ सहयोग के परिणामस्वरूप सहिष्णुता की भावना का विकास जिसकी वजह से जाति व्यवस्था के बंधनों में शिथिलता आई और विचार तथा कर्म दोनों स्तरों पर समाज का उन्नयन हुआ।

(i) सामाजिक प्रभाव (Social Impact) भक्ति आंदोलन के कारण जाति प्रथा, अस्पृश्यता तथा सामाजिक ऊँच-मीच की भावना को गहरी चोट लगी। अधिकतर भक्त संतों ने विभिन्न जातियों के लोगों को अपना शिष्य बनाया। उन्होंने जाति प्रथा का तीव्र विरोध किया एवं ब्राह्मण तथा शूद्र को समान बताया। इस तरह समाज में जाति बंधनों पर गहरा प्रहार हुआ लेकिन यह मानना पड़ेगा कि भक्ति आंदोलन भारतीय समाज से जाति प्रथा के दोषों को पूर्णतया समाप्त नहीं कर सका। भक्त-संतों ने नारी को समाज में उच्च तथा सम्मानीय स्थान दिये जाने का समर्थन किया। उन्होंने स्त्रियों को पुरुषों के साथ मिलकर सांसारिक बोझ उठाने का परामर्श दिया। कबीर तथा नानक ने पुरुषों की तरह नारियों को अपनी शिक्षाएँ दीं। उन्होंने सती प्रथा जैसी सामाजिक बुराई का भी विरोध किया। इस आंदोलन में समाज सेवा की भावना को प्रोत्साहन मिला क्योंकि भक्त संतों ने लोगों को निर्धन, अनाथों, बेसहारा आदि की सेवा करने का उपदेश दिया।

(ii) धार्मिक प्रभाव (Religious Impact) भक्ति आंदोलन का सर्वाधि: क प्रभाव धर्म पर पड़ा। इस आंदोलन के कारण ही इस्लाम तथा हिन्दू धर्म के अनुयायियों में कर्मकांडों और अंधविश्वासों के विरुद्ध वातावरण तैयार हुआ। हिन्दुओं में मूर्तिपूजा की लोकप्रियता में कमी हुई। हिन्दू-मुस्लिम सम्प्रदायों में समन्वय तथा एकता की भावना को प्रोत्साहन मिला। भक्ति आंदोलन के कारण ही सिख धर्म के रूप में नये धर्म का जन्म हुआ। गुरु नानक देव सिखों के प्रथम गुरु तथा गुरु ग्रंथ साहिब सिखों के लिए बाइबल है। गुरु ग्रंथ साहिब में अधिकांश भक्ति-संतों की वाणी ही संकलित है। इससे धार्मिक सहिष्णुता को प्रोत्साहन मिला। हिन्दु तथा मुसलमानों में जो कटुता व्याप्त थी धीरे-धीरे इस आंदोलन से उसको गहरा आघात पहुँचा। धार्मिक कट्टरता कम हुई तथा धार्मिक सहनशीलता का प्रसार हुआ।

(iii) सांस्कृतिक प्रभाव (Cultural Effects) भक्ति आंदोलन के कारण सर्वसाधारण की भाषा एवं बोलियाँ अधिक लोकप्रिय हुईं। अनेक प्रांतीय एवं क्षेत्रीय भाषाओं में अनेक भक्त संतों ने रचनाएँ की। कबीर की भाषा अनेक भाषाओं के सुन्दर समन्वय का अच्छा उदाहरण है जो खिचड़ी भाषा कहलाती है। मलिक मुहम्मद जायसी, तुलसीदास आदि ने अवधी में अपनी रचनाएँ की। . सूरदास ने ब्रज तथा नानक ने पंजाबी व हिन्दी को अपनाया। चैतन्य ने. बंगला में और अनेक भक्त संतों ने उर्दू में भी रचनाएँ की। यह रचनाएँ समय पाकर भारतीय भाषाओं के साहित्य का एक महत्त्वपूर्ण अंग बन गईं।

36. अलाउद्दीन एक सुयोग्य शासक और कुशल राजनीतिज्ञ था। उसमें उच्चकोटि. की मौलिकता थी और नये प्रयोगों को सफलतापूर्वक कार्यान्वित करने की क्षमता। उसमें रचनात्मक प्रतिभा थी और वहं नये-नये प्रयोगों को करने के लिए सदैव उत्सुक रहता था। पुरानी परिपाटियों और संस्थाओं से उसे संतोष नहीं था।
उसने अपने शासनकाल में सभी क्षेत्रों में क्रान्तिकारी सुधार किये थे जिनकी उसके पूर्वाधिकारियों ने कल्पना भी नहीं की थी। प्रत्येक क्षेत्रों में अलाउद्दीन ने । ऐसी नवीन नीति का अनुसरण किया जो उसकी प्रतिभा का परिचय देती है। नीचे प्रत्येक क्षेत्र में अलाउद्दीन के सुधारों का वर्णन दिया जाता है

प्रशासनिक सुधार – अलाउद्दीन उच्च कोटि का प्रबन्धक और शासनकर्ता था। उसमें एक जन्मजात सेनानायक और प्रशासके के गुण विद्यमान थे। अतएव । एक विशाल साम्राज्य की स्थापना करने के साथ-साथ उसने उस साम्राज्य को सुरक्षित, सुसंगठित तथा सुव्यवस्थित रखने का प्रबन्ध किया। उसका शासन पूर्ण रूप से स्वेच्छाचारी, निरंकुश और विशुद्ध सैनिक शासन था। राज्य की सारी शक्तियाँ सुल्तान के हाथ में थी और वह सभी अधिकारों का स्रोत था। राज्य के सभी कार्य उसकी आज्ञा और आदेश से होता था। शासन के प्रत्येक भाग पर उसका नियंत्रण रहता था। उसका गुप्तचर-विभाग इतना सुसंगठित और सक्षम था कि राज्य की सारी घटनाओं की सूचना उसे मिलती रहती थी। वह अपने कर्मचारियों पर कड़ा नियंत्रण रखता था। इस प्रकार अलाउद्दीन का शासन एक केन्द्रीभूत सैनिक शासन था।
अलाउद्दीन ने भी बलवन के राजत्व सम्बन्धी सिद्धान्त को पुनः स्थापित करने का प्रयास किया। वह राजा के प्रताप में विश्वास करता था और उसे पृथ्वी पर ईश्वर का प्रतिनिधि मानता था। उसका दृढ़ विश्वास था कि सुल्तान अन्य मनुष्यों की अपेक्षा अधिक बुद्धिमान होता है, इसलिए उसकी इच्छा ही कानून होनी चाहिए। वह इस सिद्धान्त में विश्वास करता था कि राजा का कोई सम्बन्धी नहीं होता है और राज्य के सभी निवासी उसके सेवक होते हैं। इसलिए वह राज्य के मामले में उलेमा के हस्तक्षेप का विरोधी था। वह यह मानता था कि धर्म और प्रशासन दो भिन्न विषय हैं। उसने किसी भी अधिकारी को यह अनुमति न दी कि वह उसे किसी बात में सलाह दे या धर्म का दबाव डालकर उसे कोई काम करने के लिए मजबूर करे। केवल दिल्ली का कोतवाल काजी अलाउल मुल्क ही ऐसा व्यक्ति था जिसकी सलाह का सुल्तान सम्मान करता था। वह राज्य प्रबन्ध के सम्बन्ध में स्पष्ट कहता था कि, “मुझे जो बात पसन्द आयेगी, वही मैं करूँगा। जो बात मैं देश के हित के लिए समयूँगा, चाहे वह धर्म के विपरीत हो या अनुकूल, वही कार्य मैं करूँगा। जो बात मैं देश के हित के लिए समझूगा, चाहे वह धर्म के विपरीत हो या अनुकूल, वही कार्य मैं करूंगा। मैं नहीं जानता कि मेरा आचरण धार्मिक-कानून की दृष्टि में उचित है अथवा विपरीत। मैं तो राज्य की भलाई के लिए जो कुछ ठीक समझता हूँ अथवा अवसर के अनुकूल मुझे जो कुछ ठीक ऊँचता है, वह मैं कर डालता हूँ। मैं नहीं जानता कि कयामत के दिन ईश्वर के दरबार में मेरा क्या होगा।” इस प्रकार अलाउद्दीन दिल्ली का पहला सुल्तान था जिसने धर्म पर राज्य का नियंत्रण स्थापित किया।
अलाउद्दीन के शासन की एक महत्वपूर्ण विशेषता यह थी कि उसने राजनीति को धर्म से अलग कर दिया था। वह राजनीति में उलेमा के हस्तक्षेप का विरोधी था। शासन में मुल्लाओं का कोई प्रभाव नहीं था। वह वही करता था, जिसे वह राज्य के हित में ठीक समझता था। डॉ. ईश्वरी प्रसाद के अनुसार, “उसे जो सामग्री उपलब्ध थी, उसी की सहायता से वह दृढ़तापूर्वक अपने गन्तव्य की ओर बढ़ता जाता था और उसकी मैकियावेलियन राजनीति में नैतिकता और धार्मिक। निर्णय के लिए कोई स्थान न था।” इस प्रकार बलवन की भाँति अलाउद्दीन ने भी लौकिक शासन की स्थापना की, जिसका अनुसरण आगे चलकर अकबर और शेरशाह ने किया। कि अलाउद्दीन ने अपनी न्याय-व्यवस्था को भी लौकिक रूप दिया था। उसने इस सिद्धान्त को प्रतिपादित किया कि परिस्थिति और लोक-कल्याण के विचार से जो नियम उपयुक्त हो, वही राज्य का नियम होना चाहिए। इस प्रकार उसने राज्य के नियम को धर्म के चंगुल से मुक्त किया। न्यायाधीश के पद पर चरित्रवान और नीति-निपुण व्यक्तियों को नियुक्त किया गया। न्यायाधीशों की सहायता के लिए पुलिस और गुप्तचर की नियुक्ति की गयी। प्रत्येक नगर में कोतवाल का कार्य अपराधी का पता लगाना था। गुप्तचर भी अपराधियों का पता लगाने में सहायता करते थे। दण्ड-विधान अत्यन्त ही कंठोर था। बिना किसी भेदभाव के अपराधियों को दण्ड दिया जाता था।

37. प्लासी युद्ध का भारतीय इतिहास में विशेषतः राजनैतिक महत्व है। इस युद्ध ने देश की राजनीति में महान परिवर्तन ला दिया। इस युद्ध के प्रमुख कारण निम्नलिखित थे –

(i) भारत में अंग्रेजों का राज्य स्थापित करने का विचार – अंग्रेज यद्यपि “भारत में व्यापार करने के लिए आये थे, परंतु यहाँ की राजनीतिक स्थिति को देखकर उनके विचारों में परिवर्तन हो गया। उन्होंने यहाँ अपने साम्राज्य की स्थापना का विचार कर लिया। फ्रांसीसियों को पराजित करने के पश्चात् उन्होंने ” भारतीय शासकों को पराजित करने का कार्यक्रम बनाया और बंगाल से ही अपने कार्यक्रम को लागू करना आरंभ किया।

(ii) सिराजुद्दौला से अंग्रेज आतंकित – प्लासी के युद्ध के समय बंगाल । का शासक सिराजुद्दौला था। वह देश के लिए अंग्रेजों को खतरनाक समझता था। अंग्रेज भी उससे घबराये हुए थे। मरने से पूर्व उसके नाना अलीवर्दी खाँ ने कहा था-“मुल्क के अंदर यूरोपियन कौमों की ताकत पर नजर रखना। यदि खुदा मेरी उम्र बढ़ा देता तो मैं तुम्हें इस डर से भी आजाद कर देता-अब मेरे बेटे यह काम तुम्हें करना होगा …..।”
अलीवर्दी खाँ ने भी एक बार अंग्रेजों से कहा था-“तुम लोग सौदागर हो, तुम्हें किलों की क्या जरूरत ? तब तुम मेरी हिफाजत में हो तो तुम्हें किसी दुश्मन का डर नहीं हो सकता।” . परंतु अब अंग्रेज न तो केवल सौदागर ही रहना चाहते थे और न दूसरे के शासन में रहना चाहते थे, वे भारत में अपना राज्य स्थापित करना चाहते थे, इसीलिए उन्होंने प्लासी का युद्ध लड़ा।

(iii) बंगाल को प्राप्त करना – अंग्रेज हर परिस्थिति में राजनैतिक और आर्थिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण स्थान बंगाल को प्राप्त कर लेना चाहते थे। अतः उन्हें इस प्रदेश को प्राप्त करने हेतु किसी न किसी बहाने की आवश्यकता थी जो उन्हें प्लासी का युद्ध करने के लिए शीघ्र मिल गया।

(iv) किलेबंदी – सिराजद्दौला के नाना अलीवर्दी खाँ ने अंग्रेज और फ्रांसीसियों को किलेबंदी न करने की स्पष्ट चेतावनी दी थी परंतु उसके मरते ही फिर किलेबंदी होनी प्रारंभ हो गई। सिराजुद्दौला ने भी किलेबंदी करनी की मनाही की इससे फ्रेंच कंपनी ने किलेबंदी समाप्त कर दी; परंतु अंग्रेजों ने इस पर ध्यान नहीं दिया। इस कारण सिराजुद्दौला और अंग्रेजों के संबंध कटु हो गये और उनमें युद्ध होना आवश्यक हो गया।

(v) अंग्रेजों द्वारा विरोधियों को सहायता देना – अंग्रेज व्यापारी सिराजद्दौला के विरोधियों की सहायता कर रहे थे। असंतुष्ट दरबारियों तथा अन्य शत्रुओं को अंग्रेज शरण दिया करते थे, इससे सिराजुद्दौला अंग्रेजों से चिढ़ गया था। अंग्रेजों ने नवाब की इच्छा के विरुद्ध ढाका के दीवान राजबल्लभ के पुत्र कृष्ण बल्लभ
को भी अपने यहाँ शरण दी जिससे उसके क्रोध का ठिकाना न रहा। ऐसी स्थिति में युद्ध को टाला नहीं जा सकता था।

(vi) सुविधाओं का अनुचित उपयोग – मुगल शासकों द्वारा जो सुविधायें अंग्रेजों को दी गई थीं, उसका वे दुरूपयोग कर रहे थे। अपने माल के साथ भारतीय व्यापारियों के माल को भी वह अपना माल बताकर चुंगी को बचा लेते थे और उनसे स्वयं चुंगी लेते थे। इससे आपसी संबंध कटु होते गये और युद्ध की स्थिति स्पष्ट नजर आने लगी।

(vii) उत्तराधिकार के मामलों में हस्तक्षेप – अंग्रेज सिराजुद्दौला के विरोधी उत्तराधिकारियों के पक्ष में झुक रहे थे। ढाका के शासक की विधवा बेगम तथा उसकी मौसी के पुत्र शौकत जंग का अंग्रेज समर्थन किया करते थे। ऐसी परिस्थिति में सिराजुद्दौला उनसे रुष्ट हो गया और उनसे युद्ध करने की ठान ली।
सिराजद्दौला ने रुष्ट होकर अंग्रेजों को बंगाल से निष्कासित करने का दृढ़ निश्चय कर लिया। उसने जनवरी 1756 में कासिम बाजार में स्थित अंग्रेजी कारखाने पर अधिकार कर लिया। तत्पश्चात् वह कलकत्ता की ओर चला। 18 जून, 1756 को नवाब ने कलकत्ते पर आक्रमण किया तथा उस पर सिराजुद्दौला का अधिकार हो गया। इसी समय काल कोठरी की घटना घटी। जैसे कि इतिहासकारों ने बताया है कि 146 अंग्रेजों को एक कोठरी में बंद करके मार डाला गया। यह घटना ‘ब्लैक हॉल’ के नाम से प्रसिद्ध है। 2 जनवरी, 1757 को कलकत्ता पर मानिक चन्द के विश्वासघात करने के कारण अंग्रेजों का फिर से अधिकार हो गया। अब अंग्रेजों ने सेनापति मीरजाफर तथा सेठ अमीचन्द को अपनी ओर मिलाकर सिराजुद्दौला को परास्त करने की योजना बनाई।
इस बीच क्लाइव ने सिराजुद्दौला पर अलीनगर की संधि भंग करने का आरोप लगाया. और 22 जून, 1757 को 3200 सैनिकों को लेकर राजधानी के समीप प्लासी स्थान पर पहुँच गया। सिराजुद्दौला अपनी 50 हजार सेना को लेकर मैदान में आया। 23 जून, 1757 को युद्ध प्रारंभ हुआ। मीरजाफर और राय दुर्लभ अपनी सेनाओं के साथ चुपचाप खड़े रहे। केवल मोहनलाल और मीरमदान ने पूर्ण साहस से शत्रुओं का सामना किया, परंतु अपने प्रमुख सहयोगियों द्वारा विश्वासघात करने पर सिराजुद्दौला का दिल टूट गया। प्लासी के मैदान में उसकी पराजय हुई। 24 जून, 1757 को वह अपनी पत्नी के साथ महल की एक खिड़की से कूदकर भाग गया परंतु वह पकड़ा गया और मीरजाफर के पुत्र मीर द्वारा उसकी हत्या कर दी गई।

प्लासी के युद्ध के परिणाम –
(i) बंगाल की नवाबी मीरजाफर को मिली।
(ii) 24 परगनों की जमींदारी कंपनी को प्राप्त हुई।
(iii) अमीचन्द को इस युद्ध में निराश रहना पड़ा।
(iv) बंगाल में अंग्रेजों का प्रभुत्व स्थापित हो गया।
(v) अंग्रेज अब केवल व्यापारी न होकर शासक हो गया।
(vi) कंपनी का व्यापार पूरे बंगाल में फैल गया।
(vii) अलीवर्दी खाँ के वंश का अंत हो गया।

38. 1857 के सिपाही विद्रोह के महत्त्वपूर्ण प्रमुख कारण निम्नांकित थे –

(i) सामाजिक कारण (Social causes) अंग्रेजों ने अनेक भारतीय सामाजिक कुरीतियों को दूर करने के लिए कानून बनाया। उन्होंने सती प्रथा को कानूनी अपराध घोषित कर दिया। उन्होंने विधवा पुनर्विवाह करने की कानूनी अनुमति दे दी। स्त्रियों को शिक्षित किया जाने लगा। रेलवे तथा यातायात के अन्य साधनों को बढ़ावा दिया गया। रूढ़िवादी लोग इन सब कामों को संदेह से देखते थे। उन्हें भय हुआ कि अंग्रेज हमारे समाज को तोड़-मरोड़ कर हमारी सारी सामाजिक मान्यताओं को समाप्त कर देना चाहते हैं। संयुक्त परिवार, जाति, व्यवस्था तथा सामाजिक रीति-रिवाज को वे नष्ट करके अपनी संस्कृति हम पर थोपना चाहते हैं। अतः उनके मन में विद्रोह की चिंगारी सुलग रही थी। अंग्रेज भारतीयों को उच्च पद देने के लिए तैयार न थे। अपने जातीय अहंकार के कारण वे लोग समझते थे कि उनके क्लबों में काले लोग नहीं जा सकते। एक साथ वे एक ही रेल के डिब्बे में यात्रा नहीं कर ___ सकते हैं। वे भारतीयों को निम्न कोटि का समझते थे।

(ii) धार्मिक कारण (Religious causes) ईसाई धर्म प्रचारक धर्म परिवर्तन – करा देते थे। जेलों में ईसाई धर्म की शिक्षा का प्रबन्ध था। 1850 ई० में एक कानून बनाकर ईसाई बनने वाले व्यक्ति को अपनी पैतृक सम्पत्ति में बराबर का हिस्सा मिलना निश्चित किया गया। अंग्रेजों ने मंदिरों और मस्जिदों की भूमि पर कर लगा दिया। अतः पंडितों और मौलवियों ने रुष्ट होकर जनता में अंग्रेजों के विरुद्ध जागृति फैला दी।

(iii) सैनिक कारण (Military causes) भारतीय एवं यूरोपियन सैनिकों में पद, वेतन पदोन्नति आदि को लेकर भेदभाव किया जाता था। भारतीय सैनिकों के साथ बुरा व्यवहार किया जाता था और उन्हें कम महत्त्व दिया जाता था। उन पर कई प्रकार के प्रतिबंध थे, जैसे वे तिलक, चोटी, पगडी या दाढ़ी आदि नहीं रख सकते थे। सामूहिक रसोई होने के कारण भी उच्च वर्ग के (ब्राह्मण और ठाकुर) लोग निम्न वर्ग के लोगों के साथ खाने से प्रसन्न न थे।

(iv) तात्कालिक कारण (Immediate causes) तात्कालिक कारण कारतूसों में लगी सूअर और गाय की चर्बी थी। नयी स्वफील्ड बंदूकों में गोली भरने से पूर्व कारतूस को दाँत से छीलना पड़ता था। हिन्दू और मुसलमान दोनों ही गाय और सूअर की चर्बी को अपने-अपने धर्म के विरुद्ध समझते थे। अतः उनका भड़कना स्वाभाविक था।
26 फरवरी, 1857 ई० को बहरामपुर में 19वीं नेटिव एनफैण्ट्री ने नये कारतूस प्रयोग करने से मना कर दिया। 19 मार्च, 1857 ई. को चौंतीसवीं नेटिव एनफैण्ट्री के सिपाही मंगल पाण्डेय ने दो अंग्रेज अधिकारियों को मार डाला। बाद में उसे पकड़कर फाँसी दे दी गई। सिपाहियों का निर्णायक विद्रोह 10 मई, 1857 को मेरठ में शुरू हुआ।


 

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