Class 12th History ( कक्षा-12 इतिहास लघु उत्तरीय प्रश्न ) PART- 1
Q.1. हड़प्पा संस्कृति के बारे में जानकारी के क्या स्रोत है ?
Ans ⇒ हड़प्पा संस्कृति के बारे में जानकारी कराने वाले अनेक स्रोत उपलब्ध हैं। सर्वप्रथम हड़प्पा एवं मोहनजोदड़ो जैसे विभिन्न नगरों की खुदाई से प्राप्त विभिन्न भवनों, गलियों, बाजारों, स्नानागारों आदि के अवशेष हड़प्पा संस्कृति पर प्रकाश डालते हैं। इन अवशेषों से हड़प्पा संस्कृति के नगर निर्माण एवं नागरिक प्रबंध के विषय में भी पर्याप्त जानकारी प्राप्त होती है।
दूसरे, कला के विभिन्न नमूनों से जैसे मिट्टी के खिलौनों, धातुओं की मूर्तियों (विशेषकर नाचती हुई लड़की की ताँबे की प्रतिमा) आदि से हडप्पा के लोगों की कला एवं कारीगरी पर पर्याप्त प्रकाश पड़ता है।
मोहरों (Seals) से जो अपने में ही हडप्पा संस्कति के विभिन्न पहलओं पर काफी जानकारी प्राप्त होती है। इनसे हड़प्पा संस्कृति से संबंधित लोगों के धर्म, पशु-पक्षियों एवं पेड़-पौधों तथा लिपि के उपस्थिति से यह अनुमान लगाया जाता है कि हडप्पाई लोग पढ़े-लिखे थे। इस लिपि के पढ़े जाने के बाद उनके संबंध में कई महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त होंगी।
Q.2. सिंधुघाटी सभ्यता की धार्मिक जीवन पर प्रकाश डालें। :
Ans ⇒ हड़प्पा (सिंधु) सभ्यता के धार्मिक जीवन की प्रमुख विशेषताएँ निम्न थीं
(i) मातृदेवी की पूजा होती थी।
(ii) पशुपति की पूजा प्रचलित थी। कूबड़ वाला बैल पूजनीय था।
(iii) पीपल वृक्ष की भी पूजा होती थी।
(iv) नागपूजा, स्वास्तिष्क (सूर्यपूजा), अग्निपूजा (वेदी) के भी संकेत मिलते हैं।
(v) एक मूर्ति में एक स्त्री के गर्भ में से एक पौधा निकलता हुआ दिखाई देता है। यह संभवतः धरती देवी की मूर्ति है। संभव है कि हड़प्पावासी धरती को उर्वरता की देवी मानकर उसकी पूजा करते हों। … कुल मिलाकर हड़प्पा सभ्यता का धार्मिक जीवन काफी हद तक आज के हिन्दु धर्म के ही समान था। यद्यपि इस सभ्यता से कहीं भी मन्दिर जैसे अवशेष नहीं प्राप्त हुए हैं।
Q.3. हडप्पा सभ्यता के प्रमुख देवताओं एवं धार्मिक प्रथाओं की विवेचना करें।
Ans ⇒ हडप्पावासी बहुदेववादी और प्रकृति पूजक थे। मातृदेवी इनकी प्रमुख देवी थी। मिट्टी की बनी अनेक स्त्री मूर्तियाँ, जो मातृदेवी की प्रतीक है, बड़ी संख्या में मिली हैं। देवताओं में प्रधान पशपति या आद्य-शिव थे। मोहनजोदड़ो से प्राप्त मुहर पर योगीश्वर की मूर्ति को पशुपति महादेव माना गया है। सिन्धुवासी नाग कूबड़दार सांढ, लिंग योनि पीपल के वृक्ष की भी पूजा करते थे। जलपूजा, अग्निपूजा और बलि प्रथा भी प्रचलित थी। मन्दिरों और पुरोहितों का अस्तित्व नहीं था।
Q.4. हड़प्पा सभ्यता के विस्तार पर प्रकाश डालें।
Ans ⇒ हडप्पा सभ्यता प्राचीन सभी सभ्यताओं में विशालतम थी। यह उत्तर में कश्मीर से लेकर दक्षिण में नर्मदा घाटी तक पश्चिम में ब्लूचिस्तान मकरान तट से लेकर पूर्व में अलमगीरपुर (उत्तर प्रदेश) तक फैली हुई थी। कुल मिलाकर यह सभ्यता पूर्व से पश्चिम तक 1600 कि० मी. तथा उत्तर से दक्षिण लगभग 1200 कि. मी. तक विस्तृत थी।
Q.5. मोहनजोदड़ो के सार्वजनिक स्नानागार के विषय में लिखिए।
Ans ⇒ मोहनजोदडो में बना सार्वजनिक स्नानागार अपना विशेष महत्त्व रखता है। यह सिन्ध घाटी के लोगों को कला का अद्वितीय नमूना है। ऐसा अनुमान है कि यह स्नानागार (तालाब) धार्मिक अवसरों पर आम जनता के नहाने के प्रयोग में लाया जाता था। यह तालाब इतना मजबूत बना हुआ है। इसकी दीवारें काफी चौड़ी बनी हुई हैं जो पक्की ईंटों और विशेष प्रकार के सीमेंट के है ताकि पानी अपने आप बाहर न निकल सके। तालाब (स्नानघर) में नीचे उतरने के लिए
मा बनी हुई हैं। पानी निकलने के लिए नालियों का भी प्रबंध है।
Q.6. सिंधु घाटी से संबंधित गृह स्थापत्य पर एक टिप्पणी लिखिए।
Ans ⇒ सिंधु घाटी सभ्यता की गृह स्थापत्य (Domesticarchitectureofthe Indus Valmial Civilisation)-मोहनजोदडो का निचला शहर आवासीय भवनों के उदाहरण प्रस्तत करता र से कई एक आँगन पर केन्द्रित थे जिसके चारों ओर कमरे बने थे। संभवतः आँगन, खाना पर
और कताई करने जैसी गतिविधियों का केन्द्र था, खास तौर से गर्म और शुष्क मौसम में। यहाँ एक अन्य रोचक पहलू लोगों द्वारा अपने एकांतता को दिया जाने वाला महत्त्व था। भूमि तल बनी दीवारों में खिडकियाँ नहीं है। इसके अतिरिक्त मुख्य द्वार से आंतरिक भाग अथवा आँगन का सीधा अवलोकन नहीं होता है।
हर घर का ईंटों के फर्श से बना अपना एक स्नानघर होता था, जिसकी नालियाँ दीवार के माध्यम से सड़क की नालियों से जुडी हुई थीं। कुछ घरों में दूसरे तल या छत पर जाने हेतु बनाई गई सीढ़ियों के अवशेष मिले थे। कई आवासों में कुएँ थे जो अधिकांशतः एक ऐसे कक्ष में बनाये गए थे जिसमें बाहर से आया जा सकता था और जिनका प्रयोग संभवतः राहगीरों द्वारा किया जाता था। विद्वानों ने अनुमान लगाया है कि मोहनजोदड़ो में कुओं की कुल संख्या लगभग 700 थी।
Q.7. मोहनजोदड़ो का एक नियोजित शहरी केन्द्र के रूप में प्रमुख विशेषताओं का लगभंग 100 से 150 शब्दों में लिखिए।
Ans ⇒ एक नियोजित शहरी केन्द्र के रूप में मोहनजोदड़ो (A planned urban centre Mohenjodaro)
(i) संभवतः हड़प्पा सभ्यता का सबसे अनूठा पहलू शहरी केन्द्रों का विकास था। आइये ऐसे ही केन्द्र, मोहनजोदड़ो को और सूक्ष्मता से देखते हैं। हालांकि मोहनजोदड़ो सबसे प्रसिद्ध पुरास्थल है, सबसे पहले खोजा गया स्थल हड़प्पा था।
(ii) बस्ती दो भागों में विभाजित है, एक छोटा लेकिन ऊँचाई पर बनाया गया और दूसरा कहीं अधिक खड़ा लेकिन नीचे बनाया गया। पुरातत्वविदों ने इन्हें क्रमश: दुर्ग और निचला शहर का नाम दिया है। दुर्ग को दीवार से घेरा गया था।
(iii) निचला शहर भी दीवार से घेरा गया था। इसके अतिरिक्त कई भवनों को ऊँचे चबूतरों पर बनाया गया था जो नींव का कार्य करते थे। अनुमान लगाया गया है कि यदि एक श्रमिक प्रतिदिन एक घनीय मीटर मिट्टी ढोता होगा, तो मात्र आधारों को बनाने के लिए ही चालीस लाख श्रम-दिवसों, अर्थात् बहुत बड़े पैमाने पर श्रम की आवश्यकता पड़ी होगी।
(iv) शहर का सारा भवन-निर्माण कार्य चबूतरों पर एक निश्चित क्षेत्र तक सीमित था। इसलिए ऐसा प्रतीत होता है कि पहले बस्ती का नियोजन किया गया था और फिर उसके अनुसार कार्यान्वयन। नियोजन के अन्य लक्षणों से ईंटें शामिल हैं, जो भले धूप में सुखाकर अथवा भट्टी में पकाकर बनाई गई हों, एक निश्चित अनुपात की होती थीं, जहाँ लंबाई और चौड़ाई, ऊँचाई की क्रमशः चार गुनी और दगनी होती थी। इस प्रकार की ईंटें सभी हड़प्पा बस्तियों में प्रयोग में लाई गई थीं।
Q.8. कार्बन-14 विधि से आप क्या समझते हैं ?
Ans ⇒ तिथि निर्धारण की वैज्ञानिक विधि को कार्बन-14 विधि के नाम से जाना जाता है। वस्तुतः किसी की जीवित वस्तु में कार्बन-12 और कार्बन-14 समान मात्रा में पाया जाता है। मृत्यु की अवस्था में C-12 तो स्थिर रहता है किन्तु कार्बन-14 का निरंतर बल होने लगता है। कार्बन का अर्द्ध आयु काल 5568 + 90 वर्ष होता है अर्थात् इतने वर्षों में उस पदार्थ में C-14 की मात्रा आधी रह जाती है। इस प्रकार वस्तु के काल की गणना की जाती है। जिस पदार्थ में कार्बन-14 की मात्रा जितनी कम होगी वह उतनी ही पुरानी मानी जाएंगी। इसी के आधार पर प्राचीन सभ्यताओं की तिथि का निर्धारण किया जाता है।
Q.9.पुरातत्व से आप क्या समझते है ?
Ans ⇒ प्राचीन इतिहास के अध्ययन में पुरातात्विक स्रोत का अपना विशेष स्थान रखते हैं। इसके प्रमुख कारण यह है कि भारतीय ग्रंथों की संख्या काल की सही-सही जानकारी नहीं होने के कारणं किसी काल-विशेष की सामाजिक एवं आर्थिक स्थिति का ज्ञान नहीं होता। साहित्यिक साधनों में लेखक का दृष्टिकोण भी सही तथा प्रस्तुत करने में बाधक होता है। ग्रंथों की प्रतिलिपि करने वालों ने अपना इच्छानुसार प्राचीन प्रकरणों को छोड़कर अनेक नए प्रकरण जोड़ देते हैं। लेकिन पुरातात्विक सामग्री में इस प्रकार के हेर-फेर की संभावना बहुत कम होता है। अतः पुरातात्विक स्रोत अधिक विश्वसनीय होते हैं।
Q.10. इतिहास लेखन में अभिलेखों का क्या महत्त्व है ?
Ans ⇒ अभिलेखों से तात्पर्य है पाषाण, धातु या मिट्टी के बर्तनों आदि पर खुदे हुए लेखाभिलेखों से तत्कालीन राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक तथा धार्मिक जीवन की जानकारी मिलती है। अशोक के अभिलेखों द्वारा उसके धम्म, प्रचार-प्रसार के उपाय, प्रशासन, मानवीय पहलुओं आदि क विषय म सहज जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। इतिहास लेखन में अभिलेख की महत्ता इससे भी स्पष्ट हो जाता है कि मात्र अभिलेखों के ही आधार पर भण्डारकर महोदय ने अशोक का इतिहास लिखने का सफल प्रयत्न किया है।
Q.11. उत्तरापथ से आप क्या समझते हैं ?
Ans ⇒ उत्तरापथ उस व्यापारिक मार्ग को कहते हैं, जो मौर्योत्तर युग में बहुत ख्याति प्राप्त था। यह मार्ग तक्षशिला से प्रारम्भ होकर पंजाब, दिल्ली, मथुरा, उज्जैन आदि मार्गों से होता हुआ भारत के पश्चिम तट पर स्थित भड़ौंच नामक स्थान पर समाप्त होता था।
Q. 12. हड़प्पावासियों द्वारा व्यवहृत सिंचाई के साधनों का उल्लेख करें।
Ans ⇒ हड़प्पा वासियों द्वारा मुख्यतः नहरें, कुएँ और तालाब जल संग्रह करने वाले स्थानों को सिंचाई के रूप में प्रयोग में लाया जाता था।
(क) अफगानिस्तान में सौतुगई नामक स्थल से हड़प्पाई नहरों के चिह्न प्राप्त हुए हैं।
(ख) हडप्पा के लोगों द्वारा सिंचाई के लिए कुओं का भी इस्तेमाल किया जाता था।
(ग) गुजरात के धोलावीरा नामक स्थान से तालाब मिला है। इसे कृषि की सिंचाई के लिए, पानी देने के लिए तथा जल संग्रह के लिए प्रयोग किया जाता था।
0.13. सिन्धु घाटी सभ्यता की, नगर योजना का वर्णन करें।
Ans ⇒ सिंधु घाटी के लोग नगरों में रहने वाले थे। वे नगर स्थापना में बड़े कुशल थे। उन्होंने हडप्पा, मोहनजोदड़ो, कालीबंगा, लोथल, रोपड़ जैसे अनेक नगरों का निर्माण किया। उनकी नगर व्यवस्था के संबंध में निम्नलिखित विशेषताएँ मुख्य रूप से उल्लेखनीय हैं
(i) हडप्पा संस्कृति के नगर एक विशेष योजना के अनुसार बनाये गये थे। इन लोगों ने बिल्कुल सीधी (90° के कोण पर काटती हुई) सड़कों व गलियों का निर्माण किया था, ताकि डॉ. मैके के अनुसार ‘चलने वाली वायु उन्हें अपने आप ही साफ कर दें।
(ii) उनकी जल निकासी की व्यवस्था बड़ी शानदार थी। नालियाँ बड़ी सरलता से साफ हो सकती थीं।
(ii) किसी भी भवन को अपनी सीमा से आगे कभी नहीं बढ़ने दिया जाता था और न ही बर्तन पकाने वाली किसी भी भट्टी को नगर के अंदर बनने दिया जाता था। अर्थात् अनाधिकृत निर्माण (unauthorised constructions) नहीं किया जाता था।
Q.14. ‘आश्रम’ के बारे में आप क्या जानते हैं ?
Ans ⇒ वैदिक काल में प्रत्येक व्यक्ति की आयु को 100 वर्ष मानकर उसे चार भागों (आश्रमों) में बाँट दिया गया। इन आश्रमों का विभाजन निम्नलिखित ढंग से किया जाता था :
(i) ब्रह्मचर्य आश्रम पहले 25 वर्ष की आयु तक।
(ii) गृहस्थ आश्रम 25 से .50 वर्ष की आयु तक।
(iii) वानप्रस्थ आश्रम 50 से 75 वर्ष की आयु तक।
(iv) संन्यास आश्रम 75 से 100 वर्ष की आयु तक।
Q.15. आप वैदिक संस्कृति के बारे में क्या जानते हैं ?
Ans ⇒ वैदिक साहित्य विशेषकर चार वेद ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद तथा अथर्ववेद जिस संस्कन भाषा में लिखे (या रचे) गए थे वह वैदिक संस्कृत कहलाती है। यह संस्कृत उस संस्कृत से कल कठिन एवं भिन्न थी जिसका प्रयोग हम आजकल करते हैं। वस्तुतः वेदों को ईश्वरीय ज्ञान के तल्य माना जाता था यह शुरू में मौखिक रूप में ही ब्राह्मण परिवारों से जुड़े लोगों तथा कुछ अन्य विशिष्ट परिवास्जनों को ही पढ़ाया-सुनाया जाता था। महाकाव्य काल में रामायण तथा महाभारत की रचना के लिए जिन संस्कृत का प्रयोग किया गया वह वैदिक संस्कृत से अधिक सरल थी। इसलिए वह संस्कृत और अधिक लोगों में लोकप्रिय हुई थी।
Q.16. महाजनपद युग की राजनीति विशेषताएँ लिखिए।
Ans ⇒ आरंभिक भारतीय इतिहास में छठी शताब्दी ई० पू० को एक महत्वपूर्ण परिवर्तनकारी काल माना जाता है। इस काल को प्रायः आरंभिक राज्यों, नगरों के लोहे के बढ़ते प्रयोग और सिक्कों के विकास के साथ जोड़ा जाता है। इसी काल में बौद्ध तथा जैन सहित विभिन्न दार्शनिक विचारधाराओं का विकास हुआ। बौद्ध धर्म और जैन धर्म के आरंभिक ग्रंथों में महाजनपद नाम से सोलह राज्यों. का उल्लेख मिलता है। यद्यपि महाजनपदों के नाम की सूची तथा ग्रंथों में एक समान नहीं है, लेकिन वज्जि, मगध, कोशल, कुरू, पाञ्चाल, गांधार और अवन्ति जैसे. नाम प्रायः मिलते हैं। इससे यह. स्पष्ट है कि उक्त महाजनपद महत्वपूर्ण महाजनपदों में गिने जाते होंगे।
अधिकांश महाजनपदों पर राजा का शासन होता था, लेकिन गण और संघ के नाम से प्रसिद्ध राज्यों में कई लोगों का समूह शासन करता था, इस तरह का प्रत्येक व्यक्ति राजा या राजन कहलाता था।
Q.17. मिलिन्द पन्नाह पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
Ans ⇒ मिलिन्दपन्नाह – यह बौद्ध ग्रंथ में बैक्ट्रियन और भारत के उत्तर पश्चिमी भाग पर शासन करने वाले हिन्दू यूनानी सम्राट मैनेण्डर एवं प्रसिद्ध बौद्ध भिक्षु नागसेन के संवाद का वर्णन किया गया है। इसमें ईसा की पहली दो शताब्दियों के उत्तर-पश्चिम भारतीय जीवन के झलक देखने को मिलती है।
Q. 18. छठी शताब्दी में ई० पू० से चौथी शताब्दी ई० पू० की अवधि के नगरीकरण को भारत का द्वितीय नगरीकरण क्यों कहा जाता है ?
Ans ⇒ भारत का पहला नगरीकरण हड़प्पा की संस्कृति के साथ प्रारम्भ हुआ और 1500 ई० पू. के लगभग आर्यों द्वारा देश में प्रमुखता प्राप्ति के साथ ही के समय समाप्त हो गया। आर्य लोग ग्रामीण थे। जब हड़प्पा संस्कृति के नगर एक-एक करके नष्ट हो गये तो फिर अगले 1500 वर्ष तक नगर विलुप्त रहे।
ईसा की छठी शताब्दी में बौद्ध काल में पुनः नगरों का श्रीगणेश हुआ। अत: छठी शताब्दी ई. पू. से चौथी शताब्दी ई. पू. तक बौद्ध काल को भारत का अद्वितीय नगरीकरण काल कहा जाता है।
Q.19. प्राचीन भारतीय समाज की जाति व्यवस्था को संक्षेप में समझाइए।
Ans ⇒ संभवतः आप ‘जाति’ शब्द से परिचित होंगे जो एक सोपानात्मक सामाजिक वर्गीकरण को दर्शाती है। धर्मसूत्रों और धर्मशास्त्रों में एक आदर्श व्यवस्था का उल्लेख किया गया था। ब्राह्मणों का यह मानना था कि यह व्यवस्था, जिसमें स्वयं उन्हें पहला दर्जा प्राप्त है, एक दैवीय व्यवस्था है। शूद्रों और ‘अस्पृश्यों’ का सबसे निचले स्तर पर रखा जाता था इस व्यवस्था में दर्जा संभवतः जन्म के अनुसार निर्धारित माना जाता था।
अपनी मान्यता को प्रमाणित करने के लिए ब्राह्मण बहुधा ऋग्वेद के पुरुषसूक्त मंत्र को उद्धृत करते थे जो आदि मानव पुरुष की बलि का चित्रण करता है। जगत के सभी तत्व जिनमें चारों वर्ण शामिल हैं, इसी पुरुष के शरीर से उपजे हो बाह्मण उसका मुँह था, उसकी भुजाओं से क्षत्रिय निर्मित हुआ।
समय उसकी जंघा थी, उसके पैर से शूद्र की उत्पत्ति हुई ।
Q.20. मनुस्मृति में यद्यपि आठ प्रकार के विवाहों की स्वीकृति दी गई है लेकिन इस धर्मसूत्र में उल्लिखित पहली, चौथी, पाँचवीं और छठी विवाह पद्धतियों का विवरण और उल्लेख दीजिए।
Ans ⇒ मनुस्मृति और चार प्रमुख प्रकार के विवाह (Manusmriti and Four Main type of Marriages) – यहाँ मनुस्मृति से पहली, चौथी, पाँचवीं और छठी विवाह पद्धति का उद्धरण दिया जा रहा है
पहली – कन्या का दान, बहमल्य वस्त्रों और अलंकारों से विभूषित कर उसे वेदज्ञ वर को दान दिया जाये जिसे पिता ने स्वयं आमंत्रित किया हो।
चौथा – पिता वर-वधू युगल को यह कहकर संबोधित करता है कि तुम साथ मिलकर अपने दायित्वों का पालन करो।” तत्पश्चात् वह वर का सम्मान कर उसे कन्या का दान करता है।
पांचवां – वर को वधू की प्राप्ति तब होती है जब वह अपनी क्षमता व इच्छानुसार उसके बांधवों को और स्वयं वधू को यथेष्ट धन प्रदान करता है।
छठा – स्त्री और पुरुष के बीच अपनी इच्छा से संयोग “जिसकी उत्पत्ति काम से है।”
Q.21. श्रेणी अथवा गिल्ड की व्याख्या कीजिए। गिल्ड के सदस्यों द्वारा कौन-कौन से कार्य किये जाते थे ?
Ans ⇒ प्राचीन काल में जो लोग एक ही प्रकार का व्यवसाय करते थे अथवा व्यवहार संबंधी . (आंतरिक या बाह्य या दोनों प्रकार के) में व्यस्त रहते थे वे कभी-कभी स्वयं को गिल्ड अथवा श्रेणियों में संगठित कर लेते थे।
गिल्ड या श्रेणियों के कार्य –
(i) श्रेणियों के सदस्य अपने साधनों को इकट्ठा कर लेते थे। जो भी धन अपनी शिल्प कलाओं या व्यापार के द्वारा अर्जित करते थे। वह अपने प्रमुख शहर में सूर्य देवता के मंदिर निर्माण पर खर्च करते थे।
(ii) श्रेणियों को सदस्य अपनी अतिरिक्त पूँजी धन आदि को मंदिरों के पास रख देते थे जो समय-समय पर उन्हें व्यवसाय और व्यापार जारी रखने या उनके विकास या विस्तार के लिए निवेश करने के लिए धनराशि देने की व्यवस्था करते थे।
(iii) यह अभिलेख जटिल सामाजिक प्रक्रियाओं की झलक देता है तथा श्रेणियों के स्वरूप के विषय में अंतर्दृष्टि प्रदान करता है। हालाँकि. श्रेणी की सदस्यता शिल्प में विशेषज्ञता पर निर्भर थी। कुछ सदस्य अन्य जीविका भी अपना लेते थे। इस अभिलेख से यह भी ज्ञात होता है कि सदस्य एक व्यवसाय के अतिरिक्त और चीजों में भी सहभागी होते थे।
(iv) श्रेणियाँ या गिल्ड समुदायों के इतिहास का लेखा-जोखा हमें कम ही प्राप्त होता है किन्तु कुछ अपवाद होते हैं जैसे मंदसौरा (मध्य प्रदेश) से मिला अभिलेख (लगभग पाँचवीं शताब्दी ईस्वी)। इसमें रेशम के बुनकरों की एक श्रेणी का वर्णन मिलता है जो मूलतः लाट (गजरात) प्रदेश के निवासी थे. और वहाँ से मंदसौर चले गये थे, जिसे उस समय दशपुर के नाम से जाना जाता था। यह कठिन यात्रा उन्होंने अपने बच्चों और बांधवों के साथ सम्पन्न की। उन्होंने वहाँ के राजा की महानता के बारे में सुना था। अतः वे उसके राज्य में बसना चाहते थे।
Q.22. महाभारत के महत्त्व पर एक आलोचनात्मक टिप्पणी लिखिए।
Ans ⇒ महाभारत का महत्त्व (Importance of the Mahabharata) – महाभारत केवल कौरव-पाण्डवों के संघर्ष की कथा ही नहीं किंतु भारतीय संस्कृति और हिन्दू धर्म के विकास का ङ्केप्रदर्शक एक विशाल कोष है। इसमें उस समय के राजनैतिक, धार्मिक, दार्शनिक और ऐतिहासिकआदर्शों का अमल्य संग्रह है।
महाभारत की इस सक्ति में लेशमात्र भी संदेह नहीं है कि वह सर्व प्रधान काव्य, सब. दर्शनों का सार, स्मति. इतिहास और चरित्र-चित्रण की खान तथा पंचम वेद है। मानव जीवन का कोई ऐसा भाग या समस्या नहीं जिस पर इसमें विस्तार से विचार नहीं किया गया हो। शांति पर्व और अनुशासन पर्व तो इस दृष्टि से लिखे गए हैं। इसलिए महाभारत का यह दावा सर्वथा सत्य है कि धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष के विषय में जो इनमें कहा गया है कि वह ठीक है। जो इनमें नहीं है, वह कहीं नहीं।
इसके अतिरिक्त ऋग्वेद के पश्चात् यह संस्कृत साहित्य का चमकता ग्रंथ है। विस्तार में कोई काव्य इनकी समता नहीं कर सकता। यूनानियों का इलियड (Iliad) और औडेसी (Odessey) मिलाकर इसका आठवाँ भाग है। इसका सांस्कृतिक महत्त्व इसी तथ्य में स्पष्ट है कि हिन्दू धर्म का सबसे प्रसिद्ध ग्रंथ भगवद्गीता इसी का अंश है।
आलोचना (Criticism) – इस कथा के अतिरिक्त महाभारत में और भी कहानियाँ मिलती हैं। जो काल्पनिक-सी होती है। यद्यपि महाभारत भी रामायण की भाँति पूर्णतया सत्यता पर आधारित नहीं है तथापि हम इसे अनैतिहासिक नहीं कह सकते। हस्तिनापुर इन्द्रप्रस्थ आदि ऐतिहासिक नगर है। वैदिक साहित्य में कौरवों का नाम तो कई बार आता है परन्तु पांडवों का कोई उल्लेख नहीं मिलता है।
इससे अनुमान लगाया जाता है कि पांडव कौरवों के संबंधी न होकर बाहर से आने वाली आक्रमणकारी रहे होंगे।
Q.23. महाभारत कालीन भारतीय स्त्रियों की स्थिति पर टिप्पणी लिखिए।
Ans ⇒ महाभारतकालीन स्त्रियाँ (Women of Mahabharat-age) –
(a) महाभारत काल में घरेलू तथा संन्यासिनियों दोनों तरह की स्त्रियों का विवरण प्राप्त है। रामायण में अत्रि मुनि की पत्नी. अनुसूइया का उल्लेख प्राप्त है। इसी ग्रंथ में ‘शबरी’ एक अन्य चर्चित साध्वी है। शबरी महान कृषि मातंग की शिष्या थी तथा पंपा झील के किनारे उसकी कटिया होती थी। घरेलू स्त्रियों में कौशल्या, सुमित्रा, कैकेयी तथा सीता एवं दासी के रूप में मंथरा का उल्लेख मिलता है।
(b) महाभारत में अनेक महिलाओं का उल्लेख प्राप्त होता है। उदाहरणार्थ सुलभा एक महान विदुषी थी। उपयुक्त वर पाने के लिए उसने संन्यास ले लिया तथा ज्ञान आदान-प्रदान के लिए वह . सर्वत्र घूमती रही। गांधारी, कुंती एवं द्रौपदी आदि घरेलू महिलाओं के सुविदित उदाहरण हैं।
(c) राजा ऋतध्वज की सहचरी ‘मंदालसा’ पुराणों की चर्चित नारियों में एक हैं। वह एक ही साथ विदुशी, संत, नारी तथा कर्त्तव्यशील पत्नी थी। पुराणों की एक और संत नारी महान ऋषि प्रजापति कर्दम की पत्नी और भारतीय दर्शन की संख्या पद्धति के प्रजेता कपिल मुनि की माँ ‘देवहुति’ है। एक घरेलू जीवन व्यतीत करने वाली नारी होने के बावजूद भी अपने ज्ञानी पति एवं पुत्र के साथ शास्त्रार्थ एवं आध्यात्मिक विषयों पर विचारों का आदान-प्रदान इस क्षेत्र में अद्वितीय प्राप्तियों का प्रतीक है।
Q.24. कौरव और पांडव कौन थे ? उनके बंधुत्व संबंध कैसे बदल गये थे ?
Ans ⇒ कौरव और पांडव दोनों एक ही परिवार के सदस्य और दो चचेरे भाइयों के समूह थे। वे एक राज्य परिवार अथवा राजवंश से संबंधित थे जो कुरु वंश कहलाता था। महाभारत हमें सूचना देता है कि इन दोनों समूहों में बंधुत्व का संबंध बड़ा भारी परिवर्तित हो गया। महाभारत दोनों समूह के मध्य भूमि के एक भू-भाग के एक टुकड़े पर संघर्ष का उल्लेख करता है और उसके लिए दोनों समूहों में परस्पर युद्ध हुआ।
Q.25. द्रोण कौन था ?
Ans ⇒ द्रोणा (द्रोणाचार्य) कुरु शहजादों का गुरु था। वह एक ब्राह्मण था उसने सभी, कौरव और पांडव राजकुमारों को धनुर विद्या सिखलाई। कहा जाता है कि इस महान गुरु ने अर्जुन को यह वायदा किया था कि दुनिया में कोई भी उसके समान कुशल धनुर्धारी नहीं होगा।